लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है।
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह, समय में ताव कहां?।
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।''
नेपाल की जेन-जैड विद्रोह के बाद ओली सरकार का तख्ता पलटने पर रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां याद आती हैं। जब किसी भी देश की जनता आक्रोशित और आंदोलित हो जाए तो सब कुछ खाक हो जाता है। हिंसक प्रदर्शन में नेपाल का इतना नुकसान हुआ जितना 2015 के भूकंप में भी नहीं हुआ था।
उपद्रवियों ने होटल हिल्टन में लगाई आग काठमांडू समेत नेपाल का दूसरा शहर हिंसा की आग में जलने के बाद विरान पड़ा है। Gen-Z आंदोलन की जद में काठमांडू का सबसे ऊंचा होटल भी आ गया. उपद्रवियों ने होटल हिल्टन में आग लगा दी।यह 5 स्टार होटल जुलाई 2024 में बनकर तैयार हुआ था। इसे बनाने में करीब 500 करोड़ (5 अरब) भारतीय रुपये खर्च हुए।।सभी आधुनिक सुविधा वाले इस होटल में ही अधिकतर विदेश टूरिस्ट ठहरते थे।सुप्रीम कोर्ट, सिंह दरबार को भी फूंका: प्रदर्शनकारियों ने कर्फ्यू और सुरक्षा बलों की भारी तैनाती का उल्लंघन करते हुए आगजनी की और विभिन्न प्रमुख इमारतों और प्रतिष्ठानों पर धावा बोला. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट, सिंह दरबार (मंत्रियों का ऑफिस), राष्टपति आवास, केपीओली का निजी आवास समेत पूर्व प्रधानमंत्रियों और कई मंत्रियों के घरों में आग लगा दी. हालात ये हो गई कि नेताओं को अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देकर भागना पड़ा। क्रुद्ध लोगों ने पूर्व प्रधानमंत्री झाला नाथ खनाल की पत्नी को जिन्दा जला दिया। वित्त मंत्री और अन्य मंत्रियों को सड़कों पर पीटा। सत्ता का केन्द्र बिन्दु रहे सिंह दरबार, संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास और अन्य ऐतिहासिक इमारतें धू-धू कर जलीं। पहली नजर में युवाओं का विद्रोह सोशल मीडिया पर लगाई गई पाबंदियों के विरोध में नजर आया लेकिन बाद में यह विरोध हिंसक संघर्ष में तब्दील हो गया। हिंसा में अब तक 25 लोगों की मौत हो चुकी है आैर 300 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं।
अब सवाल यह है कि नेपाल आखिर क्यों उबला? पड़ोसी देश में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि घर में एक पीढ़ी विद्रोह कर दे जबकि हर महीने हजारों लोग नौकरी करने के लिए विदेश भाग रहे हैं। स्पष्ट है कि हिंसा और अशांति की जड़ें बहुत गहरी हैं। दक्षिण पूर्व एशिया के देशों इंडोनेशिया, मलेशिया और फिलीपींस में भ्रष्टाचार के िवरोध में प्रदर्शन हुए तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह नेपाल तक फैल जाएगा। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर प्रतिबंध लगाया जाना युवाओं के आक्रोश के लिए ट्रिगर साबित हुआ। केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार ने भी क्रूरता की पराकाष्ठा की, जब पुलिस फायरिंग से स्कूली बच्चों समेत 20 लोग मारे गए। जेन ज़ेड के नेतृत्व वाले प्रदर्शनों को नेपाल में हाल ही में हुई घटनाओं की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए। यह सिर्फ़ सोशल मीडिया पर प्रतिबंध का विरोध नहीं है। इंडोनेशिया और फिलीपींस की तरह, नेपाली सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने भी टिकटॉक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल करके सांसदों और राजनेताओं के बच्चों और रिश्तेदारों की विलासितापूर्ण जीवनशैली और यात्राओं के लिए सार्वजनिक रूप से आलोचना की, जबकि देश का अधिकांश हिस्सा गरीबी और कठिनाइयों से जूझ रहा था। कई हाई-प्रोफाइल भ्रष्टाचार घोटालों का प्रचार करते हुए, उन्होंने उल्लेख किया कि करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल “नेपो बेबीज” की जीवनशैली को वित्तपोषित करने के लिए किया जा रहा है। हिंसा के पीछे संस्थागत भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत और राजनीतिक असंतोष की बड़ी भूमिका है। पिछले 4 वर्षों में नेपाल में कई बड़े घोटाले सामने आए, जिसमें गिरि बंधु भूमि, स्वैप घोटाला जो 54,600 करोड़ का बताया जाता है। 13000 करोड़ का ओरिएंटल कॉरपोरेटिव घोटाला और लगभग 70 हजार करोड़ का कॉरपोरेटिव घोटाला शामिल है। इन बड़े घोटालों में आम जनता का विश्वास सरकार से पूरी तरह से उठ चुका है। नेपाल में 10.71 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं। जबकि महंगाई आसमान को छू रही है। देश की कुल सम्पत्ति का 56 प्रतिशत हिस्सा केवल 20 प्रतिशत लोगों के पास है, जिनमें अधिकतर राजनीतिज्ञ शामिल हैं। अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता है। राजनीतिक रूप से भी नेपाल की स्थिति जटिल है। जुलाई 2024 में ओली सरकार बनने के बाद उन्होंने देश को चीन के हाथ में गिरवी रख दिया है। भारत के साथ सीमा िववाद की वजह से आर्थिक दबाव बढ़ा, जिससे जनता में गहरी नाराजगी थी। नेपाल एक हिंदू राष्ट्र था, लेकिन 2008 में वहां 239 वर्षों से चल रहे राजशाही को खत्म कर दिया गया और लोकतंत्र की स्थापना की गई, लेकिन उसके बाद से नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता आ गई और अब तक कई बार सरकारें बदली जा चुकी हैं और 10 प्रधानमंत्री हो चुके हैं। नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना भले ही 2008 में हुई, लेकिन शुरूआत 1990 में बहुदलीय लोकतंत्र की व्यवस्था के साथ किया गया था, लेकिन उस वक्त राजा का प्रभाव बना हुआ था। 2001 में बड़ा परिवर्तन हुआ क्योंकि राजा बीरेंद्र और उनके परिवार की हत्या हुई और ज्ञानेंद्र राजा बने और सत्ता संभाली। 2005 में ज्ञानेंद्र ने बहुदलीय लोकतंत्र की सरकार को भंग किया और सत्ता पर पूर्ण रूप से कब्जा किया लेकिन 2006 से राजशाही के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ और 2008 में राजशाही को समाप्त कर लोकतंत्र स्थापित हुआ और नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया।
जिस तरह से सत्ता को म्यूजिकल चेयर बना दिया गया, मौजूदा विद्रोही भी उसी का परिणाम है। बीच-बीच में राजशाही की वापसी की मांग को लेकर भी उबाल आता रहा है। नेपाल की उथल-पुथल के बीच काठमांडू के मेयर बालेन्द्र शाह का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए उभर रहा है। बालेन्द्र शाह ने इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री भारत से ही हासिल की। रैपर और गीतकार के रूप में वे काफी लोकप्रिय हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि नेपाल कई वर्षों से चीन और अमेरिका का अखाड़ा बना हुआ है, इसलिए विद्रोह के पीछे विदेशी ताकतों की भूमिका को एक दम से नकारा नहीं जा सकता। बंगलादेश का घटनाक्रम हम देख चुके हैं। देखना है नेपाल में क्रांति के बाद शांति कैसे स्थापित होती है।नई सरकार के समक्ष चुनौतियों का जिक्र करें तो आपको बता दें कि सुशीला कार्की की अंतरिम सरकार के सामने कई गहरी चुनौतियाँ हैं। कैदियों की बड़ी संख्या में जेल से फरार होना और हिंसक प्रदर्शन दर्शाते हैं कि देश में सुरक्षा व्यवस्था चरमरा गई है। इसके अलावा, पर्यटन, व्यापार और निवेश को बहाल करना और देश की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही विभिन्न राजनीतिक दलों और युवाओं के बीच संतुलन बनाए रखना होगा। इसके अलावा, छह महीने में चुनाव करा कर सुनिश्चित करना होगा कि जनता की आवाज़ सही मायने में संसद तक पहुंचे। देखा जाये तो नेपाल की हालिया घटनाएँ यह दिखाती हैं कि भ्रष्टाचार और प्रशासनिक विफलताओं के खिलाफ युवा वर्ग खड़ा हो सकता है, लेकिन हिंसा और अराजकता सिर्फ देश को नुकसान पहुँचाती हैं। सुशीला कार्की उम्मीद की किरण जरूर है, लेकिन उनके लिए मार्ग आसान नहीं होगा। अब देश की स्थिरता और विकास इस बात पर निर्भर करेगा कि आंदोलनकारी, सेना और राजनीतिक दल मिलकर संवैधानिक और शांतिपूर्ण रास्ता अपनाते हैं या नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि नेपाल आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ जनता की आकांक्षाएँ और वास्तविक चुनौतियाँ दोनों सामने हैं। कार्की का नेतृत्व इसे सही दिशा देने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है, बशर्ते सभी हितधारक संयम और दूरदर्शिता दिखाएँ। ( नेपाल बोर्डर से अशोक झा )
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/