बिहार का मोकामा आज सुर्खियों में है। अनंत सिंह और सूरजभान जैसे बाहुबलियों के बीच मुकाबला और दुलारचंद यादव की हत्या के बाद मीडिया की भारी भीड़ है। कैमरे और पत्रकार ऐसे जुटे हैं जैसे मोकामा की पहचान सिर्फ बंदूक और बारूद से है, लेकिन सच यह भी है कि इस मिट्टी में सिर्फ बाहुबल नहीं, स्वाद और संस्कृति भी पलती है। इसी मोकामा में कभी लौंगलता जैसी अनोखी मिठाई ने जन्म लिया।
कहते हैं कि 1758 में मोकामा के हलवाई मंगलराम साहू ने इस मिठाई की खोज की थी। उन दिनों काशी के महाराजा बलवंत सिंह अपने लश्कर के साथ यहां ठहरे थे। सर्दी का मौसम, खांसी की तकलीफ और मिठाई की ललक तीनों ने मिलकर इतिहास रच दिया। मंगलराम ने खोए, मेवे और कुरकुरे आटे की परत में जब लौंग की खुशबू समाई तो एक नई मिठाई तैयार हुई---लौंगलता। यही वह स्वाद था जिसने महाराजा को इतना लुभाया कि मंगलराम को बनारस बुला ले गए। आज भी बनारस के चेतगंज में उनके वंशज वही मिठास बेच रहे हैं।
जाहिर है, मोकामा सिर्फ संघर्षों की धरती नहीं, सृजन की भी भूमि है। जिस जगह की गलियों में बारूद की गंध है, वहीं से लौंग और लता की सुगंध भी उठती है। बाहुबलियों ने मोकामा को डर की पहचान दी, लेकिन लौंगलता ने उसे स्वाद की पहचान दी। वक्त आ गया है कि जब मोकामा का नाम लिया जाए तो सिर्फ गोलियों का नहीं, मिठाइयों का भी ज़िक्र हो, क्योंकि यहां ताकत और मिठास दोनों साथ-साथ पकते हैं। ( वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा की कलम से )
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