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द्धारका से १० किलोमीटर्स दूर स्थित नागेश्वर महादेव कहा जाता है पहला ज्योतिलिंग है पर मंदिर का नया रूप देख कर ऐसा नहीं लगता ! नागेश्वर जो द्वारकाना जंगल में स्थित था शिव पुराण से अनुसार वह वास्तव में कहाँ है इस पर विरोध है क्यूंकि द्धारका के आसपास जंगल नहीं है कुछ विद्धान मानते है कि यह स्थान उत्तराखंड में है ! जो भी हो लोग तो घूमने जाते है पर ज्योतिलिंग जैसी भक्तिपूर्ण माहौल जो मैंने काशी विश्वनाथ, बैजनाथ धाम में देखी वह वहाँ न दिखी ! मुख्य ज्योतिलिंग के आगे आधा दर्जन सज्जे धजे पुजारी सामान टोकरियों में सज्जा कर खड़े थे ! २५१ रूपए में दे रहे थे और जिसके पास वह टोकरियाँ होती उसी को नए दिखते ज्योतिलिंग तक जाने देते ! जो आध्यात्मिक अनुभूति पुराने मंदिरो में होती है, द्धारका मुख्य मंदिर में हुआ, वह यहाँ नहीं हुआ, लगा नए मार्केटिंग द्वारा इस मंदिर को विकसित किया गया है और गुजरात ऐसे मार्केटिंग में सबसे आगे है ! नागेश्वर ज्योतिलिंग के बारे में शिव पुराण में जिक्र है कि दारुका राक्षस ने शिव भक्त सुप्रिय और अन्य को बंदी बना लिया था और उन्हें समुंद्री नागो के शहर समुन्द्र के नीचे रखा था ! सुप्रिय कि भक्ति से भगवान शिव प्रसन्न हुए और सुप्रिय को आज़ाद किया ! बाद में राक्षस कि पत्नी ने अथक तपस्या द्वारा माँ पार्वतीं से वरदान प्राप्त किया और संपूर्ण जंगल समुन्द्र में समा दिया फिर लोगो को समुंद्री नागो कि नगरी में बंदी बना लिया गया तब सुप्रिय ने शिवलिंग स्थापित कर तपस्या कि जिसे राक्षसो ने रोकने कि कोशिश कि पर वह ऐसा नहीं कर सके ! चूँकि मंदिर अरब सागर के नजदीक है इसीलिए बहुत विद्धान इसी को असली नागेश्वर ज्योतिलिंग मानते है !---------------- (रमेश सिंह की कलम से, लेखक अंग्रेजी दैनिक पायनियर के वरिष्ठ पत्रकार हैं )
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