बिहार चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर एनडीए अब बंगाल फतह की तैयारी में है। इन दिनों बंगाल में चुनाव आयोग द्वारा SIR की प्रक्रिया को तेज किया गया है। बंगाल, बांग्लादेशी घुसपैठ से जोड़कर इसे देखा जा रहा है। यूं कहे कि एसआईआर ने बंगाल की राजनीति प्याले में तूफान खड़ा कर दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया है कि पश्चिम बंगाल में एसआईआर के चलते अब तक 28 लोगों की जान जा चुकी है। उन्होंने कहा कि इसे नहीं रोका गया तो बड़ा आंदोलन होगा। वहीं एसआईआर में पश्चिम बंगाल में अवैध बांग्लादेशियों द्वारा वोटर आईडी कार्ड बनवाने के लिए चौंकाने वाले तरीके अपनाने का खुलासा हुआ है। दरअसल, वोटर कार्ड बनवाने के लिए एक फॉर्म भरना होता है। इसमें पिता का एक कॉलम होता है। बिना किसी वैलिड डॉक्यूमेंट के प्रदेश में रहने वाले एक बांग्लादेशी ने पिता वाले कॉलम में ससुर का नाम भर दिया और इस तरह फर्जी तरीके से वोटर आईडी कार्ड बनवा लिया। आरोपी शख्स ने ससुर को ही अपना पिता बना डाला। खुलासा होने पर हड़कंप मचा हुआ है। इस रैकेट में दो लोगों का नाम सामने आया है। इन लोगों ने फर्जी तरीके से वोटर कार्ड बनवाने की बात स्वीकार भी की है। स्थानीय लोगों ने कुछ अन्य पर भी ससुर को बतौर पिता के तौर पर पेश कर वोटर कार्ड बनवाने का आरोप लगाया है। बंगाल और बांग्लादेश की सीमा से लगे हाकिमपुर बॉर्डर आउटपोस्ट (उत्तर 24 परगना) पर पिछले कुछ दिनों से असामान्य हलचल दिख रही है। सड़क किनारे झुंड बनाकर बैठे महिलाओं, पुरुषों और बच्चों के चेहरों पर भय साफ झलकता है। फर्जी वोटर, अवैध घुसपैठ और वोट बैंक की राजनीति - सबकुछ अब खुलकर सामने आने वाला है।भारत-बांग्लादेश सीमा पर उत्तर 24 परगना के स्वरूप नगर में चेकपोस्ट के पास अवैध बांग्लादेशियों की भीड़ जमा है।बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले में भारत-बांग्लादेश सीमा पर नाटकीय घटना ने राजनीतिक विवाद को नई ऊंचाई दे दी है। लगभग 500 अवैध बांग्लादेशी नागरिक विशेष गहन संशोधन (SIR) अभियान के डर से अपने देश लौटने की कोशिश में जीरो लाइन पर फंस गए हैं। ये लोग कोलकाता के उपनगरीय इलाकों में वर्षों से छिपकर रह रहे थे। बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) ने इन्हें भारत में वापस आने से रोक दिया, जबकि बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (BGB) ने इन्हें बांग्लादेश में प्रवेश करने से इनकार कर दिया। यह घटना चुनाव आयोग के मतदाता सूची सफाई अभियान के बीच हुई है, जिसे विपक्षी दल भाजपा अवैध घुसपैठ के खिलाफ सख्त कदम बता रही है, वहीं तृणमूल कांग्रेस (TMC) इसे 'राजनीतिक साजिश' करार दे रही है।
'NRC हो रहा है… हम पकड़े जाएंगे': एक महिला ने कहा कि दस साल पहले हम न्यू टाउन में रहने आ गए थे। लेकिन अब NRC की बात सुनकर डर लगा। मेरे पास भारतीय दस्तावेज नहीं हैं। हालांकि NRC असम में लागू है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि चुनाव आयोग का SIR पश्चिम बंगाल में NRC का बैकडोर तरीका है। महिला ने बताया कि वह घरेलू सहायक के रूप में 15,000 रुपये महीने कमाती थी, जबकि उसके पति मैनुअल स्कैवेंजिंग का काम करते थे- उनके पास भारतीय वोटर कार्ड और आधार दोनों हैं। लेकिन मेरे पास कुछ नहीं है इसलिए लौट रही हूं। BSF अधिकारियों के मुताबिक, पिछले एक सप्ताह में 400 से अधिक लोग हाकिमपुर चौकी पहुंच चुके हैं। इनमें ज्यादातर कोलकाता, हावड़ा और आसपास के इलाकों से आए वे परिवार हैं जो कई वर्षों से बंगाल में रह रहे थे। कोलकाता से लगभग 80 किलोमीटर दूर इस इलाके का दौरा किया और हालात का जायज़ा लिया। इनमें से कई लोग पाँच साल से, कुछ दस साल से, और कुछ ने तो अपना बचपन भी भारत में बिताया है। उनके पास न तो आधार कार्ड है और न ही वैध भारतीय दस्तावेज़, फिर भी ये अवैध बांग्लादेशी अब तक बेखौफ भारत में रह रहे हैं। 20 साल पहले परिवार के साथ आए, यहीं बस गए
स्वरूप नगर के हकीमपुर में चौकी के पास बने अस्थायी आश्रय गृह में, भीड़ के बीच ऐसी अनगिनत कहानियाँ हैं। हर जगह से लोग चौकी पार करके बांग्लादेश में अपने घर पहुँचने की बेताब कोशिश कर रहे हैं। उनमें से एक हैं मेहंदी हसन, जो लगभग 20 साल पहले अपने माता-पिता के साथ भारत आए थे। उस समय, वह एक बच्चे थे और हुगली में अपने परिवार के साथ रहते थे। मेहंदी हसन ने बताया कि उनका परिवार आँखों का इलाज कराने भारत आया था और फिर यहीं बस गया। उन्होंने कहा, "इतने सालों तक, किसी ने हमारे दस्तावेज़ों की जाँच नहीं की। अब, SIR के लॉन्च के साथ, हम बांग्लादेश वापस जा रहे हैं।" "हमें भारत से प्यार है, लेकिन अब हम अपने परिवारों के पास वापस जा रहे हैं।"
बांग्लादेश में जन्मी, 10 साल पहले भारत आई
एक 60 वर्षीय महिला ने बताया कि वह 10 साल पहले बंगाल आई थी। उसकी शादी एक बांग्लादेशी से हुई है। उसने बताया कि लॉकडाउन के दौरान, उन्हें लगा था कि भारत में रहना मुश्किल होगा, लेकिन तब कुछ नहीं हुआ। इस बीच, उसके पति का निधन हो गया। अब, वह महिला अपनी बुज़ुर्ग माँ के साथ हकीमपुर सीमा पर बांग्लादेश जाने का इंतज़ार कर रही है। उसकी माँ के पास एक दस्तावेज़ है जिसमें लिखा है कि वह बांग्लादेश में पैदा हुई थी।
बांग्लादेश जाने वाले लोगों की भीड़ सीमा पर जमा हो गई प्रत्यक्ष रूप से देखा कि कैसे हकीमपुर में सैकड़ों लोग सीमा पार करके बांग्लादेश जाने की कोशिश कर रहे हैं। बशीरहाट मंडल के हकीमपुर चेकपोस्ट पर पिछले कुछ दिनों से बांग्लादेश जाने वाले लोगों की भीड़ जमा हो रही है। 18 वर्षीय अलीम खान अपने परिवार के साथ भारत आया था और आसनसोल में रह रहा था। अब वह वापस जाना चाहता है।
सर के डर से लौट रहे बांग्लादेशी
अलीम खान ने बताया कि उनका घर बांग्लादेश के मुल्लापाड़ा में है। वह बांग्लादेश में घर बनाने के लिए पैसे कमाने भारत आए थे। उन्होंने बताया कि उनके पास कोई भारतीय दस्तावेज़ नहीं हैं; वे सभी बांग्लादेश के हैं। "हमें पता चला है कि हमें अब भारत में रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी, इसलिए हम वापस जा रहे हैं।" अवैध बांग्लादेशियों को लेकर राजनीति भी गरमा गई है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य का कहना है कि ये लोग 12-15 सालों से भारत में इसलिए रह रहे हैं क्योंकि सरकार ने उन्हें संरक्षण दिया है। उनके पास आधार कार्ड और पैन कार्ड भी हैं, जो उन्हें तृणमूल कांग्रेस ने ही दिए हैं। इन दिनों पश्चिम बंगाल की राजनीति में असाधारण हलचल के दौर से गुजर रही है। इसका कारण न कोई चुनावी रैली है और न कोई नया राजनीतिक गठबंधन, बल्कि वोटर लिस्ट की वह 'सर्जरी' है जिसे चुनाव आयोग ने स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के रूप में शुरू किया है। खास बात यह है कि बिहार के हालिया चुनाव परिणाम से उठी लहर का प्रभाव अब बंगाल के राजनीतिक गलियारों में महसूस होना शरू हो है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पटना में दिए गए उस बयान, जिसमें उन्होंने गंगा को बदलाव की धार बताया था, अब उसे राजनीतिक विश्लेषक बंगाल की तरफ़ संकेत के रूप में देख रहे हैं।
वोटर लिस्ट की 'सर्जरी' और बंगाल की बढ़ी बेचैनी
चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में पहली बार इतने व्यापक स्तर पर घर-घर जाकर दस्तावेजों की जांच शुरू की है। आयोग का दावा है कि यह सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन बंगाल में इसकी गूंज असामान्य रूप से तेज दिखना शुरू हो गयी है। कारण हैं - वोटर लिस्ट में सामने आये बड़े पैमाने पर संदिग्ध नाम।
शुरुआती जांच में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए जिसका अंदाजा भी नहीं था:
- एक ही परिवार में 15 से 20 वोटरों का पंजीकरण
- एक ही व्यक्ति के नाम कई इलाकों में लिस्टेड
- उन्हीं लोगों के नाम जिनके विदेश गए सालों बीत चुके
- ऐसे पते जो कागज पर मौजूद लेकिन जमीन पर नहीं
अब.. इन मामलों की संख्या सैकड़ों नहीं, हजारों और संभावित रूप से लाखों में बताई जा रही है। यही वजह है कि राजनीतिक माहौल गर्म है और सत्तारूढ़ TMC इस प्रक्रिया को भाजपा की 'साजिश' बता रही है।
TMC का आरोप आपको बता दे, TMC ने चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया को अदालत में चुनौती दी थी। पार्टी का आरोप था कि यह अल्पसंख्यक समुदाय को मात्र डराने का प्रयास किया जा रहा है और यह लोकतंत्र के खिलाफ है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही साफ शब्दों में टिप्पणी की "यदि आपके पास सबूत हैं तो कोर्ट में पेश कीजिए। सिर्फ आरोपों पर लोकतंत्र नहीं चलता।" इतना ही नहीं... बल्कि अदालत ने यह भी कहा कि वोटर लिस्ट की शुद्धता चुनाव आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है और इस प्रक्रिया पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं है। अब यह फैसला बंगाल की राजनीतिक गर्मी को और बढ़ा दिया क्योंकि अब आयोग ने पूरी मजबूती के साथ 'वोटर लिस्ट क्लीनअप' तेज कर दिया है।
सियासी समीकरण पर मंडराता खतरा: बंगाल के सीमावर्ती जिलों में सालों से जनसंख्या के असामान्य परिवर्तन दर्ज किए जाते रहे हैं। विपक्ष लंबे वक़्त से आरोप लगाता रहा है कि सीमाओं से घुसपैठ कर लाखों लोग वोट बैंक का हिस्सा बने और इन्हें राजनीतिक संरक्षण मिला। लेकिन पहली बार यह मुद्दा भावनाओं से निकलकर दस्तावेजों और जांच के दायरे में पहुंच गया है। अब राजनीतिक विश्लेषकों का ऐसा मानना है कि अगर हजारों-लाखों संदिग्ध नाम हटा दिए जाते हैं, तो सबसे बड़ा नुकसान उन इलाकों में होगा जो TMC के गढ़ माने जाते हैं। यही कारण है कि TMC नेताओं के हालिया बयानों में चिंता स्पष्ट रूप से दिख रही है।
बिहार से बंगाल तक 'बदलाव का बहाव'....
बिहार का चुनाव 2025 के नतीजे सामने आने के बाद यह संकेत दे चुका है कि मतदाता जाति और समीकरण से इतर विकास व विश्वास पर वोट कर रहे हैं। राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा है कि यही संदेश अब बंगाल की तरफ़ बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री के 'गंगा' वाले बयान को भी इसी संदर्भ में देखा जा रहा है कि बिहार का जनादेश बंगाल की मिट्टी पर प्रभाव डाल सकता है।
क्या बंगाल की राजनीति बदलने वाली है?
वोटर लिस्ट की शुद्धता मात्र तकनीकी प्रक्रिया नहीं है। इसका प्रभाव सीधे चुनावी गणित पर पड़ने वाला है। और यदि अवैध नाम हटते हैं, नकली पते उजागर होते हैं और फर्जी वोटर बाहर होते हैं, तो आगामी चुनाव में बंगाल का परिणाम पूरी तरह अलग हो सकता है। लेकिन... TMC इसे साजिश कह रही है और भाजपा इसे लोकतंत्र की सफाई बता रही है। लेकिन... सच्चाई किसी से भी छिपी नहीं है। आगामी समय में ये पूरी तरह से सिद्ध हो जाएगा कि सच कौन बोल रहा - TMC या BJP ? थोड़ा बहुत अंदाजा तो बिहार चुनाव 2025 के नतीजों से लगाया जा सकता है।
फिलहाल बंगाल में माहौल तनावपूर्ण और राजनीति उथल-पुथल से भरी है। अब आगामी दिनों में जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ेगी, यह साफ़ होता जाएगा कि किसके लिए यह प्रक्रिया झटका है और किसके लिए राहत। फिलहाल एक बात तय है 'बांगाल की राजनीति में बड़ा तूफान उठ चुका है।' ( बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा की रिपोर्ट )
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