हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत अत्यंत पवित्र और कल्याणकारी माना गया है। शास्त्री हरिमोहन झा और पंडित अभय झा के अनुसार शास्त्रों में एकादशी व्रत को आत्मिक शुद्धि और भगवान विष्णु व देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने का विशेष साधन बताया गया है। मोक्षदा शब्द का अर्थ है ” वह जो मुक्ति प्रदान करता है “, यह भक्तों को जन्म और मृत्यु के चक्र से खुद को अलग करने पर आधारित होता है, अंततः आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त होती है, जिसे मोक्ष के रूप में जाना जाता है। इस दिन अनुयायी उपवास और प्रार्थना करते हैं तथा अपनी आध्यात्मिक जीवन यात्रा और भौतिक कल्याण दोनों के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। इसलिए इस दिन को गीता जयंती के तौर पर मनाया जाता है। वहीं शास्त्रों के मुताबिक, यह तिथि पितरों की कृपा पाने के लिए भी अत्यंत शुभ है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान व पिंडदान जैसे कार्य करने से पूर्वजों को मोक्ष मिलता है। इस साल मोक्षदा एकादशी 1 दिसंबर यानी आज है। वहीं इस दिन भगवान विष्णु भगवान की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। साथ ही पूजा के बाद व्रत कथा पढ़ना जरूरी माना जाता है। वर्ना पूजा अधूरी रह जाती है। आइए जानते हैं व्रत कथा के बारे में…
मोक्षदा एकादशी 2025 कब ? वैदिक पंचांग के अनुसार मोक्षदा एकादशी तिथि की शुरुआत रविवार 30 नवंबर को रात 9 बजकर 31 मिनट पर होगी और 1 दिसंबर को शाम 7 बजकर 1 मिनट पर तिथि का अंत होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, मोक्षदा एकादशी का व्रत 1 दिसंबर 2025 को रखा जाएगा।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा 2025 :
धार्मिक कथा के अनुसार राजा वैखनास चंपा नगरी के प्रतापी राजा थे। वे ज्ञानी थे और उन्हें वेदों का ज्ञान भी था। इतना भला राजा पाकर नगरवासी भी बेहद संतुष्ट व सुखी रहते थे। एक बार स्वप्न में राजा को अपने पिता दिखाई दिये जो नरक में कई यातनाएं झेल रहे थे। राजा ने जब ये बात अपनी पत्नी से साझा की तो रानी ने उन्हें आश्रम जाने का सुझाव दिया। वहां पहुंचकर राजा ने पर्वत मुनि को अपने सपने के बारे में बताया। पूरी बात सुनने के बाद मुनि ने राजा से कहा कि तुम्हारे पिता ने अपनी पत्नी पर बेहद जुर्म किये थे, इसलिए अब मरणोपरांत वे अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं। जब राजा ने इसका उपाय जानना चाहा तो पर्वत मुनि ने उन्हें मोक्षदा एकादशी करने की सलाह दी और कहा कि इससे प्राप्त फल को वो अपने पिता को समर्पित कर दें। राजा ने पूरे विधि-विधान का पालन कर ये व्रत रखा और उनके पिता को अपने कुकर्मों से मुक्ति मिल गई। तब से ही ये माना जाता है कि मोक्षदा एकादशी न केवल जीवित बल्कि पितरों को भी प्रभावित करती है। ( अशोक झा की रिपोर्ट )
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