- यहां पार्टी पार्टी नहीं जाति जाति में है सीधी टक्कर, सीएम नीतीश आज सीमांचल में
- गूंजता है नारा एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे, बंटेंगे तो करेंगे कटेंगे
- पीएम मोदी करेंगे महिलाओं से सीधा संवाद, महिला और युवा बनेंगे एनडीए के तारणहार
बिहार में आज पहले चरण के चुनाव प्रचार का शोर थम जाएगा। छह नवंबर को राज्य के 121 विधानसभा सीटों पर वोटिंग होंगी। चुनाव के पहले चरण के प्रचार अभियान के आखिरी चरण में पीएम मोदी मंगलवार को एनडीए की महिला कार्यकर्ताओं से बातचीत करेंगे। वहीं सीएम नीतीश कुमार 5 नवंबर को सीमांचल में जनसभा को संबोधित करेंगे। ठाकुरगंज से जेडीयू प्रत्याशी गोपाल अग्रवाल के लिए वोट मांगेंगे। सीमांचल में ओवैसी पहले ही मुस्लिमों के बीच लगातार अपनी पैठ बनाए हुए है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में 6 नवंबर को 121 सीटों पर मतदान होगा। इन सभी विधानसभा क्षेत्रों में भले ही एनडीए और महागठबंधन आमने-सामने हैं, पर जमीनी हकीकत इससे कुछ अलग है। सामाजिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार में पार्टी नहीं, बल्कि जाति से जाति टकरा रही है। पहले चरण की 121 सीटों में से 26 सीटें ऐसी हैं, जहां सवर्ण उम्मीदवारों को पिछड़े-अति पिछड़े उम्मीदवार कांटे की टक्कर दे रहे हैं। इसके अलावा कहीं जदयू के कुर्मी जाति के उम्मीदवार राजद के यादव जाति के उम्मीदवार से टकरा रहे, तो कहीं पर यादव जाति के उम्मीदवार अति पिछड़े उम्मीदवार से टकरा रहे हैं।कहा जा सकता है कि राज्य में चुनाव प्रचार अपने शबाब पर है। भाजपा वाले एनडीए के प्रचार की कमान स्वयं प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने संभाल रखी है और गृहमन्त्री अमित शाह भी स्टार प्रचारक हैं, जबकि कांग्रेस वाले महागठबन्धन की तरफ से श्री राहुल गांधी व उनकी बहन श्रीमती प्रियंका गांधी के अलावा श्री लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने पूर्व उप-मुख्यमंत्री श्री तेजस्वी यादव को चुनाव प्रचार की कमान सौंप रखी है। इसमें अब कोई दो राय नहीं हो सकती कि चुनावी जमीन पर लोगों के मुद्दे तैर रहे हैं जिनका आंकलन करना सामान्यतः असंभव नहीं होता है। ये मुद्दे महंगाई से लेकर बेरोजगारी के हैं जिन्हें विपक्षी महागठबन्धन केन्द्र में रखना चाहता है। इसके साथ ही महागठबन्धन की कोशिश है कि राज्य के विकास का मुद्दा भी केन्द्र में लाया जाये जबकि भाजपा की ओर से प्रयास किया जा रहा है कि इस विकास के मुद्दे के साथ 20 साल पहले के उस लालू राज के मुद्दे को भी जोड़ दिया जाये जिसे वह जंगल राज बता रहा है। चुनावों का यह नियम होता है कि चुनाव वही पार्टी या गठबन्धन जीतता है जिसका विमर्श जमीन पर चलने लगता है।
दोनों ही गठबन्धन एक-दूसरे पर जमकर आरोपों की बौछार कर रहे हैं और दोनों को ही अपने-अपने जातिगत गठबन्धनों पर भरोसा है। मगर चुनावों में यह देखना होता है कि आम जनता कौन सा गठबन्धन बना रही है ? बिहार की जनता या मतदाता राजनैतिक रूप से बहुत सजग माना जाता है क्योंकि मौका पड़ने पर यह जातिगत आग्रहों को उठा कर ताक पर भी रख देता है। महागठबन्धन के नेता कह रहे हैं कि 20 साल से (केवल 17 महीने छोड़कर) बिहार में राज कर रही नीतीश कुमार की सरकार को अब 'अलविदा' कहने का समय आ गया है। मगर सबसे ज्यादा आश्चर्य यह है कि विपक्ष के निशाने पर राज्य के मुख्यमंत्री व जद(यू) नेता श्री नीतीश कुमार नहीं हैं जबकि भाजपा कह रही है कि एनडीए उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहा है। बेशक नीतीश बाबू के स्वास्थ्य को लेकर महागठबन्धन के नेता कटाक्ष कसने से बाज नहीं आ रहे हैं मगर नीतीश बाबू भी चुनाव प्रचार कर रहे हैं। राज्य में भाजपा के साथ मिलकर ही नीतीश बाबू सरकार चला रहे हैं अतः इस सरकार के पिछले कार्यकलापों के बारे में हिसाब मांगना लोकतन्त्र में विपक्ष का दायित्व माना जाता है। विपक्ष सवाल उठा रहा है कि बिहार में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है जिसके चलते हर वर्ष लाखों बिहारी देश के अन्य राज्यों में पलायन करते हैं। हालांकि एनडीए ने अपने घोषणापत्र में आगामी वर्ष में एक करोड़ नौकरियां देने का वादा किया है लेकिन विपक्ष इसे सवालों के घेरे में ले रहा है और पूछ रहा है कि पिछले बीस सालों में राज्य में सबसे ज्यादा पांच लाख नौकरियां उन्हीं 17 महीनों की सरकार के दौरान दी गईं जब तेजस्वी बाबू नीतीश सरकार में ही उप मुख्यमन्त्री थे।
इस दौरान नीतीश बाबू ने भाजपा का दामन छोड़ दिया था और उन्होंने लालू जी की पार्टी राजद के साथ मिल कर सरकार चलाई थी। वैसे इन दोनों पार्टियों ने 2015 का मिलकर चुनाव लड़ा था और पूर्ण बहुमत प्राप्त किया था। तब भाजपा ने अपने दम पर ही 243 सदस्यीय विधानसभा में 52 सीटें प्राप्त की थीं और यह विपक्ष में बैठी थी। खैर अब यह इतिहास की बात हो चुकी है, वर्तमान सन्दर्भों में मुद्दे की बात यह है कि क्या नीतीश बाबू चुनावों में अपने गठबन्धन का बहुमत ले आयेंगे? बिहार की मिट्टी को सूंघ कर हवा का रुख बताने वाले विश्लेषक यह मानते हैं कि इस बार बिहार की जनता निर्णायक फैसला देने जा रही है अर्थात 2020 की तरह यह उहापोह की स्थिति में नहीं रहेगी और एनडीए व महागठबन्धन में से किसी एक को भारी बहुमत देगी। 2020 के चुनावों में एनडीए व महागठबन्धन के कुल वोटों में केवल 12 हजार (0.3 प्रतिशत) का ही अन्तर था। इसके बावजूद नीतीश बाबू के एनडीए को एक दर्जन सीटों की बढ़त मिल गई थी। विश्लेषकों की राय है कि इस बार ऐसा होने नहीं जा रहा है। इसे देखते हुए जमीन पर चुनावी प्रचार का लेखा-जोखा किया जा सकता है। प्रधानमन्त्री समेत एनडीए के नेता कह रहे हैं कि यदि महागठबन्धन सत्ता में आया तो 20 साल पहले का जंगल राज फिर लौट आयेगा, जबकि विपक्षी महागठबन्धन की दलील है कि यदि एनडीए की सत्ता में वापसी हुई तो नीतीश बाबू को भाजपा मुख्यमन्त्री नहीं बनने देगी और इस पद पर अपने ही किसी दूसरे नेता को बैठायेगी।
जाहिर है यह सवाल नीतीश कुमार को परेशान कर सकता है जिसकी वजह से भाजपा नेताओं ने कहना शुरू कर दिया है कि एनडीए के शासन में यह पद खाली नहीं रहेगा क्योंकि नीतीश बाबू वर्तमान में भी मुख्यमन्त्री हैं और आगे भी रहेंगे। अभी तक विश्लेषक बिहार के जातिगत गणित पर ही चुनावी विजय के आंकड़ों की समीक्षा करते रहे हैं। असलियत यह है कि इस प्रकार के आंकड़े बिहार की प्रबुद्ध जनता के अपमान की तरह होते हैं क्योंकि यह वह जनता है जिसने 1974 में स्व. जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में विभिन्न राजनैतिक बुराइयों के खिलाफ जन आन्दोलन किया था और जेपी को 'लोकनायक' का दर्जा दिया था। दरअसल चुनावी विश्लेषक भी सरल रास्ता अपनाते हैं और राजनैतिक दलों द्वारा व्याख्यायित विजय आंकड़ें के फेरे में जाते हैं। इसका उदाहरण यह है कि राजद के पक्ष में मुस्लिम व यादव के कुल 32 प्रतिशत वोट गारंटी शुदा बताये जा रहे हैं और नीतीश बाबू के पक्ष में महादलितों की कुल संख्या। ऐसी गणनाएं अब अप्रासंगिक हो चुकी हैं। क्योंकि बिहार कबायली राजनीति के दौर से बाहर आने को कुलबुला रहा है। बिहार में युवा बेरोजगारी की दर 10.8 प्रतिशत है। ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं कि राज्यभर में केवल एक लाख 35 हजार 464 लोग ही बड़ी औद्योगिक इकाइयों में कार्यरत हैं जिनमें से केवल 34 हजार 470 लोग ही स्थायी कर्मचारी हैं। बाकी सब ठेके पर काम करते हैं। बिहार की कुल आबादी साढ़े 13 करोड़ के लगभग है जो कि दो करोड़ 76 लाख परिवारों में बटी हुई है। इन परिवारों में 64 प्रतिशत एसे परिवार हैं जिनकी मासिक आमदनी दस हजार रु. से भी कम है। केवल चार प्रतिशत परिवार ही ऐसे हैं जिनकी आमदनी 50 हजार रु. मासिक से ऊपर है। इसी से बिहार में गरीबी का आलम मापा जा सकता है। अतःचुनाव प्रचार के तेवर इसी धरातल पर बैठ कर मापे जाने चाहिए। ऐसे में जो भी पार्टी अपना विमर्श जनता के बीच तैरा देगी वही बाजी मार ले जायेगी।
33 सीटों पर जदयू और राजद में आमने-सामने की टक्कर
करीब 33 सीटें ऐसी हैं, जहां जदयू और राजद में आमने-सामने की लड़ाई है। तीन सीटें ऐसी हैं, जहां जदयू के कुर्मी उम्मीदवार की लड़ाई राजद के यादव उम्मीदवार से है। चार सीटों पर जदयू के कुशवाहा उम्मीदवार की लड़ाई राजद के यादव उम्मीदवार से हो रही है।जदयू के अति पिछड़े उम्मीदवारों की छह सीटों पर राजद के यादव उम्मीदवारों से सीधी टक्कर है।
जदयू और राजद के यादव उम्मीदवारों में भी है टक्कर
इसी प्रकार जदयू और राजद के यादव प्रत्याशियों के बीच दो जगह पर आमने-सामने का संघर्ष है। इनमें पहली सीट समस्तीपुर जिले की हसनपुर है, जहां जदयू के राजकुमार राय और राजद की माला पुष्पम दोनों ही यादव हैं और एक दूसरे को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। वहीं, दूसरी सारण जिले की परसा सीट है, जहां जदयू के छोटे लाल राय और राजद की डॉ करिश्मा राय के बीच कांटे की टक्कर है।
बेगूसराय और पटना में टकरा रहे भूमिहार उम्मीदवार
पहले चरण में बेगूसराय जिले की मटिहानी और पटना जिले की मोकामा सीट पर भूमिहार बिरादरी के उम्मीदवार ही आपस में टकरा रहे हैं। मटिहानी में जदयू ने जहां राजकुमार सिंह को उतारा है, वहीं राजद ने नरेंद्र सिंह उर्फ बोगो सिंह को प्रत्याशी बनाया है।
मोकामा में भी एक ही जाति के हैं 2 उम्मीदवार
इसी प्रकार मोकामा में राजद ने पूर्व सांसद सूरजभान की पत्नी वीणा देवी को उम्मीदवार बनाया है, जबकि उनके मुकाबले जदयू ने अनंत सिंह को उतारा है। मधेपुरा के बिहारीगंज में जदयू के कोइरी उम्मीदवार निरंजन मेहता अपनी ही जाति की राजद की रेणु कुमारी को टक्कर दे रहे हैं। वहीं, चेरिया बरियारपुर में जदयू और राजद दोनों दलों के उम्मीदवार कुशवाहा जाति से आते हैं। दोनों में कड़ा मुकाबला है।
पहले चरण में 18 सीटें ऐसी हैं, जहां सत्ता के दो प्रबल दावेदार एनडीए और महागठबंधन ने सवर्ण उम्मीदवारों पर दांव लगाया है. इनमें आठ सीटों पर दोनों गठबंधनों के उम्मीदवार भूमिहार जाति से हैं। चार सीटों पर ब्राह्मण बनाम ब्राह्मण लड़ाई है। इनमें दरभंगा की अलीनगर सीट भी शमिल है, जहां भाजपा ने मैथिली ठाकुर को प्रत्याशी बनाया है। वहीं इनके मुकाबले में राजद ने विनोद मिश्रा को दूसरी बार उतारा है।
तरैया और बनियापुर में टकरा रहे राजपूत प्रत्याशी: दो सीटें तरैया और बनियापुर में दोनों गठबंधनों के उम्मीदवार राजपूत जाति से हैं। जाले में भाजपा के भूमिहार उम्मीदवार जीवेश मिश्रा की लड़ाई कांग्रेस के ब्राह्मण उम्मीदवार ऋषि मिश्रा से है। बक्सर में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही ब्राह्मण उम्मीदवारों को उतारा है। सारण के तरैया और बनियापुर में राजपूत समाज से आने वाले उम्मीदवार एक दूसरे से टकरा रहे हैं. बेनीपुर सीट पर जदयू के विनय चौधरी का मुकाबला कांग्रेस के मिथिलेश चौधरी से है. दोनों ही ब्राह्मण हैं।
10 सीटों पर जदयू के सामने कांग्रेस के उम्मीदवार
121 में 10 सीटें ऐसी हैं, जिन पर जदयू का सामना कांग्रेस उम्मीदवारों से हो रहा है। इनमें नालंदा सीट जहां कुर्मी जाति से आने वाले मंत्री श्रवण कुमार मैदान में हैं। उनके सामने कांग्रेस ने कौशलेंद्र कुमार उर्फ छोटे मुखिया को मैदान में उतारा है। वह भी कुर्मी जाति से ही आते हैं. खगड़िया सीट पर जदयू के गंगोता उम्मीदवार बबलू मंडल कांग्रेस के चंदन यादव को टक्कर दे रहे हैं।
9 सीटों पर भाजपा को कांग्रेस दे रही टक्कर: ।नौ सीटें ऐसी हैं, जिन पर भाजपा के सामने कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। इनमें पटना, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर जिले की कई सीटें हैं। लखीसराय सीट पर उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा के सामने कांग्रेस के उन्हीं की जाति से आने वाले अमरेश कुमार मैदान में हैं. पटना साहिब सीट पर भाजपा के रत्नेश कुशवाहा की टक्कर यादव समाज से आने वाले कांग्रेस के उम्मीदवार शशांत शेखर से हो रही है.
कुम्हरार में वैश्य के खिलाफ अति पिछड़ी जाति का प्रत्याशी
कुम्हरार में भी यही स्थिति है. यहां भाजपा के वैश्य उम्मीदवार का मुकाबला कांग्रेस के अति पिछड़ी जाति के उम्मीदवार से है. कुम्हरार में जन सुराज के प्रो केसी सिन्हा संघर्ष को रोचक बना दिया है. मुजफ्फरपुर सीट पर भाजपा के भूमिहार समाज से आने वाले रंजन कुमार के सामने कांग्रेस के वैश्य समाज से आने वाले मौजूदा विधायक विजेंद्र चौधरी से हो रही है. यहां जन सुराज के डाॅ अमित कुमार दास लड़ाई को त्रिकोणात्मक बनाने में जुटे हैं.
23 सीटों पर भाजपा और राजद के बीच लड़ाई
पहले चरण की 23 सीटों पर भाजपा और राजद की सीधी लड़ाई है। इनमें उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और मंत्री मंगल पांडेय, नितिन नवीन, कृष्ण कुमार मंटू, पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव की सीटें भी शामिल है। पार्टी के 13 सवर्ण उम्मीदवारों का मुकाबला राजद के उम्मीदवारों से हैं। मंगल पांडेय को पूर्व स्पीकर और यादव जाति से आने वाले अवध बिहारी चौधरी टक्कर दे रहे हैं, जबकि उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को राजद के वैश्य जाति से आने वाले अरुण कुमार टक्कर दे रहे हैं। महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरा तेजस्वी यादव को उनकी ही बिरादरी से आने वाले भाजपा के सतीश कुमार राय कड़ी टक्कर दे रहे हैं। ( बिहार से अशोक झा की रिपोर्ट )
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