बरसों-बरस बाद किसी परिचित से मुलाकात का वृतांत शब्दों में बांधना मुश्किल है, कोई न कोई सिरा छूट ही जाता है। 1982 में सतना जिले के मझगवां थाना में दस्यु सम्राट गया कुर्मी से पहली मुलाकात हुई थी। बुंदेलखंड में उनका नाम आतंक का पर्याय था। मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के आह्वान पर दस्यु सम्राट गया कुर्मी ने पुलिस के सामने हथियार डाले थे। बाद में उन्हें वहीं के कोलगवां थाना ले जाया गया। वहीं उनसे बीहड़ की जिंदगी, पुलिस के खौफ और बर्बरता को लेकर लंबी चर्चा हुई थी। बाद गए उन्हें जेल भेज दिया गया। सजा पूरी होने के बाद गया कुर्मी बांदा जिले की बबेरू तहसील में पड़ने वाले ज्योनाही गांव आ गए। आत्मसमर्पण के एवज में सरकार द्वारा दी गई तमाम सहूलियतों और सुविधाओं को उन्होंने ठुकरा दिया। यह कहते हुए कि बाप-दादा बहुत खेती हमरे लाने छाड़ गे हैं। गांव वापसी के बाद गया ग्राम प्रधान फिर ब्लाक प्रमुख भी निर्वाचित हुए। प्रधानी भी निरंतर उनके घर की ही रही। अब सीट आरक्षित हो जाने से पराई हो गई है। पूरा परिवार खेती-किसानी करता है।गया अब पूरी तरह से गैरिक वस्त्र धारण करते हैं, कुछ स्थूल भी हो गए हैं। लोग उन्हें गया बाबा कहकर बुलाते हैं। शायद जेल और घर के भोजन का असर है।
आने की खबर पहले ही कर दी थी तो गया बार-बार फोन करके लोकेशन पूछते रहे। आखिर हम गूगल जी की मदद और कुछ गया जी के मार्गदर्शन में गांव तक पहुंच गए। लंबा घूंघट काठे एक महिला से जब गया का घर पूछा तो उसने इशारे से बता दिया, बोली एक शब्द भी नहीं। शायद अपरिचित से बात न करने का लिहाज रहा होगा। घर के बाहर गया बेहद अपनापे के साथ मिले। बराबर इसरार करते रहे कि पहले खाना हो जाये फिर बात होगी, लेकिन जल्दी अंधेरा घिरने की दुहाई देने पर वह माने। तकरीबन दो घण्टे तक बातचीत होती रही। उन्होंने कहा-अब योगी यूपी की जरूरत बन गए हैं। अब यूपी में कोई डकैत नहीं बन सकता। क्राइम पर कंट्रोल हो गया है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के अब तक के सबसे बड़े इनामी डकैत ददुआ कर्मी से अपने रिश्ते की बात को खारिज किया। कहा कि मेरी कभी ददुआ से मुलाकात तक नहीं हुई। बातों का सिलसिला खत्म हुआ तो फिर वही आग्रह-अब खाना खा लिया जाए। काफी मान-मनव्वल के बाद वह खाना पैक कराने पर सहमत हुए। प्रेमपगी सोहारी, तरकारी, लहसुन की चटनी और अचार। गया जी को 4 बजे एक वैवाहिक कार्यक्रम में भाग लेने नरैनी निकलना था। लोग जुटने लगे थे। गया बाबा भी इस्त्री किये गैरिक पहनकर लकदक हो गए। अब चूंकि लोग उन्हें बाबा कहते हैं तो फिर उसी अनुरूप वह सिर भी डेली घुटाते हैं। गया बाबा रेडी हो गए। लेकिन, खाना पैक करवाने से वह कुपित थे। उन्होंने दूर से ही दंडप्रणाम किया। अलबत्ता अपने दोनों पुत्रों और पौत्रों को विदा करने के लिए भेजा। अतिशय विनम्र गया बाबा को देखकर कोई कह नहीं सकता कि यह आदमी कभी दस्यु सरगना रहा होगा, लोग नाम सुनकर ही थर-थर कांपने लगते थे....!!!
हम लोग लखनऊ निकल पड़े। जल्दी ही गया बाबा से विस्तृत बातचीत टाकिंग Talking अड्डा पर आएगी। बातचीत में गया बाबा काफी कुछ दार्शनिक तो कभी बतकही के चैंपियन की तरह नजर आए, पर राजनीति में आने की उन्होंने हर संभावना को खारिज कर दिया। पुत्र यदि राजनीति में जाते हैं तो उन्हें कोई गिला नहीं। बांदा जिला एक दौर में पूरी तरह से कम्युनिष्ट पार्टी के दबदबे में रहा। कुर्मी मतदाता यहां निर्णायक भूमिका में रहते हैं। लगता है शायद गया बाबा भी दूर की कौड़ी खेल रहे हैं...!!!( देश के वरिष्ठ पत्रकार राजू मिश्र की कलम से )
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