- पुत्र की लंबी आयु के लिए महिलाएं करती है यह व्रत , नहीं करना पड़ता है वियोग का सामना
- यह एक ऐसा पर्व जहां वर्ती उपास के पहले खाती है मछली और मरुआ की रोटी
हर मां अपने पुत्र की लंबी उम्र और मंगल की कामना के लिए निर्जला रहकर जितिया व्रत का उपवास करती है। जितिया व्रत हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहते हैं। यह सबसे कठिन व्रतों में से एक माना गया है। यह व्रत संतान की खुशहाली व प्राप्ति की कामना के साथ रखा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण के समय किया जा रहा है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान वियोग का सामना नहीं करना पड़ता है। यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश की महिलाएं रखती हैं। इस व्रत की शुरुआत एक खास और अनोखी परंपरा से होती है, जो आज भी निभाई जाती है। इसी कारण से यह व्रत काफी प्रचलित है। जितिया व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है। जितिया व्रत का व्रत हिंदू धर्म में बहुत खास माना जाता है। हिंदू परंपराओं के मुताबिक, आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत रखा जाता है। इस व्रत को पितृ पक्ष के दौरान ही महिलाएं निभाती हैं। जितिया व्रत का महत्व होता है अपने बच्चों की सुरक्षा और उनकी लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करना। ये व्रत खासकर पुत्र के साथ साथ अपनी सारी संतानों की भलाई और लंबी उम्र के लिए भी रखा जाता है। जितिया व्रत मुख्य रूप से बिहार बंगाल और झारखंड जैसे राज्यों में मनाया जाता है। इस बार जितिया व्रत 14 सितंबर 2025, रविवार को रखा जाएगा। पंडित अभय झा बताते हैं कि इस व्रत की शुरुआत मड़ुआ और मछली खाकर होती है। इस दिन हर मां अपने पुत्र की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए निर्जला उपवास रखती है। दिनभर उपवास करके वे जीमूतवाहन और चील-सियार की पूजा करती हैं।जितिया व्रत हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। माछ मड़ुआ का सेवन जितिया व्रत से एक दिन पहले होता है, जो ‘नहाय-खाय’ का हिस्सा होता है। इसे बिहार में माछ-मड़ुआ कहते हैं। वैष्णव संप्रदाय के लोग मछली की जगह नोनी साग खाते हैं यह जीवित्पुत्रिका व्रत का एक खास हिस्सा है, जो संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। व्रत की तैयारी के तौर पर नहाय-खाय के दिन किया जाता है। रविवार सुबह सूर्योदय से पूर्व महिलाएं ओठगन (अल्पाहार) करके निर्जला व्रत की शुरूआत करेंगी।संतान की दीर्घायु, सुखी और निरोगी जीवन के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत, ज्यूतिया या जीमूतवाहन व्रत रखा जाता है. यह व्रत हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पंचांग के अनुसार रविवार सुबह सूर्योदय से पूर्व महिलाएं ओठगन (अल्पाहार) करके निर्जला व्रत की शुरूआत करेंगी। मिथिला पंचांग को माननेवाले 13 को माछ-मडुआ खाए। ओठगन 3 से 3-30 बजे सुबह तक कर लें। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 14 सितंबर रविवार को प्रातः 8:51 बजे आरंभ होकर 15 सितंबर सोमवार को प्रातः 5:36 बजे समाप्त होगी। रविवार को सूर्योदय से पहले महिलाएं ओठगन करेंगी और सोमवार को प्रातः 6:27 बजे के बाद व्रत का पारण होगा।जितिया व्रत की खास मान्यताएं: मान्यता है कि इस व्रत के दौरान यदि कोई स्त्री जल ग्रहण कर ले तो व्रत भंग हो जाता है। खास बात यह है कि व्रत शुरू करने से पहले महिलाएं मछली का सेवन करती हैं, जो इसे अन्य व्रतों से अलग बनाता है। हालांकि, जो लोग पूर्वांचल के व्रत-नियमों से अधिक परिचय नहीं है, उन्हें यह जानकर कौतुहल हो सकता है कि आखिर जब यह व्रत निर्जला रखा जाता है तो उससे ठीक पहले व्रती महिलाएं मछली का सेवन क्यों करती हैं। आइए जानते हैं व्रत से जुड़े अद्भुत रिवाज के बारे में।
क्यों कहा जाता है महा जितिया व्रत: शास्त्रों में बताया गया है कि यह व्रत 'महा' शब्द के साथ जुड़ा हुआ है, इसलिए इसे महा जितिया व्रत कहा जाता है। अन्य व्रतों की तरह इसमें प्याज, लहसुन या कुछ विशेष साग का त्याग किया जाता है, लेकिन इसकी खासियत यह है कि व्रत से पहले मछली और मरुआ खाने का विधान है। इसके अलावा नोनी और कर्मी का साग भी खाया जाता है, जिन्हें मछली के समान महत्व दिया गया है। इनका सेवन कर व्रत की शुरुआत की जाती है।पुराने जमाने में मड़ुआ और मछली आमतौर पर खाने का हिस्सा हुआ करते थे, खासकर बरसात के समय। जितिया व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, चील और सियार ने भी यह व्रत किया था, जिससे महिलाओं में अपने पुत्रों की लंबी आयु के लिए इस व्रत को करने की परंपरा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महिलाएं इस व्रत को नहाए-खाए से शुरू करती हैं और नवमी के दिन चील-सियार का प्रसाद चढ़ाकर व्रत करती हैं। मिथिलांचल में मड़ुआ की रोटी और मछली खाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।मान्यता के अनुसार जितिया व्रत की शुरुआत कलियुग की प्रारंभ में हुई। मान्यता है कि एक बार जीमूतवाहन नाम के राजा कहीं जा रहे थे तभी उन्हें एक रोती हुई स्त्री की आवाज सुनाई दी। जिसके पास जाने पर उन्हें पता चलता कि भगवान श्री विष्णु का वाहन आज उनके पुत्र को उठाकर ले जाएगा और खा जाएगा। तब राजा ने उस महिला को भरोसा दिलाया कि वे उसके बेटे की जगह गरुण का भोजन बनेंगे।
जब उन्होंने महिला के बेटे की जगह खुद को प्रस्तुत किया तो गरुण ने राजा के परोपकार की भावना से प्रसन्न होकर उन्हें वैकुंठ में जाने का आशीर्वाद दिया और बाकी बच्चों को भी पुनर्जीवित कर दिया।
बाकी बच्चों को भी जीवित कर दिया मान्यता कि तभी से महिलाएं अपनी संतान की सुरक्षा और सौभाग्य के लिए जीमूतवाहन देवता के लिए व्रत और पूजा इस दिन करने लगीं।जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि : जीवित्पुत्रिका व्रत भी छठ के समान होता है। जितिया व्रत का पुण्यफल पाने के लिए महिलाओं को इस व्रत के एक दिन पहले नहाय-खाय की परंपरा निभानी होती है। इस दिन महिलाएं सात्विक भोजन बनाकर पहले अपने पितरों को और फिर कौवे आदि को अर्पित करना होता है। जितिया व्रत वाले दिन महिलाएं को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान-ध्यान करना चाहिए और पूरे दिन निर्जल व्रत रखना चाहिए। ( अशोक झा की रिपोर्ट )
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