आज के नौजवान जहां डिजिटल मुद्रा और क्रिप्टो क्वाइन को बटोरने में लगे हैं। वहीं लखनऊ की रुबी सिंह के पास सौ साल से ज्यादा पुराने चांदी के सिक्कों से लेकर पुराने नोटों का अनोखा संग्रह है। यूपी की राजधानी में कई बार मुद्रा प्रदर्शनी के साथ कुछ मुद्राओं की नीलामी भी लाखों में हुई। लेकिन रुबी उन लोगों में शुमार है जो अपने संग्रह को दर्शाने में तो यकीन रखती हैं, बेचने में नहीं। इनका मानना है कि अतीत की ये मुद्राएं वर्तमान को खास और भविष्य को बेहतर बनाने का जरिया है। यूपी की मुद्रा संग्राहक के पास कई दुर्लभ सिक्के हैं जिनके माध्यम से प्राचीन भारत को जाना जा सकता है। इनमें भारतीय के साथ विदेशी मुद्रा भी हैं। रुबी बताती है मेरी मां सुमन सिंह ने मुझे यह सौगात दी थी, उन्होंने पुरानी चीजों को सहेजने की जो सीख दी थी वह समय के साथ बढ़ती गयी। इसी के कारण आज भी इसको बढ़ाने में जुटी है। यह मेरा व्यक्तिगत शौक कोई प्रोफेशनल नहीं है। मेरे पापा जगजीत सिंह भी मुझे बहुत प्यार करते थे, वह भी पुरानी वस्तुओं को सहेजकर मां की दी गई सीख को बढ़ाने का काम किए। माता जी-पिता जी अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी इस सीख की बदौलत पुराने सिक्कों से लेकर नोटों तक में मुझे उनकी झलक दिखती है।
जब मैं पांच-छह साल की थी तो मां के पास पुराने सिक्के देखकर उत्सुकतावश जानने की इच्छा करते हुए खुद इकट्ठा करने की कोशिश करती। पहली बार मां के पास एक डिब्बे में सिक्के देखे थे। तब से यह शौक मुझे भी लगा। मां के पास अंग्रेजों के समय की मुद्रा से लेकर आजाद भारत तक सिक्कों व नोटों का संग्रह रहा है। मां ने बताया कि पुरानी मुद्रा से हमें इतिहास के साथ तत्कालीन सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के बारे में भी जानकारी मिलती है। सिक्कों में सोने, चांदी और अन्य धातु की स्थिति उस समय के समाज की आर्थिक स्थिति बताती है। पुरानी मुद्रा के बारे में अध्ययन और जानकारी आवश्यक होती है। मुझे इनसे जुड़ी किताबों का भी संग्रह करने का शौक है। वर्तमान में मेरे पास सौ साल से ज्यादा पुराने चांदी के सिक्कों का कलेक्शन है। इन मुद्राओं में 1905 से लेकर द्वितीय विश्वयुद्ध के साथ 1970 में जारी एक रुपये का कई चांदी के सिक्के भी है। (लखनऊ की रूबी सिंह ने रोमिंग जर्नलिस्ट संग साझा की मां से जुड़ी यादें
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