सूर्य से प्रयोग बना लोकपर्व, सौर मंडल में पृथ्वी की प्रकृति साधना का तप है छठ का लोक अनुष्ठान
अक्टूबर 26, 2025
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आचार्य संजय तिवारी
सृष्टि में करोड़ों ब्रह्मांड हैं। हम जिस ब्रह्मांड में हैं उसका नाम पृष्णि है। हमारे इस ब्रह्मांड में करोड़ों आकाश गंगाएं हैं। हम जिस आकाश गंगा में हैं उसका नाम मिल्की वे है। इस आकाश गंगा में भी करोड़ों सौर मंडल हैं। हम जिस सौर मंडल में हैं उसका नाम सविता है। हमारे इस सौर मंडल में हम सब सूर्य की ऊष्मा, ऊर्जा और गति से संचालित हैं। हमारा यह सूर्य सदैव है। जिसे हम सूर्य का डूबना कहते हैं वह गलत है। सूर्य कभी डूबता ही नहीं। हमारी पृथ्वी उसके चक्कर लगाती है। पृथ्वी के जिस गोलार्ध में हम होते हैं वहां 12 घंटे सूर्य नहीं दिख सकता। वह 12 घंटे दूसरे गोलार्ध में दिखता है। अतः सूर्य कभी डूबता ही नहीं। अपने गोलार्ध में सूर्य की अंतिम उपस्थिति के समय अर्घ्य देकर हम अपने लिए उससे अमृत ऊर्जा लेते हैं। ऊर्जा के इस क्रम को दूसरे दिन सुबह की अर्घ्य से पूरी करते हैं। यह कार्य 365 दिनों में केवल एक बार कर लेने से हमे मूल आरोग्य की ऊर्जा प्राप्त हो सकती है, यदि पूरे मनोयोग से यह प्रयोग किया जाय। छठ के लोक पर्व का यही महाविज्ञान है। यह केवल बिहार प्रदेश का कोई पर्व भर नहीं है। यह वैश्विक प्रयोग है। मिस्र जैसे भूभाग के इतिहास में भी नदी में खड़ी स्त्री को सूर्य के समक्ष प्रार्थना के साथ जल प्रवाह के लिखित प्रमाण मौजूद हैं। यह प्रमाण है कि विश्व में पंथों और संप्रदायों के उद्भव से पूर्व समस्त मानव जाति अपना यह प्रयोग करती थी। वास्तव में सौर मंडल में पृथ्वी की प्रकृति साधना का तप है छठ का यह लोक अनुष्ठान। इसे व्यापक प्रयोग भी कहना उचित होगा। यह लोक पर्व वास्तव में सूर्य से किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण प्रयोग है जिसके माध्यम से जीवन को आरोग्य और विराट स्वरूप दिए जाने की कला है।
सूर्य वास्तव में कभी डूबता नहीं है, बल्कि पृथ्वी के घूर्णन के कारण यह हमें दिखाई देना बंद कर देता है। जब पृथ्वी का कोई हिस्सा घूमकर सूर्य से दूर चला जाता है, तो हमें लगता है कि सूर्य डूब गया है। हालांकि, पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों में गर्मियों के दौरान कई हफ्तों या महीनों तक सूरज डूबा नहीं रहता है, जिसे मध्यरात्रि सूर्य कहते हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। जब आप सूर्य को डूबते हुए देखते हैं, तो आप असल में पृथ्वी के उस हिस्से पर होते हैं जो सूर्य से दूर घूम रहा है।
स्थायी घटना: सूर्य हमेशा एक ही जगह पर स्थिर रहता है। सूर्य का डूबना एक स्थानिक घटना है, जो पृथ्वी के घूर्णन के कारण होती है।
सूर्य को अर्घ्य के मंत्र
ॐ सूर्याय नमः
ॐ घृणि सूर्याय नमः"।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः।।
एहि सूर्य सहस्रांशो
तेजो राशे जगत्पते,
अनुकम्पां मया भक्त्या
गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।
ॐ सूर्याय नमः, यह एक सीधा और शक्तिशाली मंत्र है जिसका अर्थ है 'सूर्य देवता को नमस्कार'।
ॐ घृणि सूर्याय नमः, इस मंत्र का उपयोग अक्सर किया जाता है, जिसमें 'घृणि' का अर्थ सूर्य की किरणों से होता है।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः, यह भी एक लोकप्रिय मंत्र है।
"एहि सूर्य सहस्रांशो तेजो राशे जगत्पते, अनुकम्पां मया भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर", इस मंत्र का अर्थ है, "हे सूर्य, हजारों किरणों वाले तेजस्वी, संसार के स्वामी, कृपा करके मेरे इस अर्घ्य को स्वीकार करें"।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा: , यह एक अधिक विस्तृत और शक्तिशाली मंत्र है जिसका उपयोग विशेष मनोकामनाओं के लिए किया जाता है।
अर्घ्य देते समय आप इन मंत्रों में से किसी एक का जाप कर सकते हैं। सबसे प्रभावी तरीका है कि आप मंत्र का जाप करते हुए सूर्य की ओर देखें और अर्घ्य दें।
आप इन मंत्रों को सूर्योदय के समय और जल चढ़ाते समय भी दोहरा सकते हैं।
सूर्य की परिक्रमा
सूर्य की परिक्रमा का अर्थ है कि ग्रह सूर्य के चारों ओर एक निश्चित पथ, जिसे कक्षा कहते हैं, में घूमते हैं। पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा लगभग 365 दिनों में पूरी करती है, जबकि अन्य ग्रहों को अलग-अलग समय लगता है। बुध को 88 दिन और नेपच्यून को लगभग 165 साल लगते हैं। इसके अतिरिक्त, सूर्य स्वयं भी आकाशगंगा के केंद्र के चारों ओर परिक्रमा करता है।
ग्रहों द्वारा सूर्य की परिक्रमा
पृथ्वी: एक परिक्रमा में लगभग 365 दिन लगते हैं, जिससे एक वर्ष बनता है।
बुध: सूर्य के सबसे निकट है और एक परिक्रमा करने में केवल 88 दिन (लगभग 0.24 वर्ष) लगते हैं।
नेपच्यून: सबसे दूर स्थित ग्रह है, जिसे सूर्य की एक परिक्रमा पूर…
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