बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले मंदिर-मस्जिद की राजनीति फिर चरम पर है। तृणमूल कांग्रेस (TMC) के विधायक हुमायूं कबीर द्वारा मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद बनाने के बयान के बाद अब भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता शंखवाह सरकार ने बड़ा दावा किया है।2026 के चुनावी महाभारत में भले ही देर हो लेकिन धार्मिक शक्ति प्रदर्शन में जरा भी देरी नहीं दिख रही. तारीख से लेकर वक्त और लोकेशन तक सब फिक्स है. बाबरी मस्जिद के जवाब में गीता के श्लोक और राम मंदिर लॉन्च हो चुके हैं। दो हफ्ते के अंदर बंगाल बहुत बड़ा हॉट स्पॉट बन सकता है. धर्म वाले एजेंडे में सबको अपने वोटों की लहलहाती फसल दिख रही है. स्क्रिप्ट तैयार है. किरदार भी एक्शन मोड में है। ममता बनर्जी के बड़बोले विधायक हुमायूं कबीर ने 6 दिसंबर को न्यू बाबरी मस्जिद की नींव रखने का ऐलान किया है तो सात दिसंबर को मंत्रोउच्चार के साथ गीता का सामूहिक पाठ होगा.
बाबरी वाले कार्यक्रम में हजारों लोगों के आने का अनुमान है जबकि गीता पाठ में 5 लाख लोगों के जुटने का अनुमान है…
बाबरी कार्यक्रम के लिए इमामों को न्योता दिया गया है जबकि गीता पाठ में करीब 2 हजार साधु संतों को निमंत्रण है. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा स्पीकर और गवर्नर को भी न्योता भेजा जाएगा। हुमायूं कबीर के प्रोग्राम में एक विशेष समुदाय पर फोकस है जबकि गीता पाठ में सभी समुदायों को बुलावा भेजा जा रहा है। बाबरी मस्जिद की लोकेशन मुर्शिदाबाद का मुस्लिम बहुल इलाका बेलडांगा है. वहीं गीता का सामूहिक पाठ यहां से 200 किलोमीटर दूर कोलकाता के परेड ग्राउंड में होगा।
बंगाल में धर्म पर सियासी बखेड़ा
वैसे बंगाल में सामूहिक गीता पाठ 2023 में भी हुआ था लेकिन इस बार टाइमिंग महत्वपूर्ण है. सनातन संस्कृति संसद की ओर से स्वामी प्रदीप्तानंद महाराज ने कार्यक्रम की जानकारी दी. उनका दावा है कि बड़े स्तर पर तैयारी है. नेपाल और बांग्लादेश से भी साधु संतों की टीम आने वाली है. वैसे अब बंगाल में मामला सिर्फ बाबरी मस्जिद और गीता पाठ तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका धार्मिक एक्सटेंशन हो चुका है. इसमें राम मंदिर की भी एंट्री हो चुकी है. लेकिन ये अयोध्या का भव्य राम मंदिर नहीं बल्कि बंगाल का राम मंदिर है जिसका संकल्प बीजेपी के एक नेता ने लिया है, जिस मुर्शिदाबाद में बाबरी के बैनर लगे हैं.
उसी मुर्शिदाबाद में राम मंदिर वाले पोस्टर भी लगाए गए हैं, जिन पर राम मंदिर के मॉडल के साथ प्रभु राम की तस्वीर भी लगी है. पोस्टर पर जय श्री राम का उद्घोष है. तारीख लिखी है 6 दिसंबर 2025, जिस जगह ये मंदिर बनाने का जिक्र है. वो लोकेशन है- मुर्शिदाबाद का बहरमपुर यानी बीजेपी और टीएमसी के बीच बंगाल में अभी से मंदिर मस्जिद वाला पोस्टर वॉर शुरू है। बाबरी का जवाब राम मंदिर-गीता पाठ से
हुमायूं कबीर को उनके ही घर मुर्शिदाबाद में ये चैलेंज दिया बीजेपी नेता शंखवाह सरकार ने. मतलब न्यू बाबरी का जवाब सिर्फ गीता पाठ से ही नहीं, राम मंदिर से भी दिया जाएगा. इससे बंगाल में मस्जिद-मंदिर की सियासत और हिंदू मुस्लिम वाली चिंगारी को और हवा मिल गई है।राजनीति में हर चाल के पीछे नफा-नुकसान वाली थ्योरी होती है. आंकड़ों से लगता है कि बंगाल में मजहबी प्लान की आड़ में वोटों के शुद्ध लाभ वाला बड़ा गेम है 9 करोड़ की आबादी में लगभग ढाई करोड़ मुस्लिम: 2011 की जनगणना के मुताबिक बंगाल की कुल 9 करोड़ की आबादी में लगभग ढाई करोड़ मुस्लिम हैं यानी 27 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा, जो राज्य की 294 विधानसभा सीटों में करीब 120 सीटों पर जीत हार में निर्णायक माने जाते हैं. अगर पिछले दो विधानसभा चुनाव में वोटिंग का ट्रेंड देखें तो मुस्लिम मतदाता की पसंद टीएमसी बनी हुई है.
2016 में 51 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स का समर्थन ममता बनर्जी को मिला. 2021 में ये आंकड़ा बढ़कर 75 प्रतिशत हो गया जबकि इन दोनों चुनावों में हिंदू वोटर्स के समर्थन में कमी देखी गई. जाहिर है बाबरी बनाम गीता पाठ और राम मंदिर वाला संदेश चुनाव से पहले पूरे बंगाल में फैलने वाला है. नेता और राजनीतिक दलों की ये कोशिश होगी कि चिंगारी सुलगती रहे ताकि उस नाम पर चुनावी फायदा लिया जा सके।
मंगलवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 24 परगना जिले मतुआ समुदाय को संबोधित करते हुए केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर जमकर बरसीं।ममता बनर्जी किसी भी हाल में SIR (विशेष गहन पुनरीक्षण) प्रक्रिया बंगाल में को रुकवाना चाहती है, लेकिन केंद्र सरकार ने दो टूक कहा है कि यह प्रक्रिया तो होकर रहेगी।23 सालों में बंगाल के 10 जिलों में दोगुनी हुई आबादी: बीजेपी
हाल ही में बीजेपी नेता अमित मालवीय ने एक डाटा शेयर करते हुए 'एक्स' पर पोस्ट किया। पोस्ट के जरिए उन्होंने दावा किया कि 2002 में जब भारत के चुनाव आयोग ने विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अंतिम बार आयोजित किया गया था, और 2025 के बीच पश्चिम बंगाल में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या में 66% की वृद्धि देखी गई है। राज्य में मतदाताओं की संख्या 4.58 करोड़ से बढ़कर 7.63 करोड़ हो चुकी है।
चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चलता है कि मतदाताओं में सबसे अधिक वृद्धि वाले शीर्ष 10 जिलों में से नौ बांग्लादेश की सीमा से लगे हैं।जिन 9 सीमावर्ती जिलों में सबसे तेज वृद्धि देखी गई है, वे हैं- उत्तर दिनाजपुर (105.49% वृद्धि), मालदा (94.58%), मुर्शिदाबाद (87.65%), दक्षिण 24 परगना (83.30%), जलपाईगुड़ी (82.3%), कूच बिहार (76.52%), उत्तर 24 परगना (72.18%), नदिया (71.46%), और दक्षिण दिनाजपुर (70.94%)। शीर्ष 10 में एकमात्र गैर-सीमावर्ती जिला बीरभूम (73.44%) है।बीजेपी का कहना है कि अगर बांग्लादेशियों को सरकार देश से बाहर निकालना चाहती है तो इससे आखिर ममता बनर्जी को क्या परेशानी है? आखिर क्यों वो बांग्लादेश घुसपैठियों की पैरवी कर रही हैंं?एक तरफ जहां बीजेपी ममता बनर्जी पर सवालों की बौछार कर रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर सीएम ममता पर वोट बैंक की राजनीतिक करने भी आरोप लगा रही है। चुनाव आयोग के ताजा आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि पिछले 23 साल में बांग्लादेश की सीमा से लगते पश्चिम बंगाल के 9 जिलों में रजिस्टर्ड वोटर्स की तादाद में बेहिसाब बढ़ोतरी दर्ज की गई। दरअसल, बंगाल के सीमावर्ती जिलों में भारी संख्या में बांग्लादेश से आए शरणार्थी दशकों से बसे हैं। इनमें बड़ी संख्या उन समुदायों की है जिनका राजनीतिक झुकाव टीएमसी की ओर रहा है। SIR के दौरान कड़ी जांच में इन लोगों के नाम मतदाता सूची से हटने की आशंका सबसे बड़ी वजह है, जिसे टीएमसी अपने लिए सीधा चुनावी नुकसान मानती है।राज्य के 9 सीमा जिलों में पंजीकृत मतदाताओं में 70 से 105 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज हुई है। बीजेपी इसे "घुसपैठ" का संकेत बताती है, जबकि टीएमसी इसे भ्रामक निष्कर्ष और राजनीतिक प्रोपगेंडा कहकर खारिज कर रही है। यही विवाद SIR को राजनीतिक मोड़ दे रहा है।
चुनाव से ठीक पहले SIR क्यों: टीएमसी
टीएमसी का आरोप है कि SIR को ऐसे समय पर आगे बढ़ाया जा रहा है जब चुनाव में कुछ ही महीने बचे हैं। पार्टी का दावा है कि यह प्रक्रिया विपक्षी वोट कम करने और टीएमसी के मजबूत इलाकों को निशाना बनाने की कोशिश है।सीधे तौर पर समझें तो राज्य की लगभग 100 विधानसभा सीटें मुस्लिम और शरणार्थी आबादी वाले इलाकों में हैं। ये सीटें पिछले पंद्रह वर्षों से ममता बनर्जी की चुनावी ताकत का केंद्र रही हैं।
SIR की वजह से अगर इन इलाकों में बड़ी संख्या में नाम हटते हैं, तो टीएमसी की पूरी चुनावी गणित हिल सकती है।
दशकों से बसे लोगों को 'बाहरी' कहना गलत: ममती बनर्जी
सीएम ममता बनर्जी का कहना है कि जिन परिवारों के तीन-तीन पीढ़ी बंगाल में रह रहे हैं, वे किसी भी तरह से बाहरी नहीं हो सकते।।उनके अनुसार SIR सामाजिक और मानवीय दृष्टि से भी संवेदनशील मुद्दा है, क्योंकि इससे उन लोगों पर असर पड़ेगा जिनकी पूरी ज़िंदगी इसी राज्य में बनी है। अब राज्य की डेमोग्राफी पर बात करना बेहद जरूरी है। बंगाल आबादी के लिहाज से देश में चौथे नंबर पर है, लेकिन क्षेत्रफल के हिसाब से इसका 13वां नंबर है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, पश्चिम बंगाल की आबादी 9.13 करोड़ थी, अब यह 10 करोड़ के करीब पहुंच चुकी है। राज्य में 23 जिले हैं। 294 विधानसभा सीटों वाले बंगाल में लड़ाई बीजेपी और टीएमसी के बीच ही है। बंगाल में 34 सालों तक शासन करने वाली लेफ्ट में अब लड़ाई करने की शक्ति नहीं बची।ममता दीदी का 100 सीटों वाला 'अजेय किला'धार्मिक और जातीय लिहाज से विविधताओं वाले इस राज्य में कुल जनसंख्या में करीब 30% आबादी मुस्लिम है। यहां करीब 100 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक हैं। 46 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम जनसंख्या 50 % से ज्यादा है।यह जगजाहिर है कि राज्य की 27 प्रतिशत मुस्लिम आबादी टीएमसी को ही अपनी पहली पसंद मानते हैं। इन्हीं 100 सीटों की वजह से ममता बनर्जी पिछले 15 साल से बंगाल में अजेय हैं। सीधे तौर पर समझें तो मुकाबला 194 सीटों पर ही है। अगर बीजेपी को बंगाल जीतना है तो अकेले दम पर 150 सीटें जीतनी होंगी। पार्टी के लिए यह एक दुर्लभ कार्य से कम नहीं है। वहीं, मुस्लिम समुदाय के अलावा, बंगाल में एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो बीजेपी को 'बाहिरागोतो' यानी बाहरी समझते हैं।क्या है ममता दीदी की सबसे बड़ी ताकत?
दरअसल, जिस तरह बीजेपी अन्य राज्यों में जिस तरह बुलडोजर राज, एंटी रोमियो स्क्वड, त्योहारों में नॉन वेज पर प्रतिबंध जैसे कदम उठाती है, वो बंगाल के लोगों को ज्यादा रास नहीं आता। यहां दुर्गा पूजा त्योहार में भी खान-पान पर कोई पाबंदी नहीं है।एक तरफ जहां, ममता बनर्जी अगर मुस्लिमों की पैरवी करती हैं, तो दूसरी ओर उनका एक सॉफ्ट हिंदुत्व वाला चेहरा भी है। त्योहारों में वो पूजा-पंडाल जाती हैं। पूजा-पाठ करती हैं और मंत्र पढ़ती हैं। इस वजह से राज्य के हिंदू समुदाय को दिल में भी वो बसती हैं।बिहार चुनाव में बीजेपी की जीत का सबसे बड़ा हथियार 'मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना' ही था। राज्य में बीजेपी महिलाओं के खाते में 10000 रुपये इसलिए ट्रांसफर करने में कामयाब हो पाई क्योंकि वहां एनडीए की सरकार है, लेकिन बंगाल में समस्या है कि बीजेपी चाहते हुए भी ऐसी स्कीम लागू नहीं कर सकती।बंगाल में महिला वोटर्स को कैसे साध रहीं दीदी?वहीं, दूसरी ओर ममता दीदी की ओर से बंगाल की महिलाओं को 'लक्ष्मी भंडार योजना' के तहत हर महीने सीधे महिलाओं के खातों में 1,000-1,200 रुपये डाले जाते हैं। यानी इस बार बीजेपी को अपनी बनाई दवाई की घूंट पीनी पड़ेगी।2021 विधानसभा चुनाव रिजल्ट पर नजर डालें तो बीजेपी का वोट शेयर 38.1 फ़ीसदी रहा जबकि ममता बनर्जी का 47.94 फ़ीसदी। ममता बनर्जी को 294 में से 213 और बीजेपी को 77 सीटों पर जीत मिली। इस 10 प्रतिशत वोट शेयर को पाटने के लिए बीजेपी ने अपना सारा जोर लगा दिया है
घुसपैठिए और वोट बैंक की कहानी
1970 के दशक के दौरान बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद लाखों शरणार्थी अवैध रूप से राज्य में आकर बस गए। 1977 से लेकर 2011 तक बंगाल पर राज करने वाली CPM सरकार ने इसे अपने वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया। साल 2002 में जब SIR के तहत 28 लाख नाम हटाए गए थे, तो उस दौरान ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग की इस कार्रवाई का स्वागत किया था, लेकिन वक्त बदलने के साथ ही सीपीएम का यह वोट बैंक टीएमसी की ओर शिफ्ट हो गया।बांग्लादेश से आए ज्यादा लोग बांग्लादेश से सटे सीमा वाले जिलों में रहते हैं। इन जिलों में रहने वाले लोगों के लिए नेता का मतलब सिर्फ ममता बनर्जी ही है। अगर एसआईआर की वजह से इन शर्णार्थियों का नाम वोटर लिस्ट से कट जाता है तो टीएमसी के लिए यह एक बड़ा झटका होगा। चाहे हिंदू हो या मुस्लिम समुदाय, कोई नहीं चाहता कि उनका हक कोई बाहरी आकर छीन ले।क्या बड़ी गलती करी रहीं ममता बनर्जी?भले ही बंगाल में ममत बनर्जी के पक्ष में कई चीजें हैं, लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है कि बंग्लादेशी शर्णार्थियों की ओर से बैटिंग करना उनकी सबसे बड़ी गलती भी साबित हो सकती है। दरअसल, कोई भी नागरिक यह नहीं चाहता कि उनके मोहल्ले में कोई ऐसा परिवार आकर बसे जो उनके देश का न हो।बंगाल की जनता भी चाहती है कि उनकी जमीन पर सिर्फ देशवासी ही रहें। ऐसे में अगर ममता बनर्जी बांग्लादेशी शर्णारथियों के लिए हमदर्दी क्यों दिखा रहीं हैं यह बात बंगाल राज्य के लोगों को भी जरूर समझ आ रही होगी।'मिशन बंगाल' में जुटी बीजेपी बंगाल विधानसभा चुनाव में करीब पांच महीने का वक्त बचा है। बीजेपी ने मिशन बंगाल की तैयारियां शुरू कर दी हैं। छह राज्यों से 12 वरिष्ठ नेताओं को बंगाल में तैनात किया गया है, जिनमें छह संगठन मंत्री और छह सहायक नेता या मंत्री शामिल हैं। ये नेता अगले पांच महीनों तक बंगाल में डेरा डालेंगे और टीएमसी के गढ़ों में सेंध लगाने के साथ-साथ वेलफेयर योजनाओं का प्रचार करेंगे।केंद्रीय स्तर पर जिम्मेदारी भूपेंद्र यादव को दी गई है, जो बंगाल के लिए मुख्य चुनाव प्रभारी होंगे। उनके साथ पूर्व त्रिपुरा सीएम और लोकसभा सांसद बिप्लब कुमार देब सह-प्रभारी के रूप में काम करेंगे।राढ़बंगा, हावड़ा-हुगली-मेदिनीपुर, उत्तर बंगाल, कोलकाता-दक्षिण 24 परगना, और उत्तर 24 परगना को बीजेपी ने 5 अलग-अलग जोन में बांटा है। बंगाल में बीजेपी "घुसपैठ" को एक बड़ा चुनाव मुद्दा बनाने जा रही है।जिस तरह SIR के खिलाफत करते हुए ममता दीदी बीजेपी और चुनाव आयोग को कोस रही हैं, उससे आखिर किसका फायदा होगा ये चुनाव के बाद ही पता चलेगा, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि बंगाल में चुनावी खेला शुरू हो चुका है। ( बंगाल से अशोक झा की रिपोर्ट )
#बंगाल #घुसपैठ #हिंदू #SIR
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/