- व्रत मुख्य रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता है
अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन के लिए
सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है। आज यानि 5 अगस्त का दिन खास है आज सावन माह का आखिरी मंगलवार है साथ ही आज सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत यानि पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाएगा साथ ही आज मंगलवार यानि हनुमान के दिन का भी अनोखा संयोग बन रहा है। व्रत मुख्य रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन के लिए किया जाता है. अविवाहित लड़कियां भी यह व्रत करती हैं ताकि उन्हें अच्छा जीवनसाथी मिल सके| इस बार 5 अगस्त को सावन का चौथा और अंतिम मंगला गौरी व्रत रखा जाएगा. इस दिन एक और महत्वपूर्ण पर्व भी है - पुत्रदा एकादशी. जब दो शुभ तिथियां एक साथ आती हैं, तो उनका महत्व और भी बढ़ जाता है. इस विशेष दिन का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि यह केवल श्रद्धा का विषय नहीं, बल्कि विश्वास और पारिवारिक सौभाग्य से भी जुड़ा हुआ है| मंगला गौरी व्रत: पूजन विधि:
-इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ लाल वस्त्र पहनें। पूजा के लिए एक लकड़ी का खंभा खड़ा करें और उसके चारों ओर केले के पत्ते बांधें। इसके बाद एक कलश स्थापित करें और उस पर मंगला गौरी की मूर्ति रखें।मूर्ति सोने, चांदी या पीतल की हो सकती है।माता को सुहाग के सामान जैसे चूड़ी, बिंदी, साड़ी और नथ अर्पित करें। पूजन में 16 दीपक जलाकर आरती करें और 'श्री मंगल गौरी नमः' मंत्र का जाप करें. व्रत कथा का श्रवण अवश्य करें. पूजा के बाद 16 विवाहित महिलाओं को आमंत्रित करके उन्हें भोजन कराएं और सुहाग की सामग्री भेंट करें. यह माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से पूजा और व्रत करने पर मां पार्वती आशीर्वाद देती हैं|
पुत्रदा एकादशी का महत्व:पुत्रदा एकादशी विशेष रूप से संतान की कामना रखने वाले दंपतियों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. व्रती दिनभर उपवास रखते हैं और रातभर जागरण करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन उपवास रखने और प्रभु विष्णु का ध्यान करने से संतान प्राप्ति का योग बनता है और संतान सुख में वृद्धि होती है|शुभ मुहूर्त और खास योग: इस दिन कई शुभ मुहूर्त बन रहे हैं, जैसे कि ब्रह्म बेला, अभिजीत काल, विजय काल और रवि योग. सुबह 4:20 बजे से शुभ बेला शुरू होती है और दोपहर में अभिजीत काल दोपहर 12:00 बजे से लेकर 12:54 तक रहता है. पूजा-पाठ और व्रत के लिए यह समय सबसे उपयुक्त माना गया है। आज श्रद्धालुओं के लिए एक अद्वितीय अवसर है जब मंगला गौरी व्रत और पुत्रदा एकादशी एक साथ पड़ रहे हैं. यह दिन सिर्फ धार्मिक कार्यों के लिए नहीं, बल्कि परिवार में सुख, शांति और समृद्धि के लिए भी बहुत अहम है।।अगर पूरी आस्था और सच्चे मन से व्रत किया जाए तो मनचाहा फल जरूर प्राप्त होता है। इस व्रत को व्रत कथा करने सा सुनने के बाद ही पूर्ण माना जाता है। श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा जरूर सुननी चाहिए, ऐसा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। उसका मानना था, कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दु:खदायक होते हैं।
पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा: हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन नहीं है। न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ली, प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा। मैं अपराधियों को पुत्र तथा बाँधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान माना है। सज्जनों की सदा पूजा करता हूँ। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पुत्र नहीं है। सो मैं अत्यंत दु:ख पा रहा हूँ, इसका क्या कारण है? राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मंत्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहाँ बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए। राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे।
एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था।
सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह मैं आप लोगों का हित करूँगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो। लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले: हे महर्षे! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं। अत: आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दु:खी है। उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं। अत: उसके दु:ख से हम भी दु:खी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएँ।
यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गाँव से दूसरे गाँव व्यापार करने जाया करता था। एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि वह दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी।
राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसीलिए राजा को यह दु:ख सहना पड़ा। एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दु:ख सहना पड़ रहा है। ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है। अत: जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए।
लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी। लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया। इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसवकाल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। इसलिए हे राजन! इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। अत: संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है। ( अशोक झा की रिपोर्ट )
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