- ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में उनके अंगरक्षक बेअंत सिंह व सतवंत सिंह ने मारी थी गोली
- 30 अक्टूबर 1984 को भुवनेश्वर में कही थी बहुत जीवन जी चुकी हूं और अगर अब मुझे मौत भी आ जाए, तो कोई बात नहीं
31अक्टूबर, 1984… सुबह 9.30 बजे… राजधानी दिल्ली के सफदरगंज रोड स्थित तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का आवास गोलियों की आवाज से गूंज उठा ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में उनके अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। आज शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का बलिदान दिवस है। पूर्व प्रधानमंत्री की पुण्य तिथि के अवसर पर पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करेगा।
इंदिरा गांधी 30 अक्टूबर 1984 को ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर गई थीं और वहां उन्होंने एक भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने यह कहा था कि हर भारतीय का यह उत्तरदायित्व है कि वो देश की सेवा करे और उसे आगे लेकर जाए। उन्होंने कहा था कि मैं बहुत जीवन जी चुकी हूं और अगर अब मुझे मौत भी आ जाए, तो कोई बात नहीं। मुझे इस बात का गर्व है कि मेरा पूरा जीवन सेवा में गुजरा है। उन्होंने यह कहा था कि उनके शरीर के खून का एक-एक कतरा देश की सेवा के काम आएगा। यह उनका अंतिम भाषण था, उसके बाद वह दिल्ली लौटीं और सुबह 9 बजकर 15 मिनट के आसपास उनकी हत्या उनके सुरक्षा गार्ड बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने कर दी थी। इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार करवाया था, जिसका उद्देश्य सिख अलगाववादी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों को स्वर्ण मंदिर से निकालना था. यह आतंकवाद के खिलाफ सैन्य कार्रवाई थी। इस घटना से उनके दो सिख सुरक्षाकर्मी आहत थे और इसी गुस्से में उन्होंने इंदिरा गांधी की हत्या की थी।
गोलियों की आवाज सोनिया गांधी ने सुनी:  सोनिया गांधी की जीवनी  लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने बातचीत में बताया कि जब इंदिरा गांधी पर हमला हुआ तो गोलियों की आवाज गूंजी, सोनिया गांधी ने अपने बालों को धोया ही था, वो उसे सूखा नहीं पाई थीं। पहले उन्हें लगा कि यह दिवाली के पटाखों की आवाज है, लेकिन उन्हें कुछ अंतर महसूस हुआ और फिर वह दौड़ने लगीं, चीखने लगीं और मम्मी-मम्मी चिल्लाने लगीं. स्थिति इतनी गंभीर थी कि उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस भी नहीं था। सोनिया गांधी गाउन पहने हुए सफेद एंबेसडर में इंदिरा गांधी का सिर अपनी गोद में लिए एम्स की ओर जा रही थीं. शायद उनकी सांसें थम चुकी थीं. सोनिया गांधी सदमे में थीं।
अगर इंदिरा की मौत हो चुकी थी, तो घोषणा में वक्त क्यों लगा?: इंदिरा गांधी को जब एम्स लाया गया, तो उनकी स्थिति बहुत गंभीर थी. उसी दिन एम्स की डायरेक्टर बनीं डाॅक्टर स्नेह भार्गव ने कई इंटरव्यू और अपनी किताब में बताया गया है कि जब प्रधानमंत्री को एम्स लाया गया था, तो किसी को कोई जानकारी नहीं थी। वो उस वक्त क्लास में पढ़ा रही थीं, तभी उन्हें जानकारी मिली कि प्रधानमंत्री को एम्स लाया गया है। जब वो हड़बड़ी में वहां पहुंचीं, तो उन्होंने देखा कि एक स्ट्रेचर पर प्रधानमंत्री पड़ी हुई हैं, खून से लथपथ. स्ट्रेचर पर कोई चादर भी नहीं है। डाॅक्टर्स ने देखा और पाया कि पल्स नहीं है, लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि हार्ट को फिर से चालू किया जा सकता है और सांसें लौट सकती हैं। डाॅक्टर्स ने कोशिश की, खून चढ़ाया जा रहा था, लेकिन उसी रफ्तार से उनके शरीर से खून बह भी रहा था। दोपहर दो बजे के बाद डाॅक्टर्स को यह महसूस हो गया कि अब कुछ नहीं किया जा सकता है और इंदिरा गांधी नहीं लौट सकती हैं, तब उनकी मौत की घोषणा हुई, जिसमें पांच घंटे का वक्त लगा।रशीद किदवई अपनी किताब में लिखते हैं कि इंदिरा गांधी राहुल और प्रियंका से अकसर उन विषयों पर भी बात करती थीं, जिनके बारे में वो राजीव और सोनिया से चर्चा नहीं करती थीं. उन्होंने राहुल से जिम्मेदारी संभालने की बात की थी और उनकी मौत पर रोने से मना किया था. उन्होंने राहुल को अंतिम संस्कार के बारे में बताया था और यह भी कहा था कि उन्होंने अपना जीवन जी लिया है. जिस दिन इंदिरा गांधी की हत्या हुई, वो अपने पोते-पोतियों से बहुत प्यार से मिलीं थीं और प्रियंका ने यह महसूस किया था उनकी दादी ने उन्हें कुछ ज्यादा देर तक गोद में बिठाया था. उस वक्त राहुल गांधी 14 और प्रियंका गांधी 12 साल के थे.
घर पर भारी बुलेटप्रूफ जैकेट पहनने से इंदिरा ने क्यों किया था इनकार?: आपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिरा गांधी को सिख सुरक्षाकर्मी हटाने और घर पर भी बुलेटप्रूफ जैकेट पहनने की सलाह दी गई थी, लेकिन इंदिरा गांधी ने मना कर दिया था। उन्हें भारी भरकम जैकेट पहनना पसंद नहीं था। सुरक्षा गार्डों के बीच भेदभाव उन्हें पसंद नहीं था। उन्हें अपने सुरक्षागार्डों पर बहुत भरोसा था. रशीद किदवई ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि उनके सचिव रहे पीसी अलेक्जेंडर कहते थे कि उन्हें जून 1984 से एक डर सता रहा था। वे कहती थीं कि बच्चों के अपहरण की साजिश रची जा रही है. उनके मन में मौत की आशंका घर कर गई थी, बावजूद इसके उन्होंने अपने किसी सिख सुरक्षा गार्ड को नहीं हटाया, क्योंकि वो उनपर भरोसा करती थीं।
इंदिरा गांधी की मौत के बाद देश में भड़का था सिख विरोधी दंगा: इंदिरा गांधी की मौत के बाद देश में खून के बदले खून का दौर था। सिखों को खुलेआम निशाना बनाया गया था। कई लोगों की हत्या की गई और कइयों को जिंदा जला दिया गया था। उस वक्त सिर्फ दिल्ली में 2500 से अधिक लोगों की हत्या की गई थी। देश के अन्य इलाकों में भी सिखों को मारा गया था।इंदिरा गांधी की हत्या कब हुई थी?
इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर 1984 को हुई थी.
इंदिरा गांधी किसकी बेटी थीं? इंदिरा गांधी भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और कमला नेहरू ने की बेटी थीं. क्या इंदिरा गांधी के चुनाव को कोर्ट ने रद्द कर दिया था? हां, इंदिरा गांधी के चुनाव को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था, तब उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी जाने के डर से देश में इमरजेंसी लागू की थी। इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी कब लागू किया था? 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी घोषित किया था।
इंदिरा गांधी को कितनी गोलियां मारी गई थीं? इंदिरा गांधी पर मशीनगन से हमला हुआ था और संभवत: 36 गोलियां उनपर दागी गई थीं।ऑयरन लेडी के नाम से मशहूर इंदिरा गांधी को बांग्लादेश से युद्ध, पोखरन समझौता, ब्लू स्टार ऑपरेशन और बैंकों का राष्ट्रीयकरण जैसे फैसलों के लिए याद किया जाता है. वहीं, 25 जून 1975 को उन्होंने देश में आपातकाल लगाया गया था, जो भारतीय प्रजातंत्र के इतिहास का सबसे काला दौर माना जाता है. आपातकाल के 21 महीने की अवधि के दौरान नागरिक स्वतंत्रता का हनन किया गया. प्रेस की स्वतंत्रता छीन ली गई. विपक्षी पार्टी के नेताओं की सामूहिक गिरफ्तारियां हुईं और चुनाव रद्द कर दिए गए. इंदिरा गांधी के इस कदम की आज भी काफी आलोचना होती है और उनके फैसले पर सवाल उठाए जाते हैं।इंदिरा गांधी के राजनीतिक और प्रशासनिक फैसलों पर चर्चाएं होती रहती हैं, लेकिन उनके जीवन की कई अनसुनी बातें हैं, जिनसे लोग परिचित नहीं हैं. उनमें से एक बात बहुत ही दिलचस्प है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की पुत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी कैसे ‘इंदिरा गांधी’ बन गईं?इंदिरा गांधी के घर का नाम ‘इंदू’ था : इंदिरा गांधी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और कमला नेहरू की पुत्री हैं. उनका जन्म 19 नवंबर 1917 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था. वह जवाहर लाल नेहरू और कमला नेहरू की एकलौती संतान थी. उनका परिवार आर्थिक, सामाजिक और बौद्धिक रूप से काफी संपन्न था। इंदिरा गांधी के घर का नाम इंदू रखा गया था. जवाहर लाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू ने इंदिरा गांधी के बचपन का नाम इंदिरा प्रियदर्शनी रखा था. इसका अर्थ कांति, लक्ष्मी और शोभा होता है. इंदिरा प्रियदर्शनी नाम रखने की वजह यह थी कि दादा मोतीलाल नेहरू को विश्वास था कि पौत्री के रूप में उनके घर में मां लक्ष्मी और मां दुर्गा का आगमन हुआ है. खुद जवाहर लाल नेहरू इंदिरा गांधी को प्रियदर्शनी के नाम से संबोधित किया करते थे। इस तरह से कमला नेहरू के करीब आए फिरोज गांधी : दूसरी ओर, फिरोज गांधी का जन्म 12 सिंतबर, 1912 को मुंबई के फोर्ट तेमुलजी निरमान हॉस्पिटल में हुआ था. उनके पिता का नाम जहांगीर और मां का नाम रतिबाई था. वे मूल रूप से गुजराती थे. फिरोज के पिता मरीन इंजीनियर थे और मुंबई शिफ्ट हो गये थे. उसी दौरान फिरोज का जन्म हुआ था. परिवार में कुल पांच संतानें थीं, उनमें फिरोज सबसे छोटे थे, लेकिन इस बीच उनके पिता की मौत हो गई और उनकी मां सभी बच्चों को लेकर मायका इलाहाबाद आ गईं. फिरोज की कॉलेज की पढ़ाई इलाहाबाद में हुई और फिर आगे की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए, लेकिन फिर वह कुछ समय के बाद भारत लौट आए। भारत लौटने के बाद फिरोज ने राजनीति में रुचि लेनी शुरू कर दी. साल 1930 में युवा कांग्रेस का नेतृत्व किया और इसी दौरान उनकी मुलाकात जवाहरलाल नेहरू व कमला नेहरू से हुई. स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान एक बार इंदिरा की मां कमला नेहरू एक कॉलेज के सामने धरना दे रही थीं. उस दौरान वह बेहोश हो गईं. उस समय फिरोज गांधी ने उनकी काफी देखभाल की थी।
फिरोज गांधी से शादी के बाद प्रियदर्शनी बन गईं इंदिरा गांधी:  उसके बाद वह अक्सर उनका हालचाल जानने के लिए उनके घर आनंद भवन जाने लगे और इस तरह से वो नेहरू परिवार के काफी करीब आ गए. इसी दौरान जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू की एकलौती संतान इंदिरा गांधी से भी उनकी नजदीकियां बढ़ने लगी. फिरोज और इंदिरा की नजदाकियों की जानकारी जब कमला नेहरू को हुई तो वो बहुत गुस्सा हो गईं।
इंदिरा और फिरोज दोनों ही अलग-अलग धर्म के थे. इससे राजनीति में खलबली मचने की आशंका थी. यह बात जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा गांधी को बताई और उनसे सलाह मांगी. ऐसे में महात्मा गांधी ने एक बहुत ही अच्छा रास्ता निकाला और उन्होंने फिरोज को ‘गांधी’ के सरनेम की उपाधि दे दी. इस तरह से फिरोज खान महात्मा गांधी के आशीर्वाद से ‘फिरोज गांधी’ बन गए और 1942 में फिरोज और इंदिरा की हिंदू रीति-रिवाजों से शादी हुई और शादी के बाद इंदिरा प्रियदर्शनी ‘इंदिरा गांधी’ बन गईं। (  अशोक झा की कलम से )
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