बिहार सरकार के मंत्री नितिन नवीन को भाजपा ने बड़ी जिम्मेदारी दी है। नितिन नवीन को बीजेपी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद नितिन नवीन पहली बार पटना के महावीर मंदिर पहुंचे।बताया जा रहा है कि दिल्ली जाने से पहले वो पटना में पूजा-अर्चना करेंगे और फिर दिल्ली रवाना होंगे। दिल्ली में नितिन नवीन के जोरदार स्वागत की तैयारी है। यहां नितिन नवीन बीजेपी के कई शीर्ष नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं। नए कार्यकारी अध्यक्ष की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की संभावना है। नितिन बिहार ही नहीं, पूर्वी भारत से भाजपा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने वाले पहले नेता हैं। नितिन नवीन के मौजूदा भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के उत्तराधिकारी बनने के आसार हैं। ऐसे में वह पार्टी के सबसे युवा अध्यक्ष होंगे।नितिन नवीन बांकीपुर से लगातार पांच बार के विधायक हैं। 2006 में वे पहली बार विधायक बने। 2021 में पहली बार नीतीश सरकार में मंत्री बने। वर्तमान में वे पथ निर्माण और नगर विकास मंत्री हैं। उनकी नियुक्ति का पत्र भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह ने रविवार को जारी किया है। इसमें कहा गया है कि भाजपा के संसदीय बोर्ड ने नितिन नवीन को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया है। यह नियुक्ति तत्काल प्रभाव से लागू होगी। बिहार से ताल्लुक रखने वाले इस युवा चेहरे को शीर्ष नेतृत्व में लाकर बीजेपी ने न केवल हिंदी पट्टी और पूर्वी भारत को साधने की कोशिश की है, बल्कि अपने 'परिवारवाद पर प्रहार' के अभियान को और धारदार बना दिया है। यह नियुक्ति स्पष्ट संदेश देती है कि बीजेपी में कार्यकर्ताओं की प्रतिभा और मेहनत को सम्मान मिलता है, चाहे वह कितनी भी नई पीढ़ी का क्यों न हो।
पूर्वी भारत को साधने की रणनीति
बिहार से नितिन नवीन को पार्टी के शीर्ष पद तक ले जाकर बीजेपी ने स्पष्ट कर दिया है कि पूर्वी भारत उसके लिए सर्वोच्च प्राथमिकता में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर यह कहते रहे हैं कि पूर्वी भारत के विकास के बिना भारत विकसित देश नहीं बन सकता है। पूर्वी भारत से पहली बार कोई नेता पार्टी के शीर्ष पदों में शामिल हुआ है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब बिहार में बीजेपी गठबंधन सरकार में है और पहली बार नंबर वन पार्टी बनी है। इसलिए नितिन की ताजपोशी को बिहार के शानदार प्रदर्शन के लिए एक पुरस्कार भी माना जा रहा है। यह फैसला वर्तमान की राजनीति से अधिक भविष्य की सियासी रणनीति को भी दिखाता है, जहां पार्टी पूर्वी राज्यों में अपनी पकड़ और मजबूत करना चाहती है। नितिन नबीन बिहार सरकार में पथ निर्माण मंत्री और बीजेपी के छत्तीसगढ़ प्रभारी हैं. वो बिहार की बांकीपुर विधानसभा सीट (पटना) से विधायक हैं।नितिन नबीन पिछले पाँच विधानसभा चुनावों में लगातार जीतते रहे हैं। वो साल 2008 में भारतीय जनता युवा मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य रहे हैं।
बीजेपी के मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल क़रीब तीन साल पहले समाप्त होने के बाद उन्हें लगातार एक्सटेंशन दिया गया है। बीजेपी के इतिहास में यह पहला मौक़ा है जब किसी अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त होने के बाद इतने लंबे समय तक नया अध्यक्ष नहीं चुना गया हो। ऐसे में बीजेपी पर कई बार यह सवाल उठाया गया है कि देश की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली पार्टी अपना अध्यक्ष तक नहीं चुन पा रही है।
हालांकि नितिन नबीन के नाम ने भी कई लोगों को चौंकाया है.
नितिन नबीन का जन्म 23 मई 1980 को हुआ था, यानी उनकी उम्र फ़िलहाल महज़ 45 साल है. ऐसे में यह भी सवाल किए जा रहे हैं कि एक युवा नेता अध्यक्ष के तौर पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ अपनी भूमिका किस तरह निभाएंगे।
क्या उम्र बन सकती है चुनौती: बीजेपी के संविधान के मुताबिक पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष वही व्यक्ति हो सकता है जो कम से कम 15 वर्षों तक पार्टी का सदस्य रहा हो और इस लिहाज से नितिन नबीन को वर्किंग प्रेसिडेंट बनाने में कोई परेशानी नहीं है। बीजेपी सांसद और बिहार राज्य बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष संजय जायसवाल ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "आप उम्र की बात कर रहे हैं, लेकिन नितिन नबीन पाँच बार के विधायक हैं. वो छत्तीसगढ़ के प्रभारी थे, जहाँ बीजेपी ने प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज कर सरकार बनाई है। उन्होंने कहा, "बीजेपी अध्यक्षीय प्रणाली पर चलती है. जो अध्यक्ष बन जाता है, उसके पीछे सारे नेता कार्यकर्ता खड़े होते हैं। संजय जायसवाल मानते हैं कि नितिन नबीन का बिहार के एक-एक बीजेपी कार्यकर्ता से संपर्क है, ऐसा पहली बार है कि बिहार से किसी को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है, जो बिहार बीजेपी के लिए गर्व की बात है। हाल के समय में देखा गया है कि बीजेपी ने कई ऐसे चेहरों को बड़ी ज़िम्मेदारी दी है, जिनकी चर्चा आमतौर पर नहीं रही है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान और दिल्ली के मुख्यमंत्री के नाम इस सिलसिले में गिनाए जाते हैं। वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण मानते हैं कि, "ये मौजूदा बीजेपी की लोगों को हैरानी में डालने वाली थ्योरी है. आप देखेंगे कि जब जेपी नड्डा को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था तब भी लोग चर्चा करते थे कि वो पार्टी अध्यक्ष के लिहाज से वो कितने वरिष्ठ हैं। नचिकेता नारायण कहते हैं, "बीजेपी ऐसी पार्टी है जो नितिन नबीन की उम्र को ही मज़बूत पक्ष बनाकर पेश कर सकती है। पार्टी कह सकती है कि युवाओं के देश में युवाओं से बेहतर तालमेल के लिए एक युवा चेहरा चुना गया है।"
बीजेपी या आरएसएस, ये किसकी जीत: बीजेपी के लिए उसके नए अध्यक्ष का पद काफ़ी अहम माना जाता है. ख़ासकर अगले साल उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों को देखते हुए, यह ज़िम्मेदारी काफ़ी बड़ी होने वाली है.
बीजेपी में कभी किसी अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए वोटिंग नहीं हुई है. पार्टी की कोशिश ये होती है कि बीजेपी और संघ के लोग आपस में विचार विमर्श करते हैं और पार्टी की ज़रूरत को ध्यान में रखकर अध्यक्ष का चयन किया जाता है। वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला कहते हैं, "जब नितिन गडगरी को बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया था तो उनकी भी राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका नहीं थी। अब तो बीजेपी भविष्य के लिए अपना नेतृत्व तैयार कर रही है, जिसमें कांग्रेस काफ़ी पीछे है।
हालाँकि नितिन गडकरी को आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के क़रीबी माना जाता है। जबकि नितिन नबीन की संघ से कोई दूरी भले ही न हो, लेकिन उन्हें संघ का क़रीबी भी नहीं समझा जाता है। बृजेश शुक्ला कहते हैं, "नितिन गडकरी का दौर बीजेपी में आरएसएस के क़रीबियों का दौर था. अब का युग संघ के क़रीबी का युग नहीं है। अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह के क़रीबी का युग आ गया है। माना जाता है कि नितिन नबीन अपने सियासी करियर में कभी किसी विवाद से नहीं जुड़े हैं और इसलिए बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने उन पर भरोसा दिखाया है। हालाँकि नचिकेता नारायण मानते हैं कि नितिन नबीन को नरेंद्र मोदी के क़रीबी के तौर पर देखा जा सकता है.
वो एक घटना याद करते हैं, " साल 2010 की बात है जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल होने के लिए बिहार की राजधानी पटना आए थे।उस समय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अख़बारों में छपे एक विज्ञापन पर अपनी नाराज़गी जताई थी। तस्वीर दो विधायकों नितिन नबीन और संजीव चौरसिया ने छपवाई थी। वो कहते हैं," विज्ञापन की उस तस्वीर के विरोध में नीतीश कुमार ने बीजेपी नेताओं के लिए रखा गया डिनर का कार्यक्रम रद्द कर दिया था। इस तरह से हम कह सकते हैं कि जब नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीति में कोई चर्चा नहीं थी, तब से ही नितिन नबीन का मोदी की तरफ झुकाव था।"
नचिकेता नारायण मानते हैं, "नितिन नबीन को पार्टी का वर्किंग प्रेसिडेंट बनाकर नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने दिखा दिया है कि पार्टी के मामले में वो आरएसएस के मुक़ाबले अपर हैंड रखते हैं। टाइमिंग को लेकर सवाल: बीजेपी ने नितिन नबीन को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष उस दिन चुना है जिस दिन दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस ने एक रैली की है। इसमें कांग्रेस ने बीजेपी पर वोट चोरी का आरोप लगाया है।
नचिकेता नारायण कहते हैं, "बिहार की बात करें तो इस इलाक़े में खरमास का महीना शुभ नहीं माना जाता है, जो दो दिन में शुरू हो रहा है। हालाँकि इसका बीजेपी के फ़ैसले से कितना संबंध है यह कह पाना मुश्किल है, लेकिन बीजेपी 'हेडलाइन मैनेजमेंट' में माहिर है।।"अब हर जगह यही ख़बर चल रही है कि नितिन नबीन कौन हैं। नया चेहरा पेश कर लोगों को और ज़्यादा चौंकाया गया है और लोग उनके बारे में जानने के लिए ज़्यादा ही उत्सुक हैं। कांग्रेस की रैली की ख़बर कितनी बड़ी बनती ये मुझे नहीं मालूम लेकिन अब तो नितिन नबीन हेडलाइन बन गए।
हालाँकि जानकार नितिन नबीन को वर्किंग प्रेसिडेंट बनाए जाने को अलग तरीके से भी देख रहे हैं। बृजेश शुक्ला कहते हैं, "बीजेपी बहुत दूर की सोचती है वो समय गंवाना नहीं चाहती. उसके सामने अभी सवाल है कि नीतीश के बाद बिहार में कौन? ऐसी बात कोई सोच भी नहीं सकता। "इसके अलावा अभी पार्टी में आप बहुत सारे फेरबदल देखेंगे तो इस लिहाज से एक कायस्थ को अध्यक्ष बनाया है, क्योंकि वो बीजेपी के पक्के वोटर हैं और अक्सर सवाल उठाते रहे हैं कि क्या कायस्थ केवल वोट देने के लिए हैं। बृजेश शुक्ला मानते हैं कि बीजेपी फ़िलहाल कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर नितिन नबीन को परखेगी और पूरी तरह पुख़्ता होने के बाद क़रीब डेढ़ महीने के बाद स्थायी अध्यक्ष के तौर पर उनका नाम घोषित कर देगी।नितिन नबीन को लेकर दावे चाहे जो किए जा रहे हों लेकिन उनके सामने चुनौतियां कम नहीं हैं। ख़ासकर ऐसे समय जब बीजेपी कई मोर्चों पर उलझी हुई है, जिनमें विपक्ष के आरोप और आने वाले समय में उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के चुनाव सामने हैं.
उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती तो ये है कि कई नेताओं से वो काफ़ी जूनियर हैं। जहां तक बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी की बात है तो वह आरएसएस के भरोसेमंद थे और उम्र के लिहाज से भी बीजेपी के कई नेताओं से काफ़ी सीनियर थे.
जबकि नितिन नबीन बिहार की राजनीति में ही सक्रिय रहे हैं और वरिष्ठ नेताओं के साथ उनका तालमेल भी काफ़ी मायने रखेगा। नितिन नबीन साल 2016-19 में बीजेपी युवा मोर्चा के बिहार स्टेट प्रेसिडेंट थे. उन्हें पहली बार नीतीश कुमार की सरकार में साल 2021 में मंत्री बनाया गया था। ( पटना से अशोक झा की रिपोर्ट )
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