- तेजस्वी से दो दो हाथ करने को तैयार है पार्टी सुप्रीमो और उनके नेता
- तेजस्वी यादव पर भड़के ओवैसी, कहा- चरमपंथी क्या होता है लालू के 'लाल' को सिखा देंगे सीमांचल वाले
- पार्टी प्रत्याशी तौसीफ आलम ने तेजस्वी को दी चेतावनी काट देंगे अंगुली और जुबान
बिहार विधानसभा की 243 सीटों पर चुनाव होने हैं। कटिहार, किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, दरभंगा, सीतामढ़ी और पूर्वी चंपारण जैसे सात जिलों में अल्पसंख्यक समुदाय सदन के बहुमत और जनमत को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।बिहार में अल्पसंख्यक मतदाताओं को रिझाने के लिए महागठबंधन के साथ-साथ एआईएमआईएम और एनडीए के घटक दल जदयू व हम का प्रयास जारी है।सीमांचल क्षेत्र (किशनगंज-कटिहार-अररिया-पूर्णिया) में एआईएमआईएम मुस्लिम वोट का 10-15% तक विभाजन कर सकती है, जिससे राजद को नुकसान और भाजपा-जदयू को अप्रत्यक्ष लाभ मिल सकता है।अगर ओवैसी स्थानीय चेहरों को उतारते हैं, तो यह प्रभाव और बढ़ेगा। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को महागठबंधन में शामिल नहीं कर तेजस्वी यादव ने सीधा झगड़ा मोल लिया है। सीमांचल में अपने भाषण में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, एक पत्रकार ने तेजस्वी यादव से पूछा कि उन्होंने ओवैसी के साथ गठबंधन क्यों नहीं किया. तेजस्वी ने कहा कि ओवैसी एक चरमपंथी, एक कट्टरपंथी, एक आतंकवादी है. मैं तेजस्वी से पूछता हूं, 'बाबू चरमपंथी को तुम जरा अंग्रेजी में लिख के बताओ'. वह मुझे चरमपंथी कहते हैं क्योंकि मैं अपने धर्म का गर्व से पालन करता हूं. इस तरह से ओवैसी मंच से खूब गरजे। उनकी पार्टी के बहादुरगंज विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी तौसीफ आलम भी उन्हीं की तरह हमलावर हैं. वो लगातार भड़काऊ और विवादित बयान दे रहे हैं.
सोमवार यानी 3 नवंबर को तौसीफ आलम ने टेढ़ागाछ प्रखंड के नया लोचा हाट में फिर से विवादित बयान दिया. तौसीफ ने तेजस्वी यादव की आंख निकालने, उंगली और जुबान काटने की धमकी दे डाली. उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि चारा चोर का बेटा तेजस्वी यादव हमारे नेता असदुद्दीन ओवैसी को चरमपंथी बोल रहा है, लेकिन तेजस्वी यादव यह भूल गया कि जब उसका बाप लालू यादव मुख्यमंत्री था उस समय भागलपुर में मुसलमानों का नरसंहार हुआ.
उन्होंने आगे कहा कि चारा चोर का बेटा मुंह में लगाम लगाकर बोलो, वरना तुम्हारी उंगली और जुबान काट लेंगे, क्योंकि असदुद्दीन ओवैसी मुसलमानों की आवाज हैं गौरतलब हो कि तौसीफ आलम चार बार कांग्रेस पार्टी से विधायक रह चुके हैं और इस बार वो मजलिस पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं.
रविवार को ही उनका ऊपर सभा में पैसे बांटने का वीडियो वायरल होने के बाद बहादुरगंज थाना में मुकदमा दर्ज किया गया. इसके बावजूद भी उनका जुबान पर काबू नहीं रहा और उन्होंने खुलेआम मंच से तेजस्वी यादव को धमकी दे डाली.
तेजस्वी ने मुसलमानों का अपमान किया
वहीं सभा को संबोधित करते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने भी तेजस्वी यादव पर जोरदार निशाना साधा और कहा कि मैं 5 बार का सांसद हूं और 2 बार मुझे बेहतरीन सांसद का अवॉर्ड मिला, लेकिन तेजस्वी यादव मुझे चरमपंथी कह रहे हैं. यह सिर्फ मेरा नहीं बल्कि तमाम मुसलमानों का अपमान है. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी मुसव्विर आलम पर तंज कसते हुए कहा कि आप जिसे मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं वो 17% बिहार की जनता को चरमपंथी कह रहा है. उन्होंने सभा में उपस्थित लोगों से पूछा कि बताइए क्या आप चरमपंथी कहने वाले लोगों को वोट देंगे।सीमांचल में ओवैसी ने बिगड़ा था राजद का खेल: विधानसभा चुनाव 2020 में सीमांचल के क्षेत्रों में महागठबंधन ने कुल 24 उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें 17 सीटों पर राजद को जीत मिली थी. पर राजद को को 7 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा. इन 7 सीटों में से 5 ओवैसी जितने में सफल रही.असल में एआईएमआईएम के साथ-साथ एनडीए ने भी खासकर सीमांचल और पसमांदा मुसलमानों के बीच पकड़ बनाने की कोशिश की, जिसकी वजह से कुछ सीटों पर वोट बंटा और आरजेडी को नुकसान हुआ. हालांकि कुछ समय बाद AIMIM के 5 में से 4 विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे.PK की नजर M फैक्टर पर ? प्रशांत किशोर खुद को नए विकल्प के तौर पर प्रोजेक्ट करने में आरंभिक तौर पर सफल दिख रहे हैं और खासकर मुसलमानों को भी रिझाने में एक तरह से सफल होते दिख रहे है. चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर की नजर भी मुस्लिम मतों पर है. वह पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि कम से कम 40 सीटों पर मुसलमान प्रत्याशी उतारेंगे. साथ ही ये भी कह चुके हैं कि अगर महागठबंधन पहले ही उम्मीदवारों का नाम घोषित कर दे तो वह उन सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट नहीं देंगे, जहां से महाठबंधन का मुसलमान प्रत्याशी मैदान में होगा। मुस्लिम वोटो के बंटवारा से एनडीए को फायदा: आमतौर पर माना जाता है कि मुसलमानों का झुकाव आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों वाले महागठबंधन की ओर रहता है लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी बताते हैं. पिछली बार इन सीटों में से ज्यादातर पर एनडीए ने कब्जा जमाया था कहते हैं कि बिहार की कुल 51 मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों में से 2020 के चुनाव में बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 35 सीटें जीती थीं. यानी एनडीए की स्ट्राइक रेट लगभग 70 फीसदी रही जो राज्य के बाकी इलाकों से कहीं ज्यादा थी। राजनीतिक भागीदारी नहीं मिलने हैं नाराज
राष्ट्रीय राजनीति हो या बिहार की मुसलमानों ने दिल खोल कर वोट इंडिया गठबंधन के लिए करते आए है. खासकर बिहार की बात करे तो राजद कांग्रेस के वोट बैंक का मुख्य आधार M रहा है. पर जिस प्रकार से राजनैतिक भागीदारी मिलनी चाहिए वह मिलती हुईं नहीं दिख रही हैं. महागठबंधन के तरफ से तेजस्वी मुख्यमंत्री वही मुकेश सहनी उपमुख्यमंत्री के चेहरा घोषित किया गया है. पर 17 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिम वर्ग को लुभाने के लिए इस प्रकार की घोषणा नहीं की गई है. राजद में 143 लोगों की सूची में सिर्फ 18 मुस्लिम चेहरों को टिकट दिया हैं. दूसरी तरफ मुस्लिम समाज को साधने के लिए जनसुराज और AIMIM ने दिल खोलकर टिकट दिया..कितना नुकसान कर पाएंगे यह चुनाव के नतीजे ही तय करेंगे।क्या इस बार कहानी बदल जाएगी?: अक्सर कई सर्वे लगातार ये दिखाते हैं कि बिहार के ज्यादातर मुस्लिम वोटर महागठबंधन के साथ रहते हैं. लेकिन असल नतीजे अक्सर इसके उलट दिखते हैं. संभव है कि कई सीटों पर कई मुस्लिम उम्मीदवारों के मैदान में उतरने से वोट बंट जाता है और इसी वजह से बीजेपी-एनडीए को फायदा मिल जाता है।2023 की जाति आधारित सर्वे के मुताबिक बिहार में मुसलमानों की तादाद 17.7 फीसदी है. इसमें एक बड़ा हिस्सा सीमांचल में रहता है. जहां के ज्यादातर विधानसभा क्षेत्रों में 30 फीसदी या उससे अधिक वोटर मुसलमान हैं. जेडीयू और आरजेडी-कांग्रेस को पहले से उनका वोट मिलता रहा है. हालांकि 2020 में एआईएमआईएम ने बड़ी सेंधमारी की थी. वहीं इस बार जन सुराज पार्टी के आने से सभी दलों के बेचैनी बढ़ गई है.के वोट को नहीं तोड़ पाती हैं, तो एनडीए के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी। पसमांदा समाज पर एनडीए की नजर बिहार की 17.7 फीसदी मुस्लिम आबादी में 10 फीसदी अति पिछड़ा (पसमांदा), 3 फीसदी पिछड़ा और 4 फीसदी अशराफ (सवर्ण) मुस्लिम हैं. हाल के सालों में पसमांदा पर एनडीए की विशेष नजर है. वक्फ संशोधन कानून के बाद बीजेपी और जेडीयू को लगता है कि पसमांदा मुसलमानों का समर्थन मिल सकता है.इन जिलों में निर्णायक वोटर:2011 जनगणना के मुताबिक किशनगंज में 68 फीसदी, कटिहार में 43 फीसदी, अररिया में 42 फीसदी, पूर्णिया में 38 फीसदी और दरभंगा में 25 फीसदी मुस्लिम आबादी हैं. सीमांचल की चार जिलों में विधानसभा की 24 सीटें हैं. इनमें से हर सीट पर मुस्लिम वोटर ही हार-जीत तय करते हैं। मुस्लिम वोटों का कंसंट्रेशन बिहार के कुल 243 विधानसभा क्षेत्रों में से 87 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी करीब 20 फीसदी से भी ज्यादा है. लगभग 11 ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिम मतदाता 40 फीसदी के आसपास है. कुल मिलाकर करीब 40 से 50 सीटों की किस्मत मुस्लिम मतदाता तय करते हैं।
इन 53 सीटों पर मुस्लिम वोटर होंगे किंगमेकर!
2011 की जनगणना के अनुसार किशनगंज में बिहार में सबसे अधिक मुस्लिम आबादी 68% है, यहां पर 4 विधानभा सीटें हैं लगभग 1.75 करोड़ लोग। कटिहार 62% मुस्लिम आबादी के साथ दूसरे स्थान पर है और यहाँ से सात सदस्य चुने जाएंगे।
अररिया जिले में 41% मुस्लिम आबादी है, जो आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में छह विधायक चुनेगी।
पूर्णिया में 37% मुस्लिम आबादी और सात निर्वाचन क्षेत्र हैं।
दरभंगा में 10 विधानसभा सीटें हैं और इसकी 23% आबादी मुसलमानों की है। पूर्वी चंपारण 22% मुस्लिम आबादी हैं और 12 सीटें हैं सीतामढ़ी में 21% मुस्लिम आबादी है, जहाँ सात सीटें हैं। 2020 में कितने मुस्लिम उम्मीदवारों की हुई थी जीत?हालांकि, राजनीतिक दलों ने अपनी आबादी के अनुपात में सीटें आवंटित नहीं की हैं। राजद - 17 मुस्लिम प्रत्याशी, 8 विजयी कांग्रेस - 10 प्रत्याशी, 4 विजयी
जदयू - 11 प्रत्याशी, कोई नहीं जीता
भाजपा - कोई मुस्लिम प्रत्याशी नहीं एआईएमआईएम - 16 प्रत्याशी, 5 जीते (4 बाद में राजद में शामिल)
सीपीआई(एम-एल) व बसपा - 1-1 प्रत्याशी, दोनों विजयी
साफ है कि 2020 में मुस्लिम वोटर ने मुख्यतः राजद-कांग्रेस गठबंधन और कुछ हद तक एआईएमआईएम को समर्थन दिया।
बिहार चुनाव 2025 में क्या हो सकता है?
243 सदस्यीय बिहार विधानसभा के लिए 6 और 14 नवंबर को चुनाव होंगे। 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार में मुस्लिम आबादी 17,557,809 थी, जो राज्य की कुल आबादी का लगभग 16.87% थी।
जदयू-भाजपा गठबंधन (एनडीए)
भाजपा अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के प्रति अपने दृष्टिकोण के लिए जानी जाती है, जहाँ इस समुदाय से लोकसभा या राज्यसभा में कोई सदस्य नहीं है। हालांकि, जेडीयू ने राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया है।
नीतीश कुमार ने भगवा पार्टी के साथ गठबंधन करके समुदाय में अपना अधिकांश समर्थन खो दिया है, फिर भी उम्मीद थी कि पार्टी अल्पसंख्यक समुदाय को पर्याप्त संख्या में सीटें आवंटित करेगी। इसने अपने समर्थकों को निराश किया है।
हालांकि नीतीश कुमार की छवि अब पहले जैसी "सॉफ्ट सेक्युलर" नहीं रही। मुस्लिम वोट का अधिकांश भाग इनके खिलाफ जा सकता है, लेकिन कुछ विकासवादी मुस्लिम मतदाता (खासकर शहरी या व्यापारी वर्ग) अब भी जदयू को वोट दे सकते हैं।
राजद-कांग्रेस गठबंधन (महागठबंधन)
तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली राजद सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ अपनी निरंतर लड़ाई और मुस्लिम समुदाय के साथ अपनी निकटता के लिए जानी जाती है, जिसने लगभग सभी चुनावों में इसका समर्थन किया है। हालांकि, एम-वाई (मुस्लिम-यादव) संयोजन के लिए जानी जाने वाली पार्टी ने मुसलमानों को पर्याप्त सीटें आवंटित नहीं की हैं।
यह 143 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और इसने 53 सीटें, यानी एक तिहाई से अधिक, यादव समुदाय को आवंटित की हैं। बिहार जाति सर्वेक्षण 2022 के अनुसार, राज्य में यादव आबादी कुल आबादी का लगभग 14.26% या 18.65 मिलियन लोग हैं। 15% से कम आबादी होने के बावजूद, यादव समुदाय के पास राजद के लगभग 40% टिकट हैं।
इसके बावजूद मुस्लिम वोट बैंक अब भी इस खेमे के करीब है, लेकिन मुस्लिम उम्मीदवारों की अपेक्षाकृत कम हिस्सेदारी इससे अल्पसंख्यक मतदाताओं में कुछ असंतोष हो सकता है। हालांकि, भाजपा-जदयू गठबंधन के विरुद्ध "सेक्युलर वोट" का ध्रुवीकरण अब भी संभव है। (सीमांचल से अशोक झा की रिपोर्ट )
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