होश जब से सँभाला किचन में “कालनिर्णय” टंगा देखा। तिथि पर्व मुहूर्त का निर्णय गृहिणी पर छोड़ मन ने कुंडली बांधी विषय के अधिकारी सुनाम विद्वानों की दी हुई पीछे के पृष्ठों की अत्यंत पठनीय सामग्री पर। ज्योतिष भास्कर स्वर्गीय जयंतराव सालगांवकर द्वारा लगाया यह बिरवा उनके योग्य पुत्र श्री जयराज सालगांवकर के हाथों में आकर आज भरा - पूरा वट वृक्ष है। इसके अतिथि संपादन की ज़िम्मेदारी पु. ल. देशपांडे और धर्मवीर भारती सरीखे दिग्गजों ने सम्भाली है। नौ भाषाओं में निकलने वाला “कालनिर्णय” दो करोड़ प्रतियों के साथ आज विश्व में सबसे अधिक प्रसार संख्या वाला प्रकाशन कहलाता है, जिसमें 25 लाख प्रतियों के साथ “हिंदी कालनिर्णय” “मराठी कालनिर्णय” के बाद दूसरे स्थान पर है। मैं जयराज जी का अतिशय आभारी हूँ कि लगातार तीसरे वर्ष “कालनिर्णय” के अतिथि संपादन की ज़िम्मेदारी उन्होंने मुझे सौंपी। यह अब बाज़ार में है। साहित्य वार्षिकी “मंथन” के बाद यह दूसरा प्रकाशन है, जिसका मैं अतिथि संपादक हूँ।
नव वर्ष के शुभ कामनाओं के साथ।
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हमदम, सलाहकार, मार्गदर्शक ‘कालनिर्णय’
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मुंबई का ‘कालनिर्णय’ पंचांग विश्व में सबसे अधिक (दो करोड़ के आस - पास प्रतियां) छपने वाला प्रकाशन है। यह सिर्फ तिथि, मुहूर्त, व्रत, त्योहार, भविष्यफल, आदि की जानकारी देने वाला कैलेंडर ही नहीं है, करोड़ों भारतीयों का हमदम है, सलाहकार है और मार्गदर्शक भी।
विमल मिश्र
पहले हमारी दीवारों पर सिर्फ एक ही कैलेंडर ही टंगा होता था - वह भी सरकारी। ‘लाला राधामोहन रामनारायण’ के नाम से 1934 में हिंदी तिथियां, व्रत, त्योहार सहित पंचांग से जुड़ी सभी प्रकार की जानकारियां देने वाला देश का पहला पंचांग युक्त हिंदी भाषी कैलेंडर जबलपुर में प्रकाशित हुआ। पर, मुंबई के सुमंगल प्रेस से प्रकाशित होने वाले ‘कालनिर्णय’ पंचांग का विश्व में कोई सानी नहीं है।
‘कालनिर्णय’ जैसे ही प्रशंसक ‘महालक्ष्मी’, ‘कालदर्शक’, ‘कृपासिंधु’, ‘ठाकुर प्रसाद’, जैसे कैलेंडरों के भी हैं। बाजारों में इस वक्त आपको इस तरह के लगभग 50 प्रकाशनों के दर्शन होंगे। 25 - 50 रुपये मूल्य के इन कैलेंडरों में तिथि, मुहूर्त, व्रत, त्योहार आदि के अलावा भविष्यफल, ज्योतिष, धर्म और अध्यात्म, आदि की जानकारियां तो मिलेंगी ही-साथ में सामान्य ज्ञान की अबूझ बातें, चिकित्सा व सौंदर्य सलाह, सामयिक व उपयोगी लेख, घरेलू नुस्खे, डे प्लान, महत्वपूर्ण कामकाज और रोजमर्रा के उपयोग की टिप्पणियां भी-मसलन, आज आपने आइरन कराने के लिए कितने कपड़े दिए या आपको किचन में क्या घट रहा है। ... मतलब, परिवार के हर सदस्य के लिए कुछ-न-कुछ। हर हाथ में मोबाइल फोन आ जाने से से कैलेंडरों में रेलवे आरक्षण, और रेल-बस के टाइमटेबल व अन्य विवरण और टैक्सी सर्विस का वक्त और जगह जैसी जानकारियां देने का चलन समाप्त हो गया है।
सबसे बड़ा प्रकाशन
तीज है और व्रत तोड़ने के लिए कांदिवली की विद्योत्तमा झा को चंद्रोदय का सही काल चाहिए। कुर्ला की कमला सेठी को बेटी के वैवाहिक आभूषण बनवाने के लिए पुष्य नक्षत्र और ब्रिटेन में बस गईं श्रीमती कमला शर्मा को बेटे के विवाह के मुहुर्त की जरूरत है। वेणु मिश्र के घर अचानक ही कुछ मेहमान टपक गए हैं और उन्हें किचन में झटपट कुछ नया बनाना है। प्रवीण सामंत को अनिर्णय की हालत से निकालने के लिए किसी सलाहकार और कॉलेज छात्रा रेणु को मन-बहलाव के वास्ते किसी साधन की दरकार है। परवीन और फिरूजा को यही सब जानकारियां मुस्लिम और पारसी कैलेंडर के हिसाब से चाहिए। इन सभीका माध्यम एक ही - ‘कालनिर्णय’।
अंधेरी के सुमंगल आर्टटेक में छपने वाला (हर घंटे 40000 प्रतियां) ‘कालनिर्णय’ पंचांगों की भीड़ में अलग पहचान के साथ पिछले 50 वर्षों से सबसे आगे है। मराठी, हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, पंजाबी, कन्नड़, तमिल, तेलुगू और मलयालम-इन नौ भाषाओं और 20 से अधिक संस्करणों में दो करोड़ के आस - पास कॉपियां लोग खरीदते हैं। इनमें अकेले मराठी के 17 पृथक संस्करणों में एक करोड़ से ज्यादा प्रतियां बिकती हैं। 20 लाख प्रतियों के साथ 1976 से निकल रहा हिंदी संस्करण दूसरे नंबर पर है। यह प्रकाशन दूरदराज सहित देश के किसी भी हिस्से में मिल जाएगा-विदेशों के डिपार्टमेंटल स्टोर्स में भी। ‘कालनिर्णय’ के अन्य प्रकाशन ‘स्वादिष्ट’, ‘आरोग्य’, ‘वर्षचंद्रिका’, ‘पॉकेट डॉयरी’, आदि भी कम लोकप्रिय नहीं। ‘दीवाली अंक’ तो बहुत ही लोकप्रिय है। इसके ‘ईयर प्लॉनर’ और ‘वीकली प्लॉनर’ का उपयोग खाद्य विक्रेता अपनी एडवांस सप्लाई की योजना बनाने में करते हैं। ‘कालनिर्णय’ अपने बड़े और छोटे कार्यालयीय संस्करणों के साथ मीडियम, कार, डेस्क, मिनी, माक्रो-कई आकारों में उपलब्ध है। यह हर क्षेत्र और भाषा विशेष की जरूरतों के अनुरूप है। इसका अपना विदेशी, ब्रेल, यहां तक कि किसान और मिल कामगार संस्करण भी हैं।
सिर्फ पंचांग नहीं
‘कालनिर्णय’ सिर्फ पंचांग या कैलेंडर नहीं है’, दादर स्थित मुख्यालय में पंचांग के प्रकाशक और प्रबंध निदेशक जयराज सालगावंकर बताते हैं, ‘धर्म, अध्यात्म, साहित्य, संस्कृति और विरासत का मेल है।’ विदेश जाते समय लोग इसकी ढेर सारी प्रतियां ले जाते हैं, ताकि मित्रों को भेंट दे सकेंविवाह के बाद बेटी की विदा्ई के समय ‘कालनिर्णय’ देना एक रस्म सी बन गई है। ‘कालनिर्णय’ में केवल हिंदुओं ही नहीं, मुस्लिम समुदाय, ईसाइयों, पारसियों, यहूदियों और सिखों से संबंधित जरूरी जानकारियां भी होती हैं। उसका अपना यूट्यूब चैनल और मोबाइल ऐप भी है। बेवसाइट पोर्टल Kalnirnay.com ने उसे विश्व भर में पहुंचा दिया है। यूट्यूब के उसके रवि साठे द्वारा गाए जिंगल विवाह - शादियों में भी हिट हैं।
जयराज बताते हैं, ‘हम ‘कालनिर्णय’ में बड़े बड़े साहित्यकारों और विशेषज्ञों के शोध आधारित लेख ही नहीं छापते वे इसके अंकों के संपादक भी होते हैं। धर्मवीर भारती, पु. ल. देशपांडे, कुसमाग्रज, जयवंत दलवी, दुर्गा भागवत, मंगला बर्वे के अनमोल लेखों से सजे ‘कालनिर्णय’ की सफलता का राज है समझ व उपयोग के लिहाज से उसकी सरलता और ग्राहकों के हित में हर बार कुछ नया करना। शुरुआती वर्षों में ट्रेन का टाइमटेबल (2017 तक) और कृषि उपयोगी छापने वाली पत्रिका ने कई वर्जनाओं को दूर किया, मसलन, मांसाहारी व्यंजनों की रेसिपी का प्रकाशन। पत्रकारिता छोड़ दादा, पिता, जयेंद्रजी सहित दोनों चाचाओं व भाइयों के साथ पत्रिका की जिम्मेदारी में हाथ बंटाने वाली जयराज की बेटी कार्यकारी निदेशक शक्ति सालगांवकर बताती हैं, ‘हमारा हर भाषा का संपादकीय विभाग अलग है और उनके लेख भी।’ वर्ष 2025 में उसके हिंदी संस्करण के अतिथि संपादक पत्रकार-स्तंभकार-लेखक विमल मिश्र हैं।
चाहे वह कैलेंडर का महीना चैत्र के बजाय जनवरी से रखना हो, मराठी प्रकाशन के क्षेत्र में सबसे पहले रंगीन प्रिंटिंग का प्रारंभ हो या पहली ऑनलाइन रिटेल वेबसाइट और पहले मोबाइल ऐप्लिकेशन का चलन हो-‘कालनिर्णय’ की प्रगति में काल की चाल के साथ चलना सबसे बड़ा योगदान रहा है। दूरदर्शन पर कार्यक्रमों को प्रायोजक के तौर पर विज्ञापन देने की शुरुआत का श्रेय ‘कालनिर्णय’ को ही जाता है।
नब्ज पर हाथ
‘कालनिर्णय’ मौजूदा प्रबंध निदेशक जयराज सालगांवकर के पिता स्व. जयंतराव सालगांवकर की देन है, जो ‘ज्योतिर्भास्कर’ नाम से मशहूर थे। मराठी क्विज देने वाला प्रसिद्ध प्रकाशन ‘शब्दरंजन’ उन्हीं ने दिया। ‘50 के दशक मे मालवण से मुंबई में आए जयंतराव की मराठी क्विज एक मराठी अखबार में छपा करती थी। 1972 के आस-पास लॉटरी का धंधा जोर पकड़ रहा था। इसने क्विज के चलन को धक्का पहुंचाया। पंचांग अभी तक संस्कृत में तथा बहुत ही दुरूह भाषा में निकला करते थे और पंडितों की मनमानी चलती थी। ज्योतिष के स्तंभ लिखने वाले जयंतराव ने सोचा कि क्यों न पंचांग लोगों को उनकी अपनी भाषा में इस सरल ढंग से दिया जाए कि पोथी-पत्रे के लिए पंडितों के पास जाने की जरुरत ही नहीं रहे। और साथ में लोकोपयोगी जानकारियां भी।
पाक विधियों, रेल व बस के टाइमटेबल और छोटी-छोटी कहानियों से लोकरंजक बनाकर जयंतराव ने ‘कालनिर्णय’ छापा तो पहली शंका यही थी कि लोग जिन्हें कैलेंडर मुफ्त मिलने की आदत है-क्या वे उसे खरीदेंगे! इसकी संख्या थी दस हजार और मूल्य सवा रुपये। मुंहजबानी पब्लिसिटी से जनवरी, 1973 में निकला 25 हजार कॉपियों का पहला मराठी संस्करण हाथों-हाथ बिक गया। दो साल बाद आए अंग्रेजी और फिर हिंदी व अन्य संस्करण। ‘कालनिर्णय’ ने तब से मुड़कर नहीं देखा है। विशाल संख्या में छपने के कारण 15 अगस्त तक कैलेंडर छपना शुरु हो जाता है। प्रकाश्य सामग्री क्या हो इसका निर्णय जून तक हो जाता है। जुलाई से प्रिंटिंग शुरू हो जाती है और दशहरे से यह बाजार में आ जाता है। इसकी सबसे अधिक बिक्री होती है अक्टूबर से दिसंबर के बीच। ( काल निर्णय के अतिथि सम्पादक विमल मिश्र की कलम से )
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