- भारत नहीं मानता इस फैसले को, हसीना समर्थकों में व्यापक आक्रोश
शेख हसीना ने 1967 में शेख मुजीब के जेल में रहने के दौरान अपनी मां फजीलतुन नेसा की देखरेख में प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक एम.ए. वाजेद मिया से शादी की थी। बांग्लादेश टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, फजीलतुन नेसा ने जल्दबाजी में इस जोड़े के निकाह की व्यवस्था की थी। शेख हसीना एम.ए. वाजेद मिया के दो बच्चे हैं, सजीब वाजेद जॉय साइमा वाजेद पुतुल। सजीब वाजेद जॉय का जन्म 27 जुलाई, 1971 को साइमा वाजेद पुतुल का जन्म 9 दिसंबर, 1972 को हुआ था। शेख हसीना अब तक पांच बार प्रधानमंत्री रह चुकी हैं। उन्होंने पहली बार 1996 से 2001 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। इसके बाद 2009 से 2014 तक दूसरी बार, 2014 से 2019 तक तीसरी बार, 2019 से 2024 तक चौथी बार 2024 में पांचवीं बार प्रधानमंत्री के रूप में चुनी गईं। हालांकि, छात्र विरोध प्रदर्शनों के कारण शेख हसीना को 5 अगस्त 2024 को सत्ता छोड़नी पड़ी।
2024 में हुआ छात्र आरक्षण सुधार आंदोलन एक जन विद्रोह में बदल गया। उसी वर्ष जुलाई-अगस्त में, छात्र आंदोलन पर पुलिस ने हमला किया उन पर गोलियां चलाईं, साथ ही अवामी लीग के विभिन्न स्तरों के नेताओं कार्यकर्ताओं पार्टी के सहयोगी संगठनों, छात्र लीग जुबली लीग के कार्यकर्ताओं पर भी हमला किया। परिणामस्वरूप, आरक्षण सुधार आंदोलन सरकार के पतन का कारण बन गया।
हसीना के अलावा इस मामले में पूर्व गृहमंत्री असदुज्जमां खान कमाल पूर्व पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) चौधरी अब्दुल्ला अल-ममून भी आरोपी थे। हसीना खान देश में नहीं हैं, तो पूर्व आईजीपी पुलिस के गवाह बन गए। उन्होंने माफी मांगी, जिस पर गौर करते हुए कोर्ट ने उन्हें 5 साल की सजा सुना दी।
अपने बयान में ममून ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने छात्र आंदोलन को दबाने के लिए सीधे तौर पर घातक हथियारों के इस्तेमाल का आदेश दिया था। उन्हें यह निर्देश पिछले साल 18 जुलाई को तत्कालीन गृह मंत्री असदुज्जमा खान के माध्यम से शेख हसीना से प्राप्त हुआ था।
23 अक्टूबर को सुनवाई पूरी होने के बाद, पहले फैसला सजा सुनाने की तारीख 14 नवंबर तय की गई थी। बाद में, 13 नवंबर को, आईसीटी ने घोषणा की कि वह हसीना उनके दो शीर्ष सहयोगियों के खिलाफ मामले में 17 नवंबर को फैसला सुनाएगा, आखिरकार हुआ भी यही। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने हसीना और पूर्व गृहमंत्री असदुज्जमां खान कमाल को तुरंत प्रत्यर्पित करने का सोमवार को भारत से आग्रह किया। सरकारी समाचार एजेंसी बीएसएस के अनुसार, बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, 'हम भारत सरकार से आग्रह करते हैं कि वह इन दोनों दोषियों को तत्काल बांग्लादेशी अधिकारियों को सौंप दे।' मंत्रालय ने कहा कि बांग्लादेश और भारत के बीच मौजूदा द्विपक्षीय प्रत्यर्पण समझौता दोनों दोषियों के स्थानांतरण को नई दिल्ली की अनिवार्य जिम्मेदारी बनाता है।
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण-बांग्लादेश (ICT-BD) ने बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनके सहयोगी, असदुज्जमां खान कमाल को पिछले वर्ष के छात्र विद्रोह के दौरान मानवता के विरुद्ध अपराध के लिए सोमवार को उनकी अनुपस्थिति में मौत की सजा सुनाई। पिछले साल 5 अगस्त को बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के बाद बांग्लादेश से निकलने के बाद से हसीना भारत में रह रही हैं। अदालत ने उन्हें पहले ही भगोड़ा घोषित कर दिया था। माना जा रहा है कि खान भी भारत में हैं। भारत ने क्या कहा: भारत ने सोमवार को कहा कि उसने फैसले पर गौर किया है और वह पड़ोसी देश में शांति, लोकतंत्र और स्थिरता को ध्यान में रखते हुए सभी हितधारकों के साथ रचनात्मक रूप से बातचीत करेगा। विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत लोगों के सर्वोत्तम हितों के लिए प्रतिबद्ध है।
विदेश मंत्रालय ने कहा, 'भारत ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के संबंध में 'बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण' द्वारा सुनाए गए फैसले पर गौर किया है।' उसने कहा, 'एक करीबी पड़ोसी के रूप में भारत बांग्लादेश के लोगों के सर्वोत्तम हितों के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें उस देश में शांति, लोकतंत्र, समावेशिता और स्थिरता शामिल है।' विदेश मंत्रालय ने कहा, 'हम इस दिशा में सभी हितधारकों के साथ सदैव रचनात्मक रूप से जुड़े रहेंगे।हसीना के समर्थक उन्हें आधुनिक बांग्लादेश का निर्माता मानते हैं, जबकि आलोचक उन्हें सड़कों पर उठने वाली आवाजों को दबाने वाली तानाशाह कहते थे। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि जिस न्यायाधिकरण का गठन उन्होंने युद्ध अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए किया था, वही एक दिन उन्हें मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए कठघरे में ला खड़ा करेगा। 77 वर्षीय हसीना के राजनीतिक जीवन में आया यह मोड़ दुनिया के किसी देश पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली महिला शासनाध्यक्ष की कहानी का एक दुखद अंत है।
सत्ता के शिखर पर हसीना का उदय : शेख हसीना का जन्म 1947 में एक राजनीतिक परिवार में हुआ था। उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति थे। ढाका विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद हसीना छात्र राजनीति में एक्टिव हुईं। उनके जीवन में सबसे बड़ा दुख 1975 के सैन्य तख्तापलट के बाद आया, जब उनके माता-पिता और तीन भाइयों सहित परिवार के कई सदस्यों की निर्मम हत्या कर दी गई।
उस समय विदेश में होने के कारण वह और उनकी बहन रेहाना बच गईं। भारत में शरण लेने के छह साल बाद, मई 1981 में वह बांग्लादेश लौटीं, जहां उन्हें उनकी गैर-मौजूदगी में ‘अवामी लीग’ का महासचिव चुन लिया गया था। इसके बाद बांग्लादेश की राजनीति में उनकी प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया के साथ शुरू हुई वैचारिक लड़ाई, जिसे ‘बेगमों की लड़ाई’ कहा जाता है ने तीन दशक से अधिक समय तक देश की दिशा तय की।
एक लंबा शासनकाल और विकास की कहानी
शेख हसीना पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बनीं। हालाकि 2001 में वह सत्ता से बाहर हो गईं, लेकिन 2008 में उन्होंने प्रचंड बहुमत से वापसी की और फिर उनके शासन का एक लंबा दौर शुरू हुआ। लगातार चुनाव जीतकर वह दुनिया में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली महिला शासनाध्यक्षों में से एक बन गईं। उनके कार्यकाल में बांग्लादेश ने जबरदस्त आर्थिक विकास देखा। पद्मा ब्रिज जैसे बड़े बुनियादी ढांचे तैयार हुए, गरीबी कम हुई और देश एक वैश्विक परिधान महाशक्ति बन गया। उनके समर्थकों के लिए यह सब हसीना की दूरदर्शिता का परिणाम था।विरोध, पतन और मौत की सजा: इन उपलब्धियों के बावजूद, हसीना पर हमेशा विरोधी आवाजों को दबाने, मीडिया को नियंत्रित करने और विपक्षी नेताओं को जेल भेजने के आरोप लगते रहे। उनकी सत्ता का पतन 2024 में तब शुरू हुआ जब सरकारी नौकरियों में आरक्षण की घोषणा को लेकर छात्रों के नेतृत्व में देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन शुरू हुआ। सरकार द्वारा प्रदर्शनकारियों पर कड़ी कार्रवाई के बाद हिंसा भड़क उठी, जिसने उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने और भारत भागने के लिए मजबूर कर दिया। इसके बाद बनी अंतरिम सरकार ने उस अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) का पुनर्गठन किया, जिसने 2024 के प्रदर्शनों के दौरान की गई कार्रवाई के लिए हसीना पर मानवता के खिलाफ अपराधों का मुकदमा चलाया। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन प्रदर्शनों में लगभग 1,400 लोग मारे गए थे। सोमवार को ICT ने कई महीनों की सुनवाई के बाद हसीना को मौत की सजा सुनाई। फिलहाल भारत में रह रहीं हसीना अब सीमा पार से उस देश को देख रही हैं जिस पर उन्होंने इतने लंबे समय तक शासन किया और जिसके विकास में उनका इतना बड़ा योगदान था। ( बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा की रिपोर्ट )
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/