- सीमांचल में शोक की लहर, लंबे समय तक कृषि विकास पदाधिकारी के रूप में रहे कार्यरत
आज अहले सुबह सीमांचल में आधुनिक खेती के विश्वकर्मा कहे जाने वाले भागवत प्रसाद का निधन हो गया। वह 88 वर्ष के थे। पूरे सीमांचल में शोक की लहर है। वह ठाकुरगंज में कृषि प्रसार पदाधिकारी के रूप में अपनी ख्याति प्राप्त की थी। भागवत प्रसाद सिंह को ज्यादातर लोग बीओ साहब के नाम से जानते और पहचानते रहे हैं। पारिवारिक लोगों ने बताया कि उनका जन्म 5 नवंबर 1938 को पटना जिला के चक जलाल नामक गांव में हुआ था। जेपी आंदोलन के पूर्व वह 1974 के अप्रैल में हमारा ठाकुरगंज आगमन हुआ था, और इस तरह ठाकुरगंज में अपना अंतिम समय पूरा किया। वह ठाकुरगंज प्रखंड कृषि पदाधिकारी के रूप में उन्होंने 1974 में पदभार ग्रहण किया था। और इस क्षेत्र में आधुनिक कृषि क्रांति लाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है।वे एक कर्मयोगी हैं जिनका जीवन ही कृषि को समर्पित रहे। उनका बड़ा पुत्र कृष्णा सिंह उर्फ सिकंदर पटेल इन दिनों ठाकुरगंज नगर पंचायत के चेयरमैन है। जबकि छोटा पुत्र राधे कृष्ण बैंक के नौकरी को छोड़ पिता के बताए रास्ते पर आधुनिक खेती को आवाद करने में लगे है। हमें याद है जब मैं ठाकुरगंज से दैनिक हिंदुस्तान के लिए पत्रकारिता करता था।उनका घर प्रखंड विकास कार्यालय के ठीक सामने था। वहां सप्ताह में तो से चार दिन मुलाकात होती ही थी। वह हमेशा इस क्षेत्र के लोगों को आधुनिक खेती के लिए प्रेरित करते दिखाई देते थे। उनका कहना था कि आप केले की एक दो बीघा खेती करे, अगर घाटा होगा जो मैं घाटा अपने वेतन से दूंगा । अगर 7 रुपये प्रति गाछ खर्च कर मेरे बताये तरीके पर खेती करने से 10 रुपये गाछ से कम आये तो उस कमी को मैं अपने वेतन से दे दूंगा। तब किसान लोगों में हिम्मत दिखाई और उन्होने खेती किया केले की जो देखते बनी और दस रुपये पेड़ कौन कहे पन्द्रह रुपये पेड़ तक उन्हें प्राप्ति हुआ। इसके गवाह है निर्मल जैन, नागेश्वर प्रसाद, गोविन्द गाड़ोदिया,मनोज कुमार सिंह। स्वर्गीय नित्या-नन्द झा, महादेव प्रसाद अग्रवाल, विश्वानाथ केडिया सहित कई कृषि के जानकार उनके फैन थे। वह कहते थे यहां का मौसम विहार वाला नहीं है। यहां का मौसम असम केरल और बंगाल वाला है। इसलिए आप किसान भाई भी उस राज्य के खेती का आनंद लिखिए। आप सभी धान और पाट के नाम पर सर्फ समय बर्बाद करते है। उनका कहना था अगर ईश्वर (अल्लाह) ने हमें ऐसा खुद किस्मत जलवायु दिया है तो हम अपने को उसके लायक बनावें । नारियल, सुपारी, केला अनारस, रेमी, काला पीपर, साईट्रोनेला, चाय वगैरह उगाये। पाट को छोड़ें जो घाटे का रोजगार है। नगदी फसले उगाये। थोड़ी जमीन में ज्यादा कमायेंगे। ऐसा करना, होगा तभी कल्याण है। नहीं तो ईश्वर खुदा कभी खैर नहीं करेगा। आज उनके बताए रास्ते पर ठाकुरगंज सीमांचल नगदी खेती, आधुनिक खेती का हब बन गया है। कृषि के जानकारी के लिए बिहार बंगाल से नेता और अधिकारियों का अंतिम समय तक उनके यहां आना जाना लगा था। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे जिन्होंने यहां के लोगों को बंजर जमीन से सोना उपजाने का रास्ता प्रशस्त किया। ( अशोक झा की रिपोर्ट )
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