बांग्लादेश में 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना सरकार को गिरा दिया गया. अपनी जान के खतरे को भांपते हुए बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना भारत आ गईं. लेकिन आवामी लीग की हसीना सरकार गिरने के बाद से बांग्लादेश में पाकिस्तान का दखल बढ़ गया है। सत्ता परिवर्तन के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस ने सत्ता संभाली है। इसके बाद एक बार फिर से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने बांग्लादेश में अपनी गहरी जड़ें जमा ली हैं। पाकिस्तान ने बांग्लादेश को आतंकी गतिविधियों के लिए एक सेफ हेवेन की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। हालांकि पहले भी पाकिस्तान इसी तरह के एक्शन में लगा रहा था। अब वह बांग्लादेश को एक गुलाम राष्ट्र की तरह बनाना चाहता है।पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई, मौजूदा मोहम्मद यूनुस सरकार की मदद से बांग्लादेश को अपना नियंत्रण क्षेत्र बनाने की कोशिश कर रही है। बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामिस्ट पार्टी जमात-ए-इस्लामी ने फरवरी में प्रस्तावित राष्ट्रीय चुनाव के खिलाफ कड़ा विरोध जताया है। बांग्लादेश में अवामी लीग के बंद की घोषणा के बीच राजधानी ढाका समेत आसपास के कई जिलों में हिंसा फैल गई है। अनेक वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। अंतरिम सरकार ने उपद्रवियों से निपटने के लिए बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) की 14 प्लाटून तैनात की है।सिन्हुआ ने बांग्लादेश के गृह मामलों के सलाहकार जहांगीर आलम चौधरी के हवाले से चाक चौबंद सुरक्षा व्यवस्था की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि पुलिस और सुरक्षा बलों ने देश में गश्ती बढ़ा दी है. अब ज्यादा से ज्यादा गश्त कर रहे हैं और महत्वपूर्ण सरकारी इमारतों की सुरक्षा भी बढ़ा दी है. जहांगीर ने दावा किया कि एएल पार्टी के कार्यक्रम को लेकर अंतरिम सरकार को कोई डर नहीं है. वो भी तब जब उसकी गतिविधियों पर देश में बैन लगा दिया गया है. एक दिन पहले ही ढाका में पुलिस ने अवामी लीग के 34 नेताओं को पकड़ा था. यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण गुरुवार को शेख हसीना और उनके कई शीर्ष सहयोगियों के लिए फैसले की तारीख तय करने वाला है। राजधानी को छावनी में बदला जा रहा है। ढाका ट्रिब्यून अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, बीजीबी प्रवक्ता शरीफुल इस्लाम ने कहा कि ढाका में 12 और आसपास के जिलों में दो प्लाटून तैनात की गई हैं। अंतरिम सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि ढाका और आसपास के जिलों में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए बीजीबी की 14 प्लाटून तैनात की गई हैं। बीजीबी मुख्यालय के जनसंपर्क अधिकारी शरीफुल इस्लाम ने बुधवार सुबह बताया कि 12 प्लाटून ढाका में तैनात की गई हैं, जबकि शेष दो प्लाटून राजधानी के आसपास के जिलों में तैनात की गई हैं। अर्धसैनिक बल को होटल इंटर कॉन्टिनेंटल, धानमंडी-32, हवाई अड्डा, अब्दुल्लापुर, काकरैल, शिशु अकादमी, उच्च न्यायालय क्षेत्र और अबरार फहद एवेन्यू सहित प्रमुख स्थानों पर तैनात किया गया है। सरकारी प्रवक्ता के अनुसार, ढाका, गाजीपुर और अन्य जिलों में उपद्रवियों ने जनता में दहशत फैलाने के लिए बसों में आग लगा दी। अवामी लीग ने मानवता के विरुद्ध अपराधों से जुड़े एक मामले में शेख हसीना और अन्य के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण के 13 नवंबर को सुनाए जाने वाले फैसले से पहले बंद की घोषणा की है।।अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार रात और बुधवार तड़के गाजीपुर में अलग-अलग जगहों पर उपद्रवियों ने तीन बसों में आग लगा दी। इससे लोगों में दहशत फैल गई। अग्निशमन अधिकारियों के अनुसार, अभी तक किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है। बुधवार तड़के एक समूह ने भोगरा बाइपास के पेयाराबागन इलाके के पास ढाका-तंगैल राजमार्ग पर खड़ी एक बस में आग लगा दी। सूचना मिलते ही भोगरा मॉडर्न फायर सर्विस के दमकलकर्मी पहुंचे और आग बुझाई। लगभग उसी समय, एक अन्य समूह ने जिले के श्रीपुर उपजिला के बेरैड चाला इलाके में एक मिनी बस में आग लगा दी। श्रीपुर फायर सर्विस स्टेशन के अग्निशमन कर्मियों ने आग पर काबू पाया। इससे पहले मंगलवार रात लगभग 10 बजे उपद्रवियों ने कालियाकोइर-नबीनगर राजमार्ग पर चक्रवर्ती में एक मिनी बस में आग लगा दी। इस्लामिक समूहों ने रैली निकाली और अंतरिम सरकार से यह मांग की कि वह पूर्ववर्ती शेख हसीना सरकार को अपदस्थ किए जाने के बाद तैयार किए गए राष्ट्रीय चार्टर (संविधानिक प्रस्ताव) को कानूनी मान्यता दे। उनका कहना था कि राजनीतिक सुधारों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी रोडमैप (योजना) के बिना सामान्य चुनाव कराना संभव नहीं है। सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी जमात-ए-इस्लामी और सात अन्य राजनीतिक दलों के हजारों समर्थक राजधानी ढाका में एकत्र हुए और मांग की कि अगला चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत आयोजित किया जाए। देश में अगले साल की शुरुआत में आम चुनाव कराए जाने की संभावना है। कट्टरपंथियों की मुख्य मांगों में ‘जुलाई राष्ट्रीय घोषणा पत्र’ पर जनमत संग्रह शामिल है। इस घोषणा पत्र का नाम जुलाई 2024 में हसीना सरकार के खिलाफ शुरू हुए बगावत की पृष्ठभूमि में रखा गया है। इस बागवत के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को 15 साल के शासन के बाद सत्ता से हटना पड़ा था। प्रदर्शन में शामिल दलों का कहना है कि घोषणा पत्र फिलहाल गैर-बाध्यकारी है और इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी और संविधान का हिस्सा बनाने के लिए जनमत संग्रह की आवश्यकता है। बांग्लादेश की आबादी 17 करोड़ है और केवल संसद ही संविधान में बदलाव ला सकती है।
जमात प्रमुख शफीकुर रहमान ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि इस देश के स्वतंत्रता-प्रेमी लोगों का एक संदेश है- राष्ट्रीय चुनाव से पहले रेफरेंडम अनिवार्य रूप से आयोजित किया जाना चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सहमति आयोग द्वारा तैयार जुलाई चार्टर की कानूनी नींव स्थापित किए बिना राष्ट्रीय चुनाव कराना असंभव है। आयोग ने चुनिंदा राजनीतिक दलों से लंबी परामर्श के बाद यह चार्टर तैयार किया था। घोषणा पत्र के प्रावधानों में देश की राजनीतिक व्यवस्था में और अधिक नियंत्रण और संतुलन लाना शामिल है, ताकि सत्तावादी प्रशासन से बचा जा सके, जिसमें राष्ट्रपति पद को पहले के शक्तिशाली प्रधानमंत्री पद को संतुलित करने के लिए अधिक अधिकार देना भी शामिल है। इसमें विधायकों के कार्यकाल की सीमा और हितों के टकराव, धनशोधन तथा भ्रष्टाचार रोकने के उपायों का भी प्रस्ताव है। ढाका में मंगलवार को आयोजित रैली में शामिल जमात-ए-इस्लामी और अन्य सहयोगी दलों के समर्थकों ने कहा कि जब तक जनमत संग्रह नहीं हो जाता और घोषणा पत्र को बाध्यकारी नहीं बनाया जाता, तब तक कोई चुनाव नहीं होगा।
दूसरी ओर, अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की अब भंग हो चुकी अवामी लीग की अनुपस्थिति में प्रमुख दावेदार बनकर उभरी बीएनपी ने शुरू में रेफरेंडम के विचार को खारिज कर दिया था। पार्टी का कहना था कि संविधान में रेफरेंडम का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए संसद ही उपयुक्त मंच है। बाद में बीएनपी ने अनिच्छा से जनमत संग्रह की प्रस्तावना पर सहमति जताई, लेकिन इसे राष्ट्रीय चुनाव के ही दिन आयोजित करने पर जोर दिया। फिर पार्टी ने फिर से आरक्षण जताया। बीएनपी की नीति-निर्धारक स्थायी समिति के सदस्य अमीर खसरू महमूद चौधरी ने पिछले सप्ताह कहा कि अंतरिम सरकार ने संविधान की रक्षा के लिए शपथ ली है, जबकि "इस संविधान में रेफरेंडम का कोई प्रावधान नहीं है।" बीएनपी ने यह भी आरोप लगाया कि सहमति आयोग के अंतिम मसौदे में पार्टी के कई असहमति नोट हटा दिए गए, जिनमें से कुछ बांग्लादेश के संविधान से विरोधाभासी थे। ( बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा की रिपोर्ट)
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