रोमिंग जर्नलिस्ट की रिपोर्ट 24
पंडित जी आप पंडित नेहरू के वंश का पोस्टमार्टम करने आए हैं क्या?
जम्मू-कश्मीर में आए महीनों हो गए थे, एक बात अक्सर दिमाग में खटकती थी कि अभी तक नेहरू के खानदान का कोई क्यों नहीं मिला, जबकि हमने किताबों में पढ़ा था कि वह कश्मीरी पंडित थे। नाते-रिश्तेदार से लेकर दूरदराज तक में से कोई न कोई नेहरू खानदान का तो मिलना ही चाहिए था। नेहरू राजवंश कि खोज में सियासत के पुराने खिलाडिय़ों से मिला लेकिन जानकारी के नाम पर मोतीलाल नेहरू के पिता गंगाधर नेहरू का नाम ही सामने आया। अमर उजाला दफ्तर के नजदीक बहती तवी के किनारे पहुंचकर एक दिन इसी बारे में सोच रहा था तो ख्याल आया कि जम्मू-कश्मीर वूमेन कमीशन की सचिव हाफीजा मुज्जफर से मिला जाए, शायद वह कुछ मदद कर सके | अगले दिन जब आफिस से हाफीजा के पास पहुंचा तो वह सवाल सुनकर चौंक गई। बोली पंडित जी आप पंडित नेहरू के वंश का पोस्टमार्टम करने आए हैं क्या? हंसकर सवाल टालते हुए कहा कि मैडम ऐसा नहीं है, बस बाल कि खाल निकालने कि आदत है इसलिए मजबूर हूं। यह सवाल काफी समय से खटक रहा था। कश्मीरी चाय का आर्डर देने के बाद वह अपने बुक रैक से एक किताब निकाली, वह थी रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज कि किताब ए लैम्प फार इंडिया- द स्टोरी ऑफ मदाम पंडित। उस किताब मे तथाकथित गंगाधर का चित्र छपा था। जिसके अनुसार गंगाधर असल में मुसलमान थे जिनका असली नाम था गयासुद्दीन गाजी। इस फोटो को दिखाते हुए हाफीजा ने कहा कि इसकी पुष्टि के लिए नेहरू ने जो आत्मकथा लिखी है, उसको पढऩा जरूरी है। नेहरू की आत्मकथा भी अपने रैक से निकालते हुए एक पेज को पढऩे को कहा। इसमें एक जगह लिखा था कि उनके दादा अर्थात मोतीलाल के पिता गंगा धर थे। इसी तरह जवाहर की बहन कृष्णा ने भी एक जगह लिखा है कि उनके दादाजी मुगल सल्तनत बहादुरशाह जफर के समय में नगर कोतवाल थे। अब इतिहासकारो ने खोजबीन की तो पाया कि बहादुरशाह जफ र के समय कोई भी हिन्दू इतनी महत्वपूर्ण ओहदे पर नहीं था। और खोजबीन करने पर पता चला कि उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे नाम थे भाऊ सिंह और काशीनाथ जो कि लाहौरी गेट दिल्ली में तैनात थे। लेकिन किसी गंगाधर नाम के व्यक्ति का कोई रिकार्ड नहीं मिला है। नेहरू राजवंश की खोज में मेहदी हुसैन की पुस्तक बहादुरशाह जफर और 1857 का गदर में खोजबीन करने पर मालूम हुआ। गंगाधर नाम तो बाद में अंग्रेजों के कहर के डर से बदला गया था,असली नाम तो था गयासुद्दीन गाजी। नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि आगरा जाते समय उनके दादा गंगा धर को अंग्रेजों ने रोककर पूछताछ की थी लेकिन तब गंगा धर ने उनसे कहा था कि वे मुसलमान नहीं हैं कश्मीरी पंडित हैं और अंग्रेजों ने उन्हें आगरा जाने दिया बाकी तो इतिहास है ही ।
एक कप चाय खत्म हो गयी थी, दूसरी का आर्डर हाफीजा ने देते हुए के एन प्राण कि पुस्तक द नेहरू डायनेस्टी निकालने के बाद एक पन्ने को पढऩे को दिया। उसके अनुसार जवाहरलाल मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर । यह तो हम जानते ही हैं कि जवाहरलाल कि एक पुत्री थी इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू । कमला नेहरू उनकी माता का नाम था। जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी। कमला शुरु से ही इन्दिरा के फिरोज से विवाह के खिलाफ थीं क्यों यह हमें नहीं बताया जाता। लेकिन यह फिरोज गाँधी कौन थे? सभी जानते हैं की राजीव गाँधी के नाना का नाम था जवाहरलाल नेहरू लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी तो होते हैं। फिर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था? किसी को मालूम नहीं, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब । एक मुस्लिम व्यापारी जो आनन्द भवन में सामान सप्लाई करता था और जिसका मूल निवास था जूनागढ गुजरात में है। नवाब खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया। फिरोज इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था घांदी (गाँधी नहीं)घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था। विवाह से पहले फिरोज गाँधी ना होकर फिरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था। हमें बताया जाता है कि फिरोज गाँधी पहले पारसी थे यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है । फिरोज खान ने इन्दिरा को बहला-फुसलाकर उसका धर्म परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली। नाम रखा मैमूना बेगम। नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए लेकिन अब क्या किया जा सकता था। जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने नेहरू को बुलाकर समझाया। राजनैतिक छवि की खातिर फिरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी रख ले, यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये बजाय धर्म बदलने के सिर्फ नाम बदला जाये तो फिरोज खान घांदी बन गये फिरोज गाँधी। विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और सत्य के साथ मेरे प्रयोग नामक आत्मकथा लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक नहीं नहीं किया। खैर उन दोनों फिरोज और इन्दिरा को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुन: वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया ताकि उनके खानदान की ऊँची नाक का भ्रम बना रहे । इस बारे में नेहरू के सेकेरेटरी एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक प्रेमेनिसेन्सेस ऑफ नेहरू एज ;पृष्ट 94 पैरा 2 (अब भारत में प्रतिबंधित है किताब) में लिखते हैं कि पता नहीं क्यों नेहरू ने सन 1942 में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी जबकि उस समय यह अवैधानिक था का कानूनी रूप से उसे सिविल मैरिज होना चाहिये था । यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फि रोज अलग हो गये थे हालाँकि तलाक नहीं हुआ था । फि रोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे। तंग आकर नेहरू ने फिरोज के तीन मूर्ति भवन मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था । मथाई लिखते हैं फिरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बड़ी राहत मिली थी। 1960 में फिरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी जबकी वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे। संजय गाँधी का असली नाम दरअसल संजीव गाँधी था अपने बडे भाई राजीव गाँधी से मिलता जुलता । लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था। ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने तब मदद करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवाया था, इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था । एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक के पृष्ठ 206 पर लिखते हैं - 1948 में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था। वह संस्कत की विद्वान थी और कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे । वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृत की अच्छी जानकार थी। नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए । चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और काम बहुत था। नेहरू ने अधिकतर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये । मथाई के शब्दों में एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा वह बहुत ही जवान खूबसूरत और दिलकश थी। एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये नेहरू ने भी उसे उत्तर दिया और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं किसी के ढूँढे से नहीं मिलीं । नवम्बर 1949 में बेंगलूर के एक कान्वेंट से एक सुदर्शन सा आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया। उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस कान्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया । उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी । उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं पत्रों का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया । मथाई लिखते हैं . मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफी कोशिश की लेकिन कान्वेंट की मुख्य मिस्ट्रेस जो कि एक विदेशी महिला थी बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं क हा लेकिन मेरी इच्छा थी कि उस बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कथोलिक संस्कारो में बड़ा करूँ चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना हो लेकिन विधाता को यह मंजूर नहीं था। नेहरू राजवंश की कुंडली जानने के बाद घड़ी की तरफ देखा तो शाम पांच बज गए थे, हाफीजा से मिली ढेरों प्रमाणिक जानकारी के लिए शुक्रिया अदा करना दोस्ती के वसूल के खिलाफ था, इसलिए फिर मिलते हैं कहकर चल दिए अमर उजाला जम्मू दफ्तर की ओर।
•्रमश:
ऊंची दुकान फीके पकवान !!!!!
जवाब देंहटाएंNice
हटाएंthx
हटाएंऊंची दुकान फीके पकवान !!!!! वाह रे नेहरू खानदान !!!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबेहद ही अच्छी प्रस्तुति जानकारी से भरपूर
जवाब देंहटाएंआपने अपना कीमती समय दिया,इसके लिए धन्यवाद
हटाएंkitani bhi badnami karoge neharu, gandhi family ki, phir bhi RSS ya BJP satta me nahi aanewali!
जवाब देंहटाएंMane ji politics na kare
हटाएंRss bjp aa gai na satta main.ab to tumhara bhram dur ho gaya ki nehru musalman they
हटाएंसमय के साथ जवाब हर सवाल का मिल जाता है
हटाएं@ shrimant Mane Ji ye badnam karne ki baat nahi hai, ye sacchai hai, aur kitabe sach hi bola karti gai yaha koi politics nahi ho raha hai..jo sach hai wo sach hai!!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंmane ji yaha politics nahin ho rahi hian jo aap politics le aaye yeh sachai mani hae tohe maniye werna koi jerurat nahin hain apke ise khubsooret comments ki.........
जवाब देंहटाएंdesh ka durbhagya ,haramiyon ka bhagya ,ye prayogdharmi hybrid pariwar
जवाब देंहटाएंanand
desh ka durbhagya ,haramiyon ka bhagya ,ye prayogdharmi hybrid pariwar
जवाब देंहटाएंanand
सही कर रहे हैं मित्र
हटाएंhttp://xa-board.com/cgi-bin/foren/foren/F_0739/cutecast.pl?session=XsYKiINOc1Y9ZNkLydu5TLunae&forum=6&thread=3177
जवाब देंहटाएंhttp://spunite.com/phpBB/posting.php?mode=reply&f=4&t=572995
अगर यह सच है तो
जवाब देंहटाएंहिदुओं को खुश होना चाहिए
यहाँ कितने हिन्दुओं ने
मुस्लिम आक्रान्ताओं के डर से धर्म परिवर्तन किया था
कम से कम एक मुसलमान खानदान
अंग्रेंजों के डर से हिन्दू बन गया .
यह दुनिया के सारे धर्म ,
राजनीति के ही खेल हैं
वरना धर्म का संख्या बल से क्या वास्ता ?
असल मे जब देश आजाद हुआ था तो देश के प्रथम प्रधान मंत्री के रूप में सरदार बल्लभ भाई पटेल को चुना गया था ,लेकिन दुर्भाग्य वश महात्मा गांधी के सबसे चहेते 2 शख्स थे एक नेहरू दूसरा जिन्ना और दोनों को गद्दी पर बैठाने के लिए भारत के 2 टुकड़े कर डाले एक पर जिन्ना और दूसरे पर नेहरू बन गए प्रधानमंत्री इसके अलावा नेहरू ने 1954 में 370 धारा बनाकर देश के साथ छल किया।
हटाएंसारे जॅहा से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा , हम बुद्धु है उसके हमपे राज करता एक वंश सारा , सारे जॅहा से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा
जवाब देंहटाएंसारे जॅहा से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा , हम बुद्धु है उसके हमपे राज करता एक वंश सारा , सारे जॅहा से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा
जवाब देंहटाएंjai hind
हटाएंएम.ओ.मथाई ने जिस बच्चे के पालन पोषण का सोचा था उसके बारे में कुछ जानकारी दीजियेगा
जवाब देंहटाएंआपने जो लिखा ,वो ठीक भी हो सकता है और गलत भी....सिर्फ किताब में लिख देने या इधर उधर से पता कर लेने से अक्सर बातें सच नहीं होती, कई बार किताब लिखने वाले किसी दुर्भावना का शिकार होते हैं, कई बार उनको जानकारी ही अंदाज़े से या गलत व्यक्ती से मिलती है, अक्सर ..अलग अलग किताबों में अलग अलग स्टोरी एक ही व्यक्ती के बारे में होती है...किस पर विश्वास किया जाये,किस पर नहीं...फिर भी आपकी ये खोज(अगर ये दुर्भावना से रहत है तो ) काफी मनोरंजक है...
जवाब देंहटाएंधाराएं बदलने वालों की पहचान कहाँ होती ? यदि पहचान होती तो देश से प्यार होता ,यहाँ की संस्कृति से प्यार होता ,यहाँ के लोगों से प्यार होता ! उन्हें तो बस अपने आप से प्यार है देश ओर देश के लोगों से क्या लेना देना |
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जवाब देंहटाएंअंधेर नगरी चोपट राजा
जवाब देंहटाएंअंधेर नगरी चोपट राजा
जवाब देंहटाएंअंधेर नगरी चोपट राजा
जवाब देंहटाएंशोध सार गर्भित हे 1अभी गाजी के बारे मे ओर जानकारी चाहिये होगी 1अच्छा हे
जवाब देंहटाएंशोध सार गर्भित हे 1अभी गाजी के बारे मे ओर जानकारी चाहिये होगी 1अच्छा हे
जवाब देंहटाएंBahut shandar khoj aap ko bahut bahut dhanyaad
जवाब देंहटाएंAap adhi jankari janta ko share naa kare aage bhi likha hai
जवाब देंहटाएंदिल्ली की स्थिति पर एडिनबरा विश्वविद्यालय में सन् 2007 से 2008 तक चली विशेष शोध परियोजना के अन्तर्गत प्रकाशित लेख में 1857 के विद्रोह के समय दिल्ली में गंगाधर नाम का कोई कोतवाल नहीं था।[7] केवल किसी ग़ाज़ी ख़ान का उल्लेख है।[8][9] उक्त स्रोत कोतवाल के रूप में मुसलमानों का ही उल्लेख करते हैं। इन तर्कों के सहारे कुछ लोगों ने गंगाधर नेहरू को गयासुद्दीन गाज़ी बताने की कोशिश की है।
बहुत से लोग गयासुद्दीन गाजी को गंगाधर नेहरू का पूर्वज बताने को एक दुष्प्रचार मात्र मानते हैं क्योंकि इस बात के कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। इसके विपरीत इसके विरोध में कई स्पष्ट उल्लेख मौजूद हैं। जवाहरलाल नेहरू ने अपने पुरखों का वर्णन अपनी आत्मकथा में इस प्रकार किया है - "हम लोग कश्मीरी हैं। दो सौ बरस से ज्यादा हुए होंगे, अठारहवीं सदी के शुरू में हमारे पुरखे धन और यश कमाने के इरादे से कश्मीर की सुन्दर घाटियों से नीचे के उपजाऊ मैदानों में आ गये। औरंगजेब मर चुका था और फर्रुख़ सियर बादशाह था। हमारे जो पुरखा सबसे पहले आये, उनका नाम था राजकौल। कश्मीर के संस्कृत और फारसी विद्वानों में उनका बड़ा नाम था। फर्रुख़ सियर जब कश्मीर गया तो उसकी नजर उनपर पड़ी और शायद उसीके कहने से उनका परिवार दिल्ली आया, जोकि उस समय मुगलों की राजधानी थी। यह सन् 1716 के आसपास की बात है। राजकौल को एक मकान और कुछ जागीर दी गयी। मकान नहर के किनारे था इसी से उनका नाम नेहरू पड़ गया। कौल, जो उनका कौटुम्बिक नाम था, बदलकर कौल-नेहरू हो गया और आगे चलकर कौल तो गायब हो गया और हम महज नेहरू रह गये।"[4]
एम०जे० अकबर ने नेहरू के पूर्वजों के सम्बन्ध में लिखा है - "यह निश्चित है कि नेहरू परिवार मुग़ल दरबार का हिस्सा था और उन्हें कुछ गाँवों पर ज़मींदारी के अधिकार प्राप्त थे। किन्तु राज कौल के पौत्र मौसाराम कौल व साहबराम कौल के समय तक यह जागीर धीरे धीरे खत्म होती रही, शायद मुग़ल सल्तनत के विनाश के अनुपात में। मौसाराम के पुत्र लक्ष्मीनारायण ने पाला बदल लिया और वे ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रथम वकील बने, जो कि उस समय तक मुग़ल दरबार में बहुत बड़ी स्थिति हासिल कर चुकी थी। उनके पुत्र गंगा धर बहुत कम उम्र में ही पुलिस में कोतवाल बन गये तथा 1857 के विद्रोह के दिल्ली पहुँचने तक वे इस पद पर बने रहे। इसके बाद हुए कत्लेआम ने राज कौल के वंश को ये शहर छोड़ने पर मजबूर कर दिया,जिसने इसे डेढ़ शताब्दी पहले अपनाया था।" [10]
राजक़ौल के पूर्वज कहाँ दफ़न हुए और कश्मीर में उनका कहीं नामोनिशान क्यों मौजूद नहीं?
हटाएंis desh ko hindu aur muslim me baat kar raaj karne wala neharu khandan hi hai
जवाब देंहटाएंYe hamare desh ka durbhagya tha ki yaha Nehru jaisa aayaas paida lia
हटाएंपूरी झूठी खबर। फेक न्यूज़। दोनों पक्षो से सबूतों के अभाव।
जवाब देंहटाएंWo hindu they ha Muslim kya fark padta h wo desh k pahele p.m they itne Aamir hone k bavjut desh k liye balidan dene Ka jajba rakne wale ek Hindustani they
जवाब देंहटाएंNehru he konsa balidan diya that.
हटाएंhttps://en.m.wikipedia.org/wiki/Jawaharlal_Nehru?wprov=sfla1
जवाब देंहटाएंये तो किसी ने भी मन गढंत लिख दिया बिना किसी आधार के सच्ची बात जानने के लिए विकीलीक्स पढ़िए
जवाब देंहटाएंRahul Gandhi kahta hai mai hidu hun y des or Hindu samaj ke saath dhokha hai. Are sarm karo or dub maro
जवाब देंहटाएंPadhne ke Baad Rahul Gandhi ka Naam MD.Rahuluddin Khan Winchi honi chahiye.
जवाब देंहटाएंGREAT
जवाब देंहटाएंThx
जवाब देंहटाएंआप सबकी प्रतिक्रियाओं का दिल से स्वागत है
जवाब देंहटाएंआप वास्तव में खोजी पत्रकार हैं
जवाब देंहटाएंthx bhai
हटाएंGood job
जवाब देंहटाएंकश्मीर में धारा 370 हटने के बाद एक बार फिर आपको आना चाहिए, मैं पंडित रामनिवास पंगोत्रा का रिश्तेदार हूं। जय माता दी
जवाब देंहटाएंआया जाएगा मित्र, जय माता दी
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