- लेकिन उसे अस्वीकार भी नहीं किया और जीवन भर साथ निभाया
- श्रीगोरक्षा पीठ से उनका था विशेष लगाव, संत मन से मजबूत नेता थे अटल जी
अटल जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था। वे एक महान नेता, कवि और राजनेता थे। सुशासन दिवस की शुरुआत साल 2014 में हुई, जब पीएम नरेंद्र मोदी की सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी को सम्मान देने और जनता में सरकार की जवाबदेही के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए इस दिन को चुना। मुझे भी उन्हें नजदीक से जानने का मौका मिला था। सीमांचल को लेकर कई बार उनसे बेबाकी से बातचीत हुई थी। श्रीगोरक्षपीठ से उनका जुड़ाव इसी भावभूमि पर खड़ा था। यह रिश्ता औपचारिक मुलाकातों का नहीं, बल्कि विश्वास, श्रद्धा और साझा वैचारिक चेतना का था। गोरखनाथ मंदिर और गोरक्षपीठ अटल जी के लिए केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा और सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक थे। 22 मार्च 2004 का दिन इस रिश्ते की गहराई को सबसे स्पष्ट रूप में सामने लाता है। लोकसभा चुनाव के प्रचार के सिलसिले में अटल जी उस दिन महराजगंज में जनसभा को संबोधित कर चुके थे। कार्यक्रम के बाद उन्हें दिल्ली लौटना था और गोरखपुर का संबंध केवल एयरपोर्ट तक सीमित था। लेकिन गोरखपुर पहुंचते ही उन्होंने अचानक गोरखनाथ मंदिर जाने का निर्णय लिया। यह कोई तयशुदा कार्यक्रम नहीं था। बल्कि मन से निकला आग्रह था। प्रधानमंत्री के इस फैसले से प्रशासनिक तंत्र असहज हो उठा। सुरक्षा और प्रोटोकॉल का हवाला दिया गया, लेकिन अटल जी ने शांति और दृढ़ता के साथ कहा कि वे महंत अवेद्यनाथ से अवश्य मिलेंगे। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दो मजबूत स्तंभ माने जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी भारतीय राजनीति में दशकों तक अटूट मानी जाती रही, लेकिन एक समय ऐसा भी आया था जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बनाने पर गंभीरता से विचार किया था। लेकिन बाद में सबकुछ ठीक हो गया।
राजनीतिक दुनिया में अपनी सादगी, मर्यादा और शानदार कविताओं के लिए याद किए जाने वाले वाजपेयी की निजी जिंदगी में एक ऐसा बंधन था जिसे उन्होंने कभी नाम नहीं दिया, लेकिन उसे अस्वीकार भी नहीं किया और जीवन भर साथ निभाया। आखिर वह महिला कौन थीं और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उनका रिश्ता क्या था, और क्यों वाजपेयी ने उनकी बेटी को अपने घर में अपनाया? आइए अटल जी की बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर इस बारे में विस्तार से जानें।
अटल और राजकुमारी की मुलाकात: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और राजकुमारी हक्सर (बाद में कौल) की दोस्ती 1940 के दशक के मध्य में ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज) में शुरू हुई थी. दोनों के बीच शुरुआती दिनों में मित्रता धीरे-धीरे गहराती चली गई, और तब के रूढ़िवादी समाज में यह एक खास बंधन बन गया. वाजपेयी ने एक प्रेम-भरा पत्र राजकुमारी की किताब में छुपा दिया था, लेकिन दुर्भाग्य से वह जवाब कभी उनके पास नहीं पहुंचा।अटल रिश्ता:
समय के साथ दोनों का रिश्ता और गहरा हुआ।राजकुमारी अटल जी से शादी करना चाहती थीं, लेकिन उनके परिवार ने रोज शाखा में जाने वाले शख्स को अपनी बेटी के लायक नहीं समझा। इसलिए दोनों की शादी नहीं हो पाई. खैर..राजकुमारी का विवाह ब्रिज नारायण कौल से हो गया, लेकिन यह विवाह उनके अटल से कनेक्शन को खत्म नहीं कर पाया. राजकुमारी के घर पर वाजपेयी अक्सर आते-जाते रहते थे और धीरे-धीरे उनका परिवार और दोस्ती स्थायी रूप से जुड़ गई. राजकुमारी के दोनों बच्चों नमिता और निहारिका के साथ भी उनका गहरा स्नेह रहा।
गोद लिया गया परिवार: 1978 में जब वाजपेयी विदेश मंत्री थे, तो राजकुमारी कौल, उनके पति और दोनों बेटियां उनके सरकारी आवास पर रहने लगे. इसी दौरान उन्होंने नमिता कौल को औपचारिक रूप से गोद ले लिया और बाद में निहारिका को भी आत्मीय रूप से अपनाया माना गया. गोद लेने का यह निर्णय पारिवारिक रूप से ही नहीं, बल्कि भावनात्मक रूप से भी गहरा था. वाजपेयी ने इन बच्चों को वही प्यार और सुरक्षा दी, जो एक पिता के रूप में अपेक्षित है।
अनकहा और गहरा बंधन: राजकुमारी कौल और अटल बिहारी वाजपेयी के रिश्ते की प्रकृति को लेकर राजनीतिक और सामाजिक बहसें भी हुईं। कुछ आलोचक और विश्लेषक यह मानते थे कि यह रिश्ता केवल गहरी दोस्ती और पारिवारिक नजदीकी थी, तो कुछ ने इसे संबंध से जोड़कर भी देखा, पर दोनों ने कभी इसे सार्वजनिक रूप से परिभाषित नहीं किया। राजकुमारी ने एकमात्र इंटरव्यू में स्पष्ट कहा कि उन्हें वाजपेयी से अपने रिश्ते के बारे में किसी से सफाई देने की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि उनके रिश्ते में पारिवारिक सम्मान और आत्मीयता स्पष्ट थी।राजनैतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया। यह रिश्ता भारतीय राजनीति में अपनी तरह का अनूठा उदाहरण था- जहां एक उच्च-स्तरीय नेता और एक शिक्षित महिला के बीच नजदीकी संबंध को मीडिया और राजनीतिक आलोचक अलग-अलग तरीकों से पेश करते रहे। आरएसएस जैसे संगठनों के भीतर भी समय-समय पर इसे लेकर चर्चाएं होती रहीं, लेकिन वाजपेयी ने न कभी इसे सार्वजनिक मसला बनाया और न ही अपने राजनीतिक करियर से इससे दूरी बनाई।
परिवार की मजबूती और जीवन भर साथ: राजकुमारी कौल और अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने बंधन को नाम से ऊपर रखकर जीवन भर निभाया। वाजपेयी की मौत के समय उनकी गोद ली हुई बेटी नमिता ने उनके अंतिम संस्कार के संस्कार में प्रमुख भूमिका निभाई थी यह दर्शाता है कि यह रिश्ता केवल औपचारिक या सतही नहीं था।
उनके अंतिम वर्ष और विरासत: राजकुमारी कौल का निधन 2014 में हार्ट अटैक से हुआ था। उनके जाने के साथ उस अनूठी दोस्ती का भी एक युग समाप्त हो गया। वाजपेयी का निधन चार साल बाद, 2018 में हुआ, और उनके जीवन व राजनीतिक योगदान को देश ने बड़े सम्मान के साथ याद किया। अपनी निजी जिंदगी की अप्रकाशित परतों के बावजूद उनका महत्व भारतीय राजनीति में सदैव एक प्रेरणा के रूप में बना रहेगा। उनका नेतृत्व केवल राजनीतिक स्थिरता तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने आधुनिक भारत की नींव को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार लागू किए। ठंड की सुबह में भी, सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में उनके योगदान पर चर्चा जारी है।1999 से 2004 के बीच उनके द्वारा लिए गए निर्णयों ने शिक्षा, कर प्रणाली, दूरसंचार, उड्डयन और ऊर्जा क्षेत्रों में ऐसे बदलाव किए हैं, जिनका प्रभाव आज भी महसूस किया जा रहा है। उनके कार्यकाल में सुधारों का मुख्य ध्यान आम नागरिकों, बुनियादी ढांचे और आर्थिक मजबूती पर था। यही कारण है कि उन्हें सुशासन का प्रतीक माना जाता है। यहां 10 महत्वपूर्ण सुधारों का उल्लेख किया गया है, जिन्होंने भारत को नई दिशा दी।सर्व शिक्षा अभियान: अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 2000 में शुरू किया गया सर्व शिक्षा अभियान देश में प्राथमिक शिक्षा में क्रांति लाने वाला था। यह कार्यक्रम छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों के लिए सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, जिसका लक्ष्य लगभग 2 करोड़ बच्चों को लाभ पहुंचाना था। चार वर्षों के भीतर, स्कूल छोड़ने की दर में 60 प्रतिशत की कमी आई, जिसने बाद में शिक्षा सुधारों की नींव रखी, जिसमें शिक्षा का अधिकार अधिनियम भी शामिल है।
कर सुधार: विजय केलकर के नेतृत्व में 2002 में गठित कार्य बल ने भारत के कर सुधारों की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। इसने पैन (PAN) के उपयोग को बढ़ावा दिया, कर प्रशासन में सुधार किया, आउटसोर्सिंग को प्रोत्साहित किया और करदाताओं को बेहतर सेवाएं प्रदान कीं। इसके सुझावों ने जीएसटी, प्रत्यक्ष कर संहिता की अवधारणा, इलेक्ट्रॉनिक कर नेटवर्क और धन कर के उन्मूलन जैसे सुधारों का मार्ग प्रशस्त किया। राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली: वाजपेयी सरकार ने 2004 में नए केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के लिए राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) की शुरुआत की, जिसमें निश्चित लाभ वाली पेंशन प्रणाली को अंशदायी योजना से बदल दिया गया। 2009 में निजी क्षेत्र के लिए खोले गए एनपीएस का उद्देश्य दीर्घकालिक पेंशन देनदारियों को कम करना है। इसके पूर्ण वित्तीय लाभ 2040 के दशक से मिलने की उम्मीद है।दूरसंचार क्रांति:
वाजपेयी सरकार के तहत 1999 की नई दूरसंचार नीति ने भारत के दूरसंचार क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन की शुरुआत की। 1990 के दशक के अंत में मोबाइल का उपयोग नगण्य था, लेकिन अब भारत तेजी से डेटा खपत में वैश्विक अग्रणी बन गया है। इस नीति ने प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया, लागत को कम किया, कनेक्टिविटी का विस्तार किया और आने वाले दशकों में उभरती डिजिटल अर्थव्यवस्था की नींव रखी।
नागरिक उड्डयन:वाजपेयी सरकार ने हवाईअड्डों के विकास में निजी भागीदारी को बढ़ावा दिया, जो उनके कार्यकाल में शुरू हुआ और 2006 में लागू किया गया। इस नीति ने दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे हवाईअड्डों को विश्वस्तरीय सुविधाओं में बदल दिया। सरकार ने विमानन टरबाइन ईंधन (एटीएफ) की कीमतों को बाजार दरों से जोड़ने की प्रक्रिया भी शुरू की, जो विमानन ईंधन की कीमतों को युक्तिसंगत बनाने की दिशा में पहला कदम था।
बिजली:वाजपेयी सरकार ने ऐतिहासिक विद्युत अधिनियम, 2003 पेश किया, जिसने राज्यों को उत्पादन, पारेषण और वितरण को अलग करने की अनुमति दी। इस सुधार ने क्षेत्र को निजी भागीदारी और प्रतिस्पर्धा के लिए खोल दिया। सरकार ने 4 गीगावाट से अधिक क्षमता वाले अल्ट्रा मेगा विद्युत संयंत्रों का प्रस्ताव भी रखा, जिससे भारत की दीर्घकालिक विद्युत उत्पादन क्षमताओं को मजबूत किया जा सके।
ऊर्जा प्रोत्साहन:वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में भारत ने पहली बार विदेशी तेल और गैस संपत्तियों में निवेश किया, जिसकी शुरुआत रूस के सखालिन क्षेत्र में 1.7 अरब डॉलर के निवेश से हुई। इसके बाद सूडान में भी निवेश किया गया। सरकार ने पेट्रोलियम की कीमतों पर नियंत्रण हटाने की पहल की, हालांकि इसके लिए उसे राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी। पेट्रोल में इथेनॉल का मिश्रण अनिवार्य कर दिया गया, जिसने बाद की सरकारों के तहत नवीकरणीय ईंधन नीतियों की नींव रखी। ( अशोक झा की कलम से )
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