जल जंगल-जमीन पर आदिवासियों का राज होगा। यह ऐलान करने वाले आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा से अंग्रेज भी खौफ खाते थे। बिरसा ने एक ऐसा नारा दिया था, जो उन्हें आदिवासियों के बीच भगवान बनाता था। बंगाल में आज भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने बागडोगरा में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया। आज उनकी 150वीं जयंती पर पीएम नरेंद्र मोदी ने भी श्रद्धांजलि दी है। जानते हैं उनकी अद्भुत कहानी। आदिवासियों के भगवान माने जाने वाले बिरसा मुंडा की 15 नवंबर को 150वीं जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धांजलि दी है। पीएम मोदी गुजरात में नर्मदा जिले की यात्रा के दौरान याहामोगी देवमोगरा धाम में पूजा करने वाले हैं। यह मंदिर आदिवासी समुदाय की कुलदेवी पंडोरी माता (याहामोगी) का है, जो नर्मदा जिले के सागबारा तालुका के देवमोगरा गांव में स्थित है। जानते हैं बिरसा मुंड की अमिट कहानी।आदिवासियों की कुलदेवी हैं याहा पंडोरी देवमोगरा माता प्रधानमंत्री ने 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है। इस बार राष्ट्रीय स्तर का मुख्य कार्यक्रम प्रधानमंत्री की मौजूदगी में गुजरात के नर्मदा जिले के डेडियापाड़ा में होगा। जहां प्रधानमंत्री नर्मदा जिले में पूजा-अर्चना करने वाले हैं। माना जाता है कि यहां स्वयंभू याहा पंडोरी देवमोगरा माता बहुत पुराने समय से विराजमान हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान के आदिवासी समुदाय इन्हें अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते हैं। पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद पहला उलगुलान 1857 के बाद बिरसा मुंडा की अगुवाई में आदिवासियों का अंग्रेजों के खिलाफ ऐसा पहला महासंग्राम था, जिसे उलगुलान कहा गया। 1789 से 1820 के बीच मुंडा जनजाति के बीच अंग्रेजी राज के खिलाफ विद्रोह की भावना सुलग रही थी। वजह थी खुंटकट्टी व्यवस्था पर चोट। खुंटकट्टी छोटानागपुर के मुंडाओं के बीच पाई जाने वाली एक प्रथागत संस्था थी, जो एक ही किल्ली (कुल) के सभी परिवारों के बीच भूमि का स्वामित्व प्रदान करती है, जिन्होंने भूमि साफ की थी। जंगल को काटकर जमीन को खेती योग्य बनाया। अंग्रेजों की समाज को बांटने, दमन करने की नीति ने आदिवासियों के मन में उनके खिलाफ नफरत भर दी। मिशनरियों की आलोचना के चलते स्कूल से निकाले गए । 1850 से पूरे आदिवासी क्षेत्र में ईसाई धर्म का प्रचार भी जोरों से शुरू हुआ। ऐसे ही दौर में 1875 में बिरसा मुंडा का जन्म उलिहातू गांव में सुगना मुंडा और कर्मी मुंडा के घर में हुआ। शुरुआत में वो उनके परिवार ने ईसाई धर्म अपना लिया था। हालांकि, बाद में उनका ईसाइयों से मोहभंग हो गया। बिरसा ने ईसाई मिशनरियों के आदिवासी जमीनों पर कब्जा करने के पैंतरे को पहचान लिया था। मिशनरियों की आलोचना की वजह से उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। युवा बिरसा सरदार आंदोलन में शामिल हो गए, जिसका नारा था -'साहब-साहब एक टोपी है।' यानी सभी गोरे एक जैसे होते हैं। वो सत्ता की टोपी होते हैं। जब बिरसा माने जाने लगे भगवान, हुए पॉपुलर : बिरसा ने ईसाई धर्म छोड़कर 1891 से 1896 तक धर्म, नीति, दर्शन का ज्ञान हासिल किया। आंदोलन के साथ-साथ वह धर्म और नीति का उपदेश भी देने लगे, जिससे बड़े पैमाने पर उनके अनुयायी बने। ऐसे बिरसा की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि उनके अनुयायी 'बिरसाइत' कहलाने लगे। बिरसा ईश्वर के दूत और भगवान तक माने जाने लगे। बिरसा ने ऐलान कर दिया सरकार खत्म : अगस्त, 1895 में वन संबंधी बकाये की माफी का आंदोलन चला। बिरसा ने बकाये की माफी के लिए चाईबासा तक की यात्रा की। गांव-गांव से रैयतों को एकजुट कर चाईबासा ले जाया गया। मगर, अंग्रेजी हुकूमत ने बिरसा की मांग को ठुकरा दी। बिरसा ने ऐलान कर दिया कि सरकार खत्म। अब जंगल-जमीन पर आदिवासियों का राज होगा। उन्होंने नारा दिया अबुआ दिसुम, अबुआ राज। यानी हमारे देश पर हमारा राज होगा।गिरफ्तार करने के बाद भी जेल से छुड़ाया। 9 अगस्त, 1895 को चलकद में पहली बार बिरसा को गिरफ्तार करने की कोशिश की गई, मगर उनके अनुयायियों ने पुलिस से उन्हें छुड़ा लिया। 16 अगस्त, 1895 को गिरफ्तार करने आए पुलिस वालों को बिरसा के 900 अनुयायियों ने भगा दिया। 24 अगस्त, 1895 को पुलिस अधीक्षक मेयर्स के नेतृत्व में पुलिस ने रात में ही बिरसा को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें रांची जेल ले जाया गया। सुबह बिरसा के चाहने वालों की भीड़ जेल के बाहर जमा हो गई। उन पर यह आरोप लगा कि वह चलकद में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह करने के लिए लोगों को भड़का रहे थे। कोर्ट ने बिरसा और उनके 15 साथियों को 2 साल की जेल की सजा सुनाई गई। बाद में बिरसा को रांची जेल से हजारीबाग जेल भेज दिया गया।बिरसा रिहा किए गए, मगर करने लगे गुप्त सभाएं। 1897 में झारखंड में भीषण अकाल पड़ा। उस वक्त चेचक की महामारी भी फैली। आदिवासी समाज बिरसा के नेतृत्व के अभाव में भी हुकूमत के दमन-शोषण, अकाल और महामारी के खिलाफ जूझता रहा। ठीक उसी वक्त सरकार ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की डायमंड जुबिली समारोह मनाने के लिए देश में समारोहों का आयोजन कर रही थी। उस अवसर पर देश में कई आंदोलनकारियों के साथ बिरसा को भी रिहा कर दिया गया। मााना जाता है कि 30 नवंबर, 1897 को बिरसा जेल से छूटने के बाद चलकद लौटे और सीधे अकाल तथा महामारी से पीड़ित लोगों की सेवा में लग गए। वो गुप्त राजनीतिक सभाएं भी करते, जिससे एक नए आंदोलन की जमीन तैयार होने लगी। बिरसा की गिरफ्तारी को लेकर इनाम का ऐलान। अब जनवरी 1900 में बिरसा की तलाश में पुलिस और सेना ने पोड़ाहाट के जंगलों तक को छान मारा। 500 वर्गमील क्षेत्र के गांवों में पुलिस तैनात कर उसके खर्च का बोझ स्थानीय जनता पर डालने की घोषणा कर दी गई, ताकि वह बिरसा के आंदोलन का समर्थन न करे। सरकार ने बिरसा की सूचना देनेवाले के लिए इनाम घोषित किया, मगर उनके बारे में किसी ने सूचना नहीं दी। बिरसा ने छेड़ा उलगुलान, कहा-गोरों वापस जाओ। इस बाद बिरसा ने हथियारबंद संघर्ष का ऐलान कर दिया, जिसे उलगुलान यानी महासंग्राम या महाविद्रोह कहा गया। ब्रिटिश हुकूमत ने बिरसा आंदोलन के कई केंद्रों पर छापेमारी की। बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां कीं। आम आदिवासियों की घर-संपत्ति लूट ली गई। इससे तिलमिलाए बिरसा की अगुवाई में 60 जत्थों ने एकसाथ हुकूमत के ठिकानों और गिरजाघरों पर हमला किया। चक्रधरपुर, पोड़ाहाट जैसे इलाकों में सरकारी कार्यालयों और आवासों में आग लगा दी गई। उस दौरान आंदोलनकारियों के हाथों कुल आठ लोग मारे गए। 8 जनवरी, 1900 को डोम्बारी पहाड़ियों पर जमी बिरसाइत के जत्थे को सेना ने घेर लिया। विद्राहियों ने कहा, गोरो, अपने देश वापस जाओ। विद्रोहियों और फौज के बीच भीषण युद्धमें 200 मुंडा मारे गए। मगर, बिरसा को अंग्रेज पकड़ नहीं पाए। 3 फरवरी, 1900 को एक जंगल में बने शिविर में सोते वक्त बिरसा को अंग्रेजों ने पकड़ लिया। उन्हें तत्काल खूंटी के रास्ते रांची ले जाया गया और रांची कारागार में बंद किया गया। बिरसा के साथ-साथ करीब 500 आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया गया। सब पर फर्जी मुकदमे चलाए गए। मगर, 98 पर ही दोष सिद्ध किया जा सका। जब जेल में ही बिरसा को दे दिया गया धीमा जहर । कहा जाता है कि मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही 20 मई, 1900 को बिरसा को कोर्ट ले जाया गया। मगर, तबीयत खराब होने की वजह से उन्हें जेल भेज दिया गया। अगले 10 दिन तक यही खबर आती रही कि बिरसा बीमार हैं। 9 जून, 1900 की सुबह अचानक यह खबर सामने आई कि हैजे की वजह से बिरसा की मौत हो गई। कई इतिहासकारों का दावा है कि बिरसा को धीमा जहर दिया गया था, जिससे उनकी तबीयत बिगड़ती गई। ( अशोक झा की रिपोर्ट )
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