सिलीगुड़ी कॉरिडोर चिकन नेक को लेकर चीन रच रहा साजिश
- - विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) प्रफुल्ल बख्शी ने कहा, पाकिस्तान और बांग्लादेश को करता है हथियार सप्लाई
पूर्वोत्तर भारत का सिलीगुड़ी चिकन नेक कॉरिडोर ही भारत को उत्तर-पूर्वी भारत से जोड़ता है और ये कॉरिडोर सिर्फ 22 किलोमीटर ही चौड़ा है। चीन इसी पर लगातार शिकंजा कसता जा रहा है। नये रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि पूर्वी नेपाल, दक्षिणी भूटान और उत्तर-पश्चिम बांग्लादेश से चीन की गतिविधियां चिकन नेक कॉरिडोर पर तीन तरफ से शिकंजा कस रहा है। यानि भारत की अखंडता खतरे में डालने की कोशिश हो रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के पास जवाबी रणनीति और संसाधन मौजूद हैं, लेकिन इन तीनों तरफ से बनते दबावों का मतलब होगा, कि भारत को अब अपनी निगरानी, सैन्य तैयारियां और रणनीतिक निवेश तीन गुना तक बढ़ाने होंगे। चिकन नेक पर शिकंजा कसती यह "त्रिशूल नीति" आने वाले वर्षों में भारत की जियो-पॉलिटिकल प्राथमिकताओं पर फिर से सोचने पर मजबूर कर सकती है । इस पर विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) प्रफुल्ल बख्शी ने कहा कि बांग्लादेश पाकिस्तान को चीन हथियार सप्लाई करता है। विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) प्रफुल्ल बख्शी ने बातचीत के दौरान कहा कि चीन ने बांग्लादेश पाकिस्तान, दोनों के साथ साझेदारी की है दोनों को हथियार सप्लाई कर रहा है। उदाहरण के लिए, मिग-21, चीन ने जिसकी कॉपीराइट का उल्लंघन करके नकल करके उसका एफ-7 संस्करण विकसित किया, उसे पाकिस्तान, बांग्लादेश श्रीलंका को सप्लाई किया गया। उन्होंने कहा कि चीन पाकिस्तान के निशाने पर भारत है, वहीं बांग्लादेश के साथ देश के रिश्ते अच्छे नहीं हैं। चीन दोनों देशों को मिलाकर भारत पर बड़ा दबाव बना रहा है। अगर हम पाकिस्तान से लड़ते हैं तो चीन बांग्लादेश को सपोर्ट कर सकता है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने पहले ही साफ तौर पर बोल दिया है कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर उनकी नजर हो सकती है। इन चीजों की अनदेखी नहीं की जा सकती। बख्शी ने कहा कि चीन नॉर्थ ईस्ट में बांग्लादेश से कई हथियारों की सप्लाई करता है। चीन का एक्सेस बांग्लादेश पाकिस्तान के साथ है, अगर लड़ाई होती है तो तीन फ्रंट हो जाएंगे। ऐसे में भारत को अपनी क्षमता बहुत बढ़ानी होगी। पाकिस्तान बांग्लादेश की साझेदारी इस्लाम को लेकर है। ऐसे में दोनों के बीच करीबी बढ़ रही है। बांग्लादेश धर्म के नाम पर हमारे खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। बांग्लादेश में जबरदस्त तरीके से हिंदुओं पर हमला हो रहा है। डीआरडीओ ने भारत का पहला माउंटेड गन सिस्टम विकसित कर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह अत्याधुनिक तोप प्रणाली भारतीय सेना की ताकत में कई गुना वृद्धि करेगी। इस पर बख्शी ने कहा कि डीआरडीओ की यह उपलब्धि मील का पत्थर साबित होगी। पहले भारत इसके लिए आयात पर निर्भर था। उन्होंने कहा कि युद्ध के दौरान 45 से 48 किलोमीटर के क्षेत्र में भारी तोपें चलाई जाती हैं, इससे दुश्मन के ठिकानों को ध्वस्त किया जाता है। जब फायर हो रही होती है तो दुश्मन उसकी टोह लेना चाहता है। ऐसे में फायर करने के बाद अपनी पोजिशन बदलनी जरूरी होती है। ये नए खतरे भारत, भूटान और तिब्बत के त्रि-जंक्शन पर डोकलाम में मौजूदा खतरे से अलग हैं, जहां 2017 में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच 73 दिनों तक गतिरोध चला था। बाद में चीन डोकलाम से हट गया था, जिसपर वो गुप्त रूप से दावे करता है। चीन ने डोकलाम पठार से अपनी सेना वापस जरूर बुला ली है, लेकिन उसने 269 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अपना दावा नहीं छोड़ा है और पठार से सटे अपने क्षेत्र में सैन्य निर्माण जारी रखा है। डोकलाम पठार, चिकन नेक कॉरिडोर से सिर्फ 50 किलोमीटर उत्तर में है और इस पठार पर अगर चीन का कब्जा होता है तो सिलीगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा को गंभीर रूप से खतरे में डाल सकता है। भारत के साथ संघर्ष की स्थिति में निश्चित तौर पर चीन इस कॉरिडोर पर प्रेशर बनाने की कोशिश करेगा और इसकी रक्षा के लिए भारत को भारी भरकम तैयारी करनी होगी। चिकन नेक कॉरिडोर पर शिकंजा बढ़ा रहा चीन: एक रिपोर्ट में रक्षा और रणनीतिक मामलों के एक्सपर्ट मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अविनाश प्रकाश ने कहा कि "जब भारत ने डोकलाम पठार में चीनी सैनिकों का कड़ा प्रतिरोध किया और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर किया, तो चीन चिकन नेक कॉरिडोर के पास अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराने के लिए दूसरे तरीकों को खोजने लगा। बांग्लादेश और नेपाल ने अब चीन को ऐसे मौके दिए हैं और चीन की कोशिश भूटान में रणनीतिक निवेश करना और उसका फायदा उठाकर चिकन नेक कॉरिडोर पर अपनी मजबूत रणनीतिक उपस्थिति स्थापित करने की योजना बना रहा है।"
पूर्वी नेपाल में चीन की मौजूदगी: चीन नेपाल के सबसे पूर्वी झापा जिले के दमक में एक मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से 'चीन-नेपाल मैत्री औद्योगिक पार्क' बनाने की योजना बना रहा है। दमक भारत-नेपाल सीमा से सिर्फ 55 किलोमीटर से भी कम दूरी पर है, जो चिकन नेक कॉरिडोर का पश्चिमी संरेखण बनाती है। यह पार्क नेपाल के प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली यानि केपी ओली की पसंदीदा परियोजना है, जिन्हें चीन का प्रतिनिधि माना जाता है। झापा, ओली का गृह जिला है और उन्होंने नेपाल में BRI (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) परियोजनाओं की लिस्ट में इस औद्योगिक पार्क प्रोजेक्ट को शामिल करवाया है। ये पार्क 1,422 हेक्टेयर में फैला है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह पार्क न सिर्फ निगरानी और लॉजिस्टिक्स हब के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, बल्कि पाकिस्तान समर्थित आतंकियों के लिए नया सुरक्षित मार्ग भी बन सकता है। हालांकि पार्क का काम अभी तक शुरू नहीं हो पाया है, लेकिन रिपोर्ट है कि चीन ने पार्क में फिर से अपनी दिलचस्पी बढ़ा दी है।वभारत सरकार ने अपनी चिंताओं से नेपाल को वाकिफ करवाया है। खुफिया ब्यूरो (आईबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है भारत को आशंका है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य सामान बनाने वाली चीनी स्वामित्व वाली और संचालित इकाइयां, सिलीगुड़ी गलियारे पर नजर रख सकती हैं। भारत ने पहले ही भारत-नेपाल सीमा के इतने करीब एक मेगा परियोजना में चीनी भागीदारी पर चिंता जताई है। भारत के विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि भारत की चिंताओं से काठमांडू को अवगत करा दिया गया है। हालांकि नेपाल ने पार्क में निवेश के लिए भारत को भी आमंत्रित किया है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि ये एक चाल है, क्योंकि पार्क पर चीन का ही नियंत्रण होगा।भूटान का गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी: गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी (GMC) एक भविष्य का प्रोजेक्ट है, जो इसके वर्तमान राजा जिग्मा खेसर नामग्याल वांगचुक के दिमाग की उपज है। 1,000 वर्ग किलोमीटर में फैली GMC असम के साथ भारत-भूटान सीमा के ठीक बगल में बन रही है। हालांकि भूटान के इस प्रोजेक्ट में भारत भी एक भागीदार है लेकिन चीन भी GMC में निवेश करने की योजना बना रहा है, जिसे एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र (SAR) के रूप में चलाया जाएगा। वरिष्ठ आईबी अधिकारी ने कहा कि "भूटान हमारा बहुत करीबी दोस्त है और हम इस परियोजना में भागीदार हैं। लेकिन हमें इस बात पर कड़ी नजर रखनी होगी कि GMC में चीन क्या करता है। चीनी बड़े निवेश की योजना बना रहे हैं, और सभी चीनी परियोजनाओं की तरह, हमें संदेह है कि GMC में भी निवेश अस्पष्ट होगा। इसलिए हमें लगातार सतर्क रहना होगा।" उन्होंने कहा, "यह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की प्रकृति है। वे जो कुछ भी करते हैं उसके पीछे हमेशा एक शैतानी इरादा होता है। इसलिए हमें सावधान रहना होगा।"भारत, भारत-भूटान सीमा पर सुरक्षा को मजबूत करने और निगरानी बढ़ाने की योजना बना रहा है, ताकि भविष्य में जीएमसी में अपनी मौजूदगी का उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की चीन की कोशिशों को खत्म किया जा सके। गृह मंत्रालय के आंतरिक सुरक्षा (आईएस) प्रभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जीएमसी से उत्पन्न होने वाले किसी भी चीनी खतरे का मुकाबला करने के लिए कई रणनीतिक उपाय किए जा रहे हैं। लेकिन चीन का खतरा वास्तविक है। बांग्लादेश का लालमोनिरहाट एयर बेस
इसके अलावा बांग्लादेश की अंतरिम सरकार द्वारा लालमोनिरहाट एयरबेस को फिर से जिंदा करने के लिए चीन की मदद लेने की योजना भारत के लिए गंभीर रणनीतिक चिंता का विषय बन गई है। यह एयरबेस भारत-बांग्लादेश सीमा से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और चिकन नेक कॉरिडोर के बेहद करीब है, जिसे भारत के लिए जीवनरेखा माना जाता है। भारत ने चीन और पाकिस्तान की संभावित भागीदारी पर कड़ा विरोध जताया है। रिपोर्ट है कि बांग्लादेश सेना ने भी सरकार के इस फैसले पर आपत्ति जताई है और कहा है कि किसी बाहरी देश को इस प्रोजेक्ट में शामिल नहीं किया जाएगा। लेकिन अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस हर हाल में इस प्रोजेक्ट में चीन को शामिल करना चाहते हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है यदि लालमोनिरहाट को सक्रिय किया गया और उसमें चीन की भूमिका रही, तो चीन को भारतीय सैन्य गतिविधियों की निगरानी का रास्ता साफ हो जाएगा, जिससे भारत की पूर्वोत्तर राज्यों से संपर्क व्यवस्था संकट में पड़ सकती है। भारत के लिए ये एक बड़ी चुनौती बन गया है।कुल मिलाकर देखा जाए तो भले ही भारत ने अपने डिप्लोमेटिक चैनलों के जरिए नेपाल, भूटान और बांग्लादेश को चीनी प्रोजेक्ट को लेकर भारत की चिंताओं से वाकिफ करवाया है, लेकिन इन देशों में बदलते राजनीतिक समीकरण और चीन की आर्थिक पैठ, भारत की चिंता को कम नहीं कर पा रही हैं। चीन का मकसद साफ है कि नॉर्थ ईस्ट को किसी भी तरह से खतरे में डाला जाए और भारत को घेरने की पूरी तैयारी की जाए। ( चीन बॉर्डर से अशोक झा की कलम से )
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