-भारत पाकिस्तान के बीच युद्धविराम, कितनी शांति कितना खतरा
- नाटकीय ढंग से आयी यह शांति के पीछे का कारण ओर कबतक रहेगा यह कायम
भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिन चले संघर्ष के बाद युद्धविराम लागू हो गया है। बोर्डर पर 86 घंटे के बाद पहली सुबह शांति देखी गई। ऑपरेशन सिंदूर' को सफलता के नए सोपान तक पहुंचाने का काम भारतीय सेना के संयुक्त प्रयास से संभव हुआ. एक दो नहीं बल्कि पाकिस्तान की सरजमीं पर मौजूद 11 एयरबेस को महज 90 मिनट में तबाह-ओ-बर्बाद कर दिया गया। लेकिन क्या यह शांति कायम रहेगी? यह सीजफायर भारत की शर्तों पर लागू हुआ और सिंधु जल समझौता अभी भी सस्पेंड है। भारत ने दो टूक शब्दों में कहा कि किसी भी हरकत का हम पूरी ताकत से जवाब देंगे। सूत्रों की मानें तो भारत के सब्र का बांध टूटता देख पाकिस्तान खौफ में आ गया था। पाकिस्तान को डर था कि भारत अब कुछ ऐसा करने जा रहे है, जिससे वहां तबाही आ सकती है। ऐसे में पाकिस्तान ने झुकने में अपनी भलाई समझी और सीधा संयुक्त राष्ट्र की शरण में पहुंच गया।।इसके बाद पाकिस्तान के सैन्य अभियान महानिदेशकों (डीजीएमओ) ने भारत से सीधे हॉटलाइन पर बात की और फिर सीजफायर पर सहमति बनी। जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के पहलगाम में आतंकवादियों ने 22 अप्रैल को पर्यटकों पर कायराना हमला किया था। इसमें आतंकवादियों के पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन से तार जुड़े मिले थे। इसके बाद भारत ने खुले तौर पर दुनिया के सामने हमले के दोषियों और इसके पीछे छिपे आतंकी संगठनों को चेतावनी दी थी कि वह किसी को भी नहीं बख्शेगा। भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। एक तरफ पाकिस्तान ने भारत में हमले की नाकाम कोशिशें की हैं तो दूसरी जवाबी कार्रवाई में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा है। भारत ने पाकिस्तान के चार एयरबेस को बुरी तरह ध्वस्त कर दिया है, जिसमें नूर खान एयरबेस भी शामिल है। इस बीच चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि मौजूदा स्थिति करीब से निगाह रखी जा रही है। चीन ने टकराव बढ़ने पर अपनी चिंता जाहिर की है। चीन ने भारत और पाकिस्तान को बातचीत के मेज पर वापस आने की सलाह देते हुए कहा कि वह मध्यस्थता करने का इच्छुक है। चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक प्रवक्ता ने कहा, 'हम दोनों पक्षों से अपील करते हैं कि शांति और स्थिरता के हित में संयम और शांति बरतें और शांतिपूर्वक साधनों से राजनीतिक सुलह के रास्ते पर वापस आएं। किसी भी ऐसे ऐक्शन से बचें जो तनाव को और ज्यादा बढ़ाए। यह भारत और पाकिस्तान दोनों के हित में होगा और क्षेत्र में शांति स्थिरता के लिए आवश्यक है। वैश्विक समुदाय भी इसी की उम्मीद कर रहा है। इसे खत्म कराने के लिए चीन भूमिका निभाने का इच्छुक है।'गौरतलब है कि चीन अपने फायदों के लिए पाकिस्तान को सबसे करीबी दोस्त होने के भ्रमजाल में फंसाए हुए है। चीन ने पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में बड़े पैमाने पर निवेश किया है। भारत के रुख और सैन्य ताकत को देखते हुए चीन को अब अपने प्रॉजेक्ट्स पर भी असर होने का अंदेशा होने लगा है। आतंकवाद को लेकर हमेशा चीन का बचाव करता रहा ड्रैगन अब उसकी पिटाई देख झगड़ा रोकने की इच्छा जाहिर कर रहा है।पूरी दुनिया में 50 से ज्यादा मुस्लिम देश हैं लेकिन तुर्किये और अजरबैजान को छोड़कर कोई पाकिस्तान के साथ खड़ा होते नहीं दिखना चाहता था। अब जबकि संघर्ष विराम लागू हो चुका है, यह सवाल बदस्तूर कायम है कि आखिर ये दो देश ही पाकिस्तान के सुर में सुर क्यों मिला रहे थे?विशेषज्ञों के मुताबिक, निहित स्वार्थ में उलझे कुछ देशों को छोड़कर तकरीबन सभी मुस्लिम देश अब पाकिस्तान की यह असलियत जान चुके हैं कि वह मजहब के नाम पर आतंकवादी नेटवर्क को पाल-पोस रहा है और इसका इस्तेमाल भारत और अन्य पड़ोसी देशों में हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए करता है। मुस्लिम देशों का रुख भारत-पाकिस्तान तनाव को धर्म के चश्मे से देखने के बजाय कूटनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण पर केंद्रित रहा। इसे पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका माना गया क्योंकि इस्लामाबाद लंबे समय से खुद को दक्षिण एशिया में इस्लाम के झंडाबरदार के तौर पर करता रहा है। यह अलग बात है कि भारत में मुसलमानों की संख्या कम नहीं है। बल्कि यहां तो दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है।सऊदी अरब-यूएई ने पहले ही बनाई दूरी: सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे देश पाकिस्तान को काफी धन मुहैया कराते रहे हैं लेकिन तेजी से बदलती भू-राजनीतिक स्थितियों के बीच दोनों देश पहले से ही पाकिस्तान से किनारा कर भारत के करीब आते दिख रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, इस्लामी दुनिया ने महसूस किया है कि पाकिस्तान कश्मीर मसले को बातचीत से हल ही नहीं करना चाहता बल्कि पहलगाम जैसे जघन्य हमलों की साजिश में जुटा है। सरकार और फौज दोनों ही आवाम के बीच अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए कश्मीर राग अलापते रहते हैं।
तुर्किये क्यों कर रहा पाकिस्तान का समर्थन? तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप अर्दोआन लंबे समय से ऑटोमन साम्राज्य की तर्ज पर पूरी इस्लामी दुनिया के अगुआ बनकर अपने देश का प्राचीन रुतबा लौटाना चाहते हैं। अर्दोआन की इस महत्वाकांक्षा को पाकिस्तान सरकार और शीर्ष सैन्य नेतृत्व का समर्थन मिलता रहा है। यही वजह है कि तुर्किये ने पाकिस्तान को ड्रोन और अन्य साजो-सामान मुहैया कराया। विश्लेषकों की मानें तो तुर्किये इस्लामिक सहयोग संगठन या ओआईसी में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है। 57 सदस्यीय ब्लॉक में सऊदी अरब और ईरान का वर्चस्व है और तुर्किये एक इस्लामी राष्ट्र के समर्थन के नाम पर अपनी लोकप्रियता बढ़ाना चाहता है।अजरबैजान तो तुर्किये का पिट्ठू बना: अजरबैजान की स्थिति थोड़ी अलग है। सीधे तौर पर पाकिस्तान का समर्थक न होने के बावजूद अजरबैजान तुर्किये के साथ घनिष्ठ राजनयिक, आर्थिक, रक्षा और सांस्कृतिक संबंधों के कारण भारत विरोधी पाले में खड़ा दिखा। अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव अक्सर भारत को लेकर तल्ख रवैया अपनाते रहे हैं। विशेषज्ञ इसे अंकारा का उपग्रह तक करार दे रहे थे। अजरबैजान के पाकिस्तान के साथ संबंध आर्मेनिया के खिलाफ 2020 की जंग के दौरान ही विकसित हुए थे जब इस्लामाबाद ने बाकू का खुलकर समर्थन किया और उसे सैन्य समर्थन की पेशकश भी की।
एक्ट ऑफ वॉर क्या होता है: ऐसे में ये सवाल उठता है कि आखिर ये एक्ट ऑफ वॉर क्या होता है। एक्ट ऑफ वॉर का क्या मतलब है? अंतरराष्ट्रीय कानून में 'एक्ट ऑफ वॉर' का मतलब है- किसी देश द्वारा दूसरे देश के खिलाफ की गई ऐसी कार्रवाई जो सशस्त्र बल या आक्रामकता के उपयोग के रूप में मानी जाती है और जो आमतौर पर सशस्त्र संघर्ष या युद्ध की शुरुआत का संकेत देती है।जब कोई देश किसी अन्य देश की कार्रवाई को 'एक्ट ऑफ वॉर' कहता है, तो वह संकेत देता है कि वह उन कार्रवाइयों को इतना शत्रुतापूर्ण मानता है कि वह अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत आत्मरक्षा या युद्ध जैसी प्रतिक्रिया को उचित समझता है।संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2(4) के अनुसार, सदस्य देशों को किसी अन्य देश की क्षेत्रीय अखंडता या राजनीतिक स्वतंत्रता के खिलाफ बल प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि 'एक्ट ऑफ वॉर' शब्द को संयुक्त राष्ट्र चार्टर में स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन ऐतिहासिक रूप से इसे ऐसी कार्रवाई के रूप में देखा गया है जो किसी देश को सैन्य बल के साथ जवाब देने का अधिकार देती है।इसके अलावा बीते 48 घंटों से पाकिस्तान के हमलों का जवाब देने के दौरान भारत ने मार-मार करके पाकिस्तानी रक्षा पंक्ति की कमर तोड़ दी।भारतीय रक्षा मंत्रालय की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कर्नल सोफिया कुरैशी ने पाकिस्तान के रक्षा प्रतिष्ठानों को पहुंचाए गए भारी नुकसान की जानकारी दी है। कर्नल सोफिया ने कहा, 'पाकिस्तान की ऑफेंसिव और डिफेंसिव कैपिसिटी को पूरी तरह नष्ट कर दिया है. इसके बाद पाकिस्तान कई देशों से सीजफायर के लिए भारत को राजी कराने के लिए दूसरे देशों के आगे गिड़गिड़ा रहा था। पाकिस्तान गिड़गिड़ाया और घुटनों पर आया: विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने भारत-पाकिस्तान सीजफायर की जानकारी देते हुए सोशल मीडिया पर लिखा- 'भारत और पाकिस्तान ने आज गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमति बनाई है. भारत ने सभी रूपों और अभिव्यक्तियों में आतंकवाद के खिलाफ लगातार दृढ़ और अडिग रुख बनाए रखा है. वह ऐसा करना जारी रखेगा। ( बोर्डर से अशोक झा )
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