जवाहर लाल नेहरू सहित पुछल्ले कांग्रेसियों को थीं सरदार बल्लभ भाई पटेल से नफरत !
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अजीत मिश्र
कांग्रेस पार्टी और खासकर नेहरू और उनके सन्तानो को सरदार पटेल से कितनी नफरत थी इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं की सरदार पटेल का देहांत 1950 में हुआ था, पर कांग्रेस ने उन्हें भारत रत्न देने से इंकार कर दिया और जब बहुत ज्यादा विरोध होने लगा तो 1991 में जाकर सरदार पटेल को उनकी मौत के 41 साल बाद भारत रत्न दिया गया।
सरदार पटेल की पुत्री जिनका नाम मणिबेन पटेल था वह भी कांग्रेस की नेता थी और अपने पिता की तरह ही अंग्रेजो के खिलाफ उन्होंने आज़ादी के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था,1947 में सरदार पटेल भारत के गृह मंत्री बने,1950 में पटेल का देहांत हो गया।
बताते हैं कि पटेल के देहांत के बाद उनकी पुत्री मणिबेन नेहरू से मिलने दिल्ली गयी थी, दरअसल वो नेहरू को अपने पिता के कहे अनुसार 2 चीजें देने गयी थी, वो 2 चीजें थी एक बैग और एक किताब, नेहरू ने पहले तो मिलने से ही इंकार कर दिया, फिर काफी देर इंतज़ार करवाया और मिला, मणिबेन ने बैग और किताब देकर नेहरू से कहा की, सरदार पटेल ने उन्हें कहा था की जब मैं मर जाऊं तो ये बैग और किताब सिर्फ नेहरू को ही देना, और यही देने मैं आपके पास दिल्ली आई हूँ।कथित तौर पर उस बैग में 35 लाख रुपए थे, जो की कांग्रेस पार्टी को आम भारतीयों ने चंदे के रूप में दिया था और किताब कुछ और नहीं बल्कि किन किन लोगों ने चंदा दिया था उनके नाम और लिस्ट थे।1947 में 35 लाख की रकम आज के हिसाब से बहुत ज्यादा थी।पटेल बहुत ईमानदार थे और उनकी मौत के बाद उनकी बेटी ने कांग्रेस का सारा पैसा और अकाउंट की किताब नेहरू को सौंप दिया।
दिल्ली के आवास में नेहरूजी ने मणिबेन से वो बैग और किताब तो ले लिया लेकिन मणिबेन को पानी पीने तक को नहीं पूछा गया और उन्हें जाने के लिए कह दिया गया। मणिबेन किताब और 35 लाख रुपए नेहरू को सौंपकर अहमदाबाद लौट आयीं।
उसके बाद कांग्रेस पार्टी और उसके किसी भी नेता ने मणिबेन का हाल तक नहीं जाना।मणिबेन जो की देश के गृहमंत्री की पुत्री थी वह इतनी गरीबी में रहने लगी जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता की गृहमंत्री की बेटी की यह स्तिथि हो सकती है, उस ज़माने में गुजरात में भी कांग्रेस की ही सरकार थी पर मणिबेन से जैसे कांग्रेस को नफरत सी थी क्यूंकि नेहरू और उनकी औलादें पटेल और उनकी बेटी को जैसे बस मार डालना चाहते थे!
अपने अंतिम दिनों में मणिबेन की आँखें भी कमजोर हो गयी थी, उनके पास 30 साल पुराना चश्मा था पर उनकी आँखें इतनी कमजोर हो गयी थी की चश्मे का नंबर बढ़ गया था उन्हें नए चश्मे की जरुरत थी पर मणिबेन के पास चश्मा खरीदने का भी पैसा नहीं था। वह अहमदाबाद की सड़कों पर चलते हुए गिर जाया करती थी, और ऐसे ही उनकी दुखद मौत भी हो गयी।
आपको एक और बात बताते हैं उस ज़माने में कांग्रेस का गुजरात में मुख्यमंत्री थे चिमनभाई पटेल, जब चिमनभाई पटेल को पता चला की मणिबेन मर रही हैं तो वो एक फोटोग्राफर को लेकर उनके पास पहुंचे और उनके अधमरे शरीर के साथ तस्वीर खिंचवाई और चला गये।वह तस्वीर भी अख़बारों में छपी थी, कोंग्रेसी मुख्यमंत्री ने तस्वीर के लिए मणिबेन से मुलाकात की थी और मरने के लिए छोड़ आया था, उसके बाद मणिबेन का देहांत हो गया, जिसमे कांग्रेस का एक भी नेता नहीं गया।नेहरू की संताने आज खरबों के मालिक है, पर कांग्रेस पार्टी ने सरदार पटेल के देहांत के बाद उनके परिवार से कैसा बर्ताव किया आप मणिबेन की कहानी को जानकर समझ सकते हैं।
देश के पहले गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की 150 वीं जयंती के पूर्वसंध्या पर उन्हें शत शत नमन।जय हिंद।
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