- घर घर में होगा तुलसी विवाह, लगातार बारिश के बीच श्रद्धालुओं में उत्साह
- आज से ही शुरू होंगे मांगलिक कार्य, क्यों श्री हरि के लिए तुलसी महत्वपूर्ण
भगवान विष्णु को समर्पित देवउठनी एकादशी 1 नवंबर यानी आज मनाई जा रही है। यह कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। इस दिन घरों में भगवान विष्णु की भव्य पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसे देवोत्थान भी कहते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विष्णु भगवान सहित समस्त देवता चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं, जिसके बाद एक बार फिर शुभ मांगलिक कार्यों का प्रारंभ होता हैं। चूंकि श्री हरि जागते हैं, इसलिए एक बार फिर सृष्टि की कमान प्रभु संभालते हैं। हिंदू धर्म में इस तिथि को नई शुरुआत, सुख-सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना गया है। यदि इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाए, तो वे प्रसन्न होकर भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं। इससे विवाह के योग बनते हैं, कार्यों में सफलता मिलती है। ऐसे में आइए देवउठनी एकादशी के महत्व और पूजन विधि को जानते हैं।देवउठनी एकादशी से जुड़ी परंपरा मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं। इसी दिन उनका विवाह तुलसी के साथ कराया जाता है। यह विवाह उनके शालिग्राम स्वरूप से होता है और सनातन धर्म में इसे बेहद पवित्र माना गया है। तुलसी-शालिग्राम विवाह के बाद ही शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्य शुरू होते हैं।
क्यों किया जाता है तुलसी विवाह: तुलसी, जिनका असली नाम वृंदा था, राक्षस कुल में जन्मी थीं लेकिन भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। उनका विवाह दानवराज जलंधर से हुआ था। जब जलंधर देवताओं से युद्ध कर रहा था, वृंदा ने पति की जीत के लिए कठोर पूजा शुरू की। उनके व्रत के प्रभाव से जलंधर अजेय हो गया।तब देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु जी ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के सामने आए। वृंदा ने उन्हें पति समझकर पूजा छोड़ दी और संकल्प टूटते ही जलंधर मारा गया। इस छल से आहत होकर वृंदा ने विष्णु जी को श्राप दिया कि वे पत्थर के हो जाएं। बाद में वृंदा ने अपना श्राप वापस लिया और सती हो गईं। कहा जाता है कि उनकी राख से एक पौधा निकला जिसे तुलसी कहा गया। भगवान विष्णु ने शालिग्राम रूप में उसी तुलसी से विवाह किया। तभी से तुलसी विवाह की परंपरा शुरू हुई।तुलसी विवाह का धार्मिक महत्व
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, तुलसी विवाह करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है। इसे कन्यादान के समान पुण्य माना जाता है। संतान सुख की प्राप्ति होती है और जीवन से दरिद्रता दूर होती है। धन-धान्य में वृद्धि होती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।देवउठनी एकादशी पर पूजा के लिए आप घर के पूजा स्थल के पास गेरू से भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएं।।आकृति के पास फल, सिंघाड़ा पीली रंग की मिठाई, गन्ना, फूल रखें। इसके बाद आप इस आकृति को छन्नी या डलिया से ढक दें। शाम को आकृति के पास शुद्ध देसी घी से दीपक जलाएं। फिर भगवान विष्णु संग देवी लक्ष्मी और सभी देवी-देवताओं की पूजाकरें। अब शंख या घंटी बजाएं और 'उठो देवा, बैठो देवा' के भजन से श्री हरि को जगाएं।
देवताओं को जगाने के बाद सभी को पंचामृत का भोग लगाएं और सुख-समृद्धि की कामना करें। इस दौरान यदि आप तुलसी विवाह कर रहे हैं, तो उनकी भी पूजा करें। फिर सभी में प्रसाद का वितरण करें और कुछ वस्त्र, धन, अन्न व पीली चीजों का दान करें। देवउठनी एकादशी भोगगुड़ और चने का भोग लगाएं।पंचामृत का भोग लगाएं। पंजीरी का भोग ।केले का भोग। पीली मिठाई का भोग।देवउठनी एकादशी उपायधार्मिक मान्यताओं के मुताबिक देवउठनी पर आप सुहाग सामग्री का दान करें। इससे वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है। इस दिन तुलसी पर कच्चा दूध चढ़ाएं। फिर पौधे के पास घी का दीपक जलाएं। इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। देवउठनी एकादशी पर आप गर्म और ऊनी वस्त्रों का दान करें। इससे भाग्योदय होता है। देवउठनी एकादशी पर घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाएं और घर में लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। इससे सकारात्मकता का आगमन होता है। ( अशोक झा की कलम से )
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