RSS को देख कर समझना संभव नहीं, इसे महसूस करना होगा।'' यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने रविवार को कोलकाता के साइंस सिटी सभागार में आयोजित व्याख्यान शृंखला संघ के 100 वर्ष- नए क्षितिज के प्रथम सत्र को संबोधित करते हुए कही। संघ की भूमिका, विचारधारा और उद्देश्य को लेकर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि संघ को किसी राजनीतिक दल, खासकर बीजेपी के नजरिए से समझने की कोशिश करना पूरी तरह गलत है।अगर कोई वास्तव में संघ को समझना चाहता है, तो उसे तुलना और पूर्वाग्रह से हटकर संघ के बीच आकर उसकी कार्यपद्धति को देखना चाहिए।
'संघ कोई राजनीतिक संगठन नहीं'
मोहन भागवत ने स्पष्ट किया कि संघ के कई स्वयंसेवक अलग-अलग राजनीतिक दलों में सक्रिय हो सकते हैं, लेकिन इससे यह निष्कर्ष निकालना कि संघ स्वयं एक राजनीतिक संगठन है, सही नहीं है। उन्होंने कहा कि संघ का कोई शत्रु नहीं है, लेकिन जिनके स्वार्थ प्रभावित होते हैं, वे संघ का विरोध करते हैं और झूठे नैरेटिव फैलाते हैं। संघ का प्रयास है कि लोग उसे वास्तविकता के आधार पर समझें, न कि किसी तीसरे स्रोत द्वारा फैलाई गई भ्रांतियों के आधार पर।संघ की स्थापना का उद्देश्य क्या था?
भागवत ने संघ की स्थापना की पृष्ठभूमि को समझाते हुए कहा कि RSS का जन्म किसी राजनीतिक प्रतिक्रिया या सत्ता की आकांक्षा से नहीं हुआ। संघ की स्थापना भारत की जय-जयकार और उसे विश्वगुरु बनाने के संकल्प के साथ हुई थी। इसका उद्देश्य हिन्दू समाज को संगठित करना और समाज में आत्मविश्वास जगाना था। उन्होंने बताया कि 1857 की क्रांति की असफलता और अंग्रेजों के शासन ने डॉ. हेडगेवार को यह सोचने पर मजबूर किया कि इतने सक्षम समाज के बावजूद भारत गुलाम कैसे बना।
डॉ. हेडगेवार का त्याग और जीवन दर्शन
RSS प्रमुख ने संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के जीवन पर भी विस्तार से बात की। उन्होंने बताया कि डॉ. हेडगेवार का पूरा जीवन देशसेवा को समर्पित था। उनके माता-पिता का निधन प्लेग पीड़ितों की सेवा करते हुए हुआ। स्वयं डॉ. हेडगेवार ने गरीबी में जीवन बिताया, लेकिन वे अत्यंत मेधावी थे। उन्होंने अंग्रेजी सरकार को कभी स्वीकार नहीं किया, विवाह और नौकरी से दूर रहे और असहयोग आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
संघ की कार्यपद्धति और लक्ष्य:
मोहन भागवत ने कहा कि संघ का उद्देश्य किसी का विरोध करना या किसी को नष्ट करना नहीं है। संघ व्यक्ति निर्माण के माध्यम से समाज को मजबूत करना चाहता है। संघ अच्छे कार्यों में सहयोग करता है और समाज को जोड़ने का काम करता है। उन्होंने कहा कि संघ की शाखा का अर्थ है-दिनभर की व्यस्तता से अलग होकर एक घंटा केवल देश और समाज के लिए चिंतन करना।
हिन्दू की परिभाषा और भारत की सांस्कृतिक पहचान:
भागवत ने हिन्दू शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि हिन्दू कोई मजहब या पंथ नहीं, बल्कि एक स्वभाव है। भारत की संस्कृति और मातृभूमि को मानने वाला हर व्यक्ति हिन्दू है। हिन्दू विचारधारा सर्वसमावेशक है, जो सबके कल्याण की बात करती है। उन्होंने कहा कि भारत की विविधता उसकी एकता से ही जन्म लेती है और वैज्ञानिक भी मानते हैं कि इंडो-ईरानियन प्लेट पर रहने वाले लोगों का डीएनए हजारों वर्षों से समान रहा है
अब हमें अपने समाज को मजबूत करना है- संघ प्रमुख
मोहन भागवत के इस भाषण में संघ का महत्व और राष्ट्र की शक्ति और वैश्विक भूमिका पर भी जोर रहा. उन्होंने ये भी कहा कि भारत एक महान विरासत है और दुनिया का नेतृत्व करने के लिए तैयार होना होगा. अतीत में हम अंग्रेजों से युद्ध हार गए, लेकिन अब हमें अपने समाज को मजबूत करना है। संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार पर क्या बोले भागवत?
मोहन भागवत ने कहा कि संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार के जीवन में देश के काम के अलावा कोई दूसरा उद्देश्य नहीं था. उनके माता पिता प्लेग के रोगियों की सेवा करते थे और उसी की चपेट में आकर उनकी मौत हुई। उनके निधन के बाद डॉक्टर हेडगेवार में अत्यंत निर्धनता में जीवन बिताया पर मेधावी थे और कक्षा में सबसे आगे रहते थे। RSS चीफ ने कहा कि डॉ. हेडगेवार ने देश के लिए नौकरी नहीं की, विवाह नहीं किया और असहयोग आंदोलनों में गांव-गांव गए, तो उन पर राजद्रोह का केस चला।डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि आज देश भर में संघ एक लाख 20 हजार प्रकल्पों के जरिये देश और समाज के उत्थान का प्रयत्न कर रहा है। यदि संघ को समझना हो तो संघ के बारे में अपने विचार अलग रख कर इसे महसूस करना होगा। संघ के स्थापना की पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि संघ किसी परिस्थिति के प्रतिक्रिया स्वरूप, किसी के विरोध के लिए, किसी से स्पर्धा करने अथवा उपलब्धियां हासिल करने के उद्देश्य से नहीं बना। यह हिंदू समाज के सर्वांगीण उत्थान के लिए अस्तित्व में आया।
संघ प्रमुख ने कहा कि देश की तत्कालीन परिस्थितियां संतोषजनक नहीं थी। देश एक के बाद एक बाह्य आक्रमण झेलता आ रहा था। अंग्रेजों से पहले भी हम गुलामी का दंश झेल चुके थे। ऐसे में हिंदू समाज को संगठित करने की आवश्यकता महसूस हुई। समाज के आचरण को गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए देश भर में कार्यकर्ताओं का समूह तैयार करना जरूरी लगा।
उन्होंने कहा कि हिन्दू महज एक नाम नहीं बल्कि विशेषण है जो सर्व समावेशी है और सबका कल्याण चाहता है। जो भारत को माता मान कर उसे पूजता है, वह हिन्दू है। इस कार्यक्रम के लिए पुलिस ने सुरक्षा कारणों और अन्य कार्यक्रमों का हवाला देते हुए इस आयोजन की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।इसके बाद RSS ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। शनिवार शाम मामले पर सुनवाई हुई और अदालत ने आयोजकों को कुछ शर्तों के साथ कार्यक्रम करने की इजाजत दी।
हाई कोर्ट ने साफ निर्देश दिया है कि सभागार के अंदर लोगों की संख्या उसकी क्षमता से अधिक नहीं होनी चाहिए। यानी आयोजकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि भीड़ नियंत्रण के नियमों का पालन हो।
अदालत ने आयोजकों को यह भी कहा है कि कार्यक्रम के दौरान और उसके बाद कानून-व्यवस्था बनी रहनी चाहिए।किसी भी तरह की अव्यवस्था या नियमों की अनदेखी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इस फैसले के बाद अब आयोजकों पर जिम्मेदारी है कि वे कोर्ट के निर्देशों का पालन करें और कार्यक्रम को शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराएं। हाई कोर्ट का यह आदेश साफ करता है कि सुरक्षा और व्यवस्था से जुड़े नियमों से कोई समझौता नहीं होगा।
इस तरह कोलकाता हाई कोर्ट ने RSS कार्यक्रम को मंजूरी तो दी है लेकिन सख्त शर्तों के साथ, ताकि आयोजन के दौरान किसी भी तरह की समस्या न खड़ी हो। ( कोलकाता से अशोक झा की रिपोर्ट )
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