महामना की बगिया से निकले रत्नाकर त्रिपाठी जी को जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई।
एक राष्ट्रीय ख्याति के नेता। जब मैं उन्हें राष्ट्रीय ख्याति का नेता कह रहा हँ तो मेरा तात्पर्य कतई इस बात से नहीं है कि वे छात्र आंदोलन के जमाने में कांग्रेस की स्टूडेंट में राष्ट्रीय छात्र संगठन के संयुक्त सचिव हुआ करते थे या बाद के दिनों में उसके युवा शाखा के राष्ट्रीय पदाधिकारी रहे।
कृपांक पर न तो रत्नाकर जी का अकादमिक व्यक्तित्व रहा हैं न राजनीतिक काया। सर्वत्र सुदर्शनीयता देखने को मिलता है इनके संघर्ष शील व्यक्तित्व में। रत्नाकर जी पद से नही कद से राष्ट्रीय है।अन्तर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय विषयो पर एक स्पष्ट विचार सरणी का जो विकास रत्नाकर जी के वक्तव्य में मिलता है वह सभी राष्ट्रीय समाचार चैनलो पर इनके नियमित उपस्थिति से मात्र झरोखा दर्शन ही प्रदान करता है , पूर्ण दर्शन तो छात्र-युवा के आंदोलन के दस्तावेजो के सूर्खियों मे दर्ज है इनके पराक्रम, के ,गहन अध्ययन के द्वारा ही होगा।इनके द्वारा गठित एक पुराने संगठन Free Thinkers का हिन्दी अनुवाद "बेलगाम सोचवाले" करने वाले बड़े भाई डॉ अजय शुक्ल (अजय गुरु के रूप मे सर्वजन प्रिय) ने ठीक ही सोचा होगा कि रत्नाकर जी को कोई बाँध नही सकता है । लेकिन साध तो हम लेते ही है और विशेषकर जब परिस्थितियाँ अपने नियन्त्रण से बाहर हो तब अपने कपार का बोझ इनके सिर पर डाल हममें से बहतो ने चैन की बंसी बजायी है। बाबा विश्वनाथ के इस अन्यय भक्त और माँ दुर्गा के परम आराधक का मुझपर विशेष स्नेह बना रहे।इनका असाधारण प्रत्युत्पन्नमति इतना तानाशाह है कि इनके भीतर के एक प्रबल अध्येता के लोकार्पण में रुकावट पैदा करता है ।इस तर्क प्रवीण के शास्त्र अध्ययन का झलक जब मिल जाता है तो एक विशेष आनंद मिलता है। ( महामना की बगिया से निकले अरविंद शुक्ला की कलम से )
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