बांग्लादेश में ईशनिंदा के आरोपों को लेकर एक और हिंसक घटना सामने आई है। देश के मायमनसिंह ज़िले में गुरुवार(18 दिसंबर) की रात ईशनिंदा के आरोप में एक हिंदू युवक को इस्लामी भीड़ ने जंगलियों की तरह पीट-पीटकर मार डाला। और हमलों की खबरें सामने आईं। 32 वर्षीय शरीफ उस्मान हादी वर्ष 2024 में छात्र आंदोलन की आड़ में तख़्तापलट के प्रमुख चेहरों में शामिल थे। पिछले सप्ताह एक हत्या के प्रयास में गोली लगने के बाद हादी को इलाज के लिए सिंगापुर ले जाया गया, जहां अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया। हादी के मौत की खबर फैलते ही आक्रोश भड़क उठा और विरोध प्रदर्शन ढाका से अन्य शहरों तक फैल गए। इस दौरान कई जगहों पर भारत विरोधी नारे भी लगाए गए, जिससे हालात और संवेदनशील हो गए।हिंसा के बीच बांग्लादेश के पूर्व सूचना मंत्री मोहम्मद ए.ए.अराफात ने मौजूदा हालात पर गंभीर बातें उजागर की हैं। उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू में कहा, "देश में कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज़ नहीं बची है। ये भीड़ सिर्फ राजनीतिक विरोधियों को नहीं, बल्कि हर उस चीज़ को निशाना बना रही है जो सेकुलर मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती है।"अराफात ने बताया कि प्रदर्शनकारी समूहों ने प्रोथोम आलो और डेली स्टार जैसे अखबारों के दफ्तरों पर हमले किए, साथ ही छायानट जैसे सांस्कृतिक संस्थानों को भी निशाना बनाया। उन्होंने कहा, "ये लोग उदारवादियों को टारगेट कर रहे हैं। जो भी कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज़ उठाता है, उस पर हमला किया जा रहा है। यूनुस इस समूह को समर्थन दे रहे हैं।" पूर्व मंत्री ने यह भी कहा कि मौजूदा हिंसा 1971 के मुक्ति संग्राम की भावना पर हमला है। उन्होंने कहा, "अब तो अवामी लीग के आलोचक भी सुरक्षित नहीं हैं। प्रो-पाकिस्तान तत्व मजबूत हो गए हैं। लोग बदलाव चाहते थे, लेकिन अब उन्हें चरमपंथ मिला है। ये लोग लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते।"बांग्लादेश में बढ़ती हिंसा और भारत-विरोधी माहौल पर भारत में भी चिंता जताई जा रही है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि पड़ोसी देश में भारत के खिलाफ बढ़ती शत्रुता बेहद चिंताजनक है और भारत बांग्लादेश के लोगों से मुँह नहीं मोड़ सकता। सूत्रों के मुताबिक, हादी की मौत के बाद भड़की हिंसा से आगामी चुनावों को असुरक्षित दिखाने की कोशिश की जा रही है, ताकि चुनाव टाले जा सकें और कट्टरपंथी ताकतों को मजबूत होने का समय मिले। फिलहाल हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं और पूरे क्षेत्र की नजर बांग्लादेश में आगे होने वाले घटनाक्रम पर टिकी है। हाल मे कामयाब मुस्लिम युवती के डॉक्टर बनने पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हिजाब हटाया। इसको लेकर कट्टरपंथी और विरोधी लगातार हमलावर है। ऐसे लोगों को शरिया के परिप्रेक्ष्य में तलाक़-ए-हसन: न्याय, जवाबदेही और नैतिक सुधारके निर्णय को याद करना चाहिए। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 26 नवंबर, 2025 को मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत तलाक के एक रूप, तलाक़-ए-हसन की प्रथा की गहन जांच करने के लिए एक निर्णायक कदम उठाया। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस प्रथा की संवैधानिक खामियों और सामाजिक प्रभावों का विश्लेषण किया। इस्लामी न्यायविदों के अनुसार, तलाक़-ए-हसन तलाक की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सुलह का समय शामिल होता है, जिससे पति और पत्नी दोनों को अपने वैवाहिक संबंधों पर पुनर्विचार करने का अवसर मिलता है। इस पद्धति को निरस्त करने योग्य माना जाता है और नब्बे दिनों की प्रतीक्षा अवधि के दौरान सुलह का अवसर प्रदान करती है। तलाक केवल तीसरी घोषणा के बाद ही अंतिम और अपरिवर्तनीय हो जाता है, बशर्ते कि सहवास फिर से शुरू न हो। इसे तत्काल तलाक की तुलना में तलाक का अधिक विचारशील और गरिमापूर्ण रूप माना जाता है, जो दंपत्ति को आत्मचिंतन का समय देता है। इस प्रक्रिया में मुख्य भूमिका पति और पत्नी की होती है, इसमें शामिल कोई भी परिषद केवल परामर्शदात्री भूमिका निभाती है और इसमें स्थानीय समिति, शरिया बोर्ड या स्थानीय न्यायालय के प्रतिनिधि शामिल हो सकते हैं।सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप को तलाक-ए-हसन की प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं के उल्लंघन के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। निहित स्वार्थों के लिए प्रक्रिया का दुरुपयोग और हेरफेर ही पीड़ितों को सर्वोच्च न्यायालय का रुख करने के लिए विवश करता है। न्यायालय न्याय का एक माध्यम और सेतु दोनों बन जाता है, जो उस विषमता को उजागर करता है जिसमें पुरुषों के निर्णय हावी रहते हैं जबकि महिलाओं की चिंताओं को अनसुना कर दिया जाता है। न्यायालय ने सभी संबंधित पक्षों से प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करते हुए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाया। इसने मुख्य याचिकाकर्ता के पति गुलाम अख्तर से पूछताछ की, जिसने एक बिना हस्ताक्षर वाले नोटिस के माध्यम से तलाक की घोषणा का अधिकार अपने वकील को सौंपने का प्रयास किया था। न्यायालय ने प्रक्रियात्मक टालमटोल को रोकने के लिए सख्त निर्देश जारी किए, जिससे महिलाओं की असुरक्षा और बढ़ जाती है।मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने अख्तर को न केवल जिम्मेदारी से बचने के लिए पूछताछ का सामना करने के लिए तलब किया, बल्कि एक मिसाल कायम करने के लिए भी। मुख्य न्यायाधीश कांत ने टिप्पणी की, "आप अपने वकील को निर्देश दे सकते हैं, लेकिन अपनी पत्नी का सामना करने का साहस नहीं जुटा सकते? वैवाहिक विघटन को इस तरह आउटसोर्स करना प्रक्रिया की पवित्रता को कमजोर करता है।" न्यायालय ने उन्हें हीना और उनके पांच वर्षीय बच्चे को पूर्ण सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया, तीसरे पक्ष के उपयोग को अस्वीकार करते हुए जोर दिया कि वे शरिया के अनुसार स्वयं अपने इरादों को स्पष्ट करें। हीना ने अपनी कठिनाइयों का वर्णन किया, जिसमें पासपोर्ट नवीनीकरण और बेटे के स्कूल में प्रवेश से इनकार, और बिना हस्ताक्षर वाले नोटिस के कारण बहुपतित्व के आरोपों का खतरा शामिल है। ( बांग्लादेश बॉर्डर से अशोक झा की रिपोर्ट )
बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों पर कब लगेगा लगाम, भारत में भी हिजाब विवाद के बहाने हो रही अशांति फैलाने की कोशिश
दिसंबर 20, 2025
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