- संघ के परिवर्तन पुरुष है मोहन भागवत, गणवेश से विचारधारा तक बदलाव, बहस और नेतृत्व की भूमिका
- परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर देते रहे है बल
- दिसंबर में सिलीगुड़ी प्रवास पर होंगे संघ प्रमुख, बंगाल में बदलाव की बड़ी जिम्मेदारी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष और संघ प्रमुख के 75 वर्ष। शताब्दी वर्ष पर मोहन भागवत ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिवसीय व्याख्यानमाला दी। इसमें उन्होंने हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर जोर देते हुए कहा कि दोनों के पूर्वज एक हैं और भारत तभी विश्वगुरु बन सकता है जब सभी समुदाय मिलकर आगे बढ़ें। यह ठीक भी लगता है। संघ के कंधे पर बंगाल फतह की बड़ी जिम्मेदारी है। इसके निर्वहन के लिए जहां 21 सितंबर को अनुशासन और एकता का अनुपम पथ संचलन सिलीगुड़ी में निकाली जाएगी। वही दिसंबर के अंतिम सप्ताह में स्वयं सिलीगुड़ी में दो दिवसीय प्रवास पर संघ प्रमुख होंगे। आज हम संघ प्रमुख की बात करें। राष्ट्रीय स्वयंसेव संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन मधुकरराव भागवत का आज 75 वां जन्मदिन है। माधवराव सदाशिव गोलवलकर के बाद सबसे कम उम्र के सरसंघचालक पके रूप में मोहन भागवत का नाम दर्ज है। भागवत को 59 वर्ष की उम्र में संघ की कमान साल 2009 में मिली थी। तीन पीढ़ी पुराना है आरएसएस से नाता: भागवत के परिवार का आएसएस से तीन पीढ़ी का नाता है। उनके दादा नारायण भागवत संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के सहपाठी हुआ करते थे। 1925 में संघ की स्थापना के बाद नारायण भागवत ने संघ का काम शुरू किया था। नारायण भागवत के बेटे मधुकर भागवत भी संघ के प्रचारक रह चुके हैं। आपातकाल के दौरान बने संघ प्रचारक: 1975 में आपातकाल लगने के बाद भागवत के माता-पिता को जेल में डाल दिया गया था। इसी दौरान भागवत भी संघ के प्रचारक बने। आपातकाल के दौरान वो अज्ञातवास में रहे। 1977 के बाद उन्होंने संघ में तेजी से सक्रिय हुए। 1991 में उन्हें संघ में अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख का कार्यभार दिया गया। वे इस पद पर 1999 तक रहे। 2000 में अचानक बने : सरकार्यवाह : साल 2000 में तत्कालीन सरसंघचालक रज्जू भैया और सरकार्यवाह वीएन शेषाद्री ने स्वास्थ्य कारणों से अपने पद को छोड़ने की घोषणा की। रज्जू भैया की जगह केएस सुदर्शन को नया सरसंघचालक चुना गया जबकि सरकार्यवाह के लिए दो नाम मदन दास देवी और मोहन भागवत का चल रहा था। आखिरकार मोहन भागवत सरकार्यवाह बने। आरएसएस में सरसंघचालक के बाद सरकार्यवाह का पद सबसे अहम होता है। 2009 में बने संघ प्रमुख: लोकसभा चुनाव 2009 के दौरान 21 मार्च 2009 को अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में मोहन भागवत को सरसंघचालक बनाया गया। सुदर्शन अपने सरसंघचालक के दायित्व से स्वास्थ्य कारणों के चलते मुक्त हो रहे थे।मोहन भागवत स्कूटर से करते थे प्रवास, बस की छत पर भी की यात्रा:आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत बड़े सरल और सहज स्वभाव के भागवत लोगों से आसानी से मिलते जुलते हैं। हंसमुख व्यक्ति हैं। परिवार में जाकर लोगों से मिलना इन्हें काफी अच्छा लगता है। क्षेत्र प्रचारक के नाते बिहार और वर्तमान के झारखंड में इनका प्रवास होता था। उस समय संघ कार्यालयों में कार की उपलब्धता नहीं थी। ऐसी स्थिति में वे बस में बैठकर एक जिला से दूसरे जिला में प्रवास किया करते थे। संघ के एक पुराने स्वयंसेवक के अनुसार बिहार के कई इलाकों में उस समय बस की संख्या कम रहने के कारण भीड़ ज्यादा होती थी। वैसी स्थिति में लोगों को छत पर बैठकर सफर करना होता था।
उन लोगों में कभी-कभी मोहन भागवत भी शामिल रहते थे। पटना में तो वे स्वयं स्कूटर चलाकर प्रवास करते थे। बाइक पर कार्यकर्ताओं के पीछे बैठकर कहीं जाने में भी वे नहीं हिचकते थे। उन्होंने इस वर्ष ही मुजफ्फरपुर संघ कार्यालय के उद्घाटन के दौरान स्वयं कहा था कि मैं तो पैदल ही इस शहर में कार्यकर्ताओं के घर जाया करता था। उस समय ऐसी सुविधा नहीं थी।
दो भाई हैं मोहन भागवत
मोहन भागवत दो भाई हैं। भागवत परिवार में बड़े भाई हैं। इनके छोटे भाई वकील हैं और महाराष्ट्र में चंद्रपुर विभाग के विभाग संचालक हैं।
अच्छे गायक और वादक भी हैं
मोहन भागवत अच्छे गायक और वादक भी हैं। संघ में उन्होंने कई गीत लिखे हैं। घोष में रचना भी दी है। बांसुरी के बहुत ही अच्छे वादक हैं। कई भाषाओं के जानकार भी हैं। मराठी, हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत व बंगला बहुत अच्छे से बोलते हैं। संघ कार्य की दृष्टि से इन्होंने कई देशों की यात्रा की है। अभी इनका केंद्र नागपुर है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत बड़े सरल और सहज स्वभाव के भागवत लोगों से आसानी से मिलते जुलते हैं। हंसमुख व्यक्ति हैं। परिवार में जाकर लोगों से मिलना इन्हें काफी अच्छा लगता है। क्षेत्र प्रचारक के नाते बिहार और वर्तमान के झारखंड में इनका प्रवास होता था। उस समय संघ कार्यालयों में कार की उपलब्धता नहीं थी। ऐसी स्थिति में वे बस में बैठकर एक जिला से दूसरे जिला में प्रवास किया करते थे। संघ के एक पुराने स्वयंसेवक के अनुसार बिहार के कई इलाकों में उस समय बस की संख्या कम रहने के कारण भीड़ ज्यादा होती थी। वैसी स्थिति में लोगों को छत पर बैठकर सफर करना होता था।
उन लोगों में कभी-कभी मोहन भागवत भी शामिल रहते थे। पटना में तो वे स्वयं स्कूटर चलाकर प्रवास करते थे। बाइक पर कार्यकर्ताओं के पीछे बैठकर कहीं जाने में भी वे नहीं हिचकते थे। उन्होंने इस वर्ष ही मुजफ्फरपुर संघ कार्यालय के उद्घाटन के दौरान स्वयं कहा था कि मैं तो पैदल ही इस शहर में कार्यकर्ताओं के घर जाया करता था। उस समय ऐसी सुविधा नहीं थी।
दो भाई हैं मोहन भागवत
मोहन भागवत दो भाई हैं। भागवत परिवार में बड़े भाई हैं। इनके छोटे भाई वकील हैं और महाराष्ट्र में चंद्रपुर विभाग के विभाग संचालक हैं।
अच्छे गायक और वादक भी हैं
मोहन भागवत अच्छे गायक और वादक भी हैं। संघ में उन्होंने कई गीत लिखे हैं। घोष में रचना भी दी है। बांसुरी के बहुत ही अच्छे वादक हैं। कई भाषाओं के जानकार भी हैं। मराठी, हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत व बंगला बहुत अच्छे से बोलते हैं। संघ कार्य की दृष्टि से इन्होंने कई देशों की यात्रा की है। अभी इनका केंद्र नागपुर है। संघ प्रमुख बनते ही उन्होंने सबसे पहले भाजपा का कायाकल्प किया। भाजपा के अध्यक्ष के रूप में नितिन गडकरी की ताजपोशी हुई। 2013 में संघ ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए सहमति दी, जिनके नेतृत्व ने भाजपा ने लगातार दो बार लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत का आंकड़ा पार किया। मोहन भागवत का प्रारंभिक जीवन: 11 सितम्बर 1950 को महाराष्ट्र के सांगली में जन्मे मोहन भागवत ने 12 वीं तक की पढ़ाई चंद्रपुर से की। इसके बाद भागवत ने अकोला के डॉ. पंजाब राव देशमुख वेटनरी कॉलेज में दाखिला ले लिया। पढ़ाई पूरी करने के बाद चंद्रपुर में ही उन्होंने पशुपालन विभाग में बतौर अधिकारी नौकरी शुरू कर दी थी। आज के दिन अलग-अलग स्मृतियों से जुड़ा है। एक स्मृति 1893 की है, जब स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में विश्व बंधुत्व का संदेश दिया और दूसरी स्मृति है 9/11 का आतंकी हमला, जब विश्व बंधुत्व को सबसे बड़ी चोट पहुंचाई गई। व्यक्तित्व का 75 वां जन्मदिवस है, जिन्होंने वसुधैव कुटुंबकम के मंत्र पर चलकर समाज को संगठित करने, समता-समरसता व बंधुत्व की भावना को सशक्त करने में पूरा जीवन समर्पित किया है। संघ परिवार में जिन्हें परम पूजनीय सरसंघचालक के रूप में श्रद्धाभाव से संबोधित किया जाता है, ऐसे आदरणीय मोहन भागवत का आज जन्मदिन है। यह एक सुखद संयोग है कि इसी साल संघ भी अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। मैं मोहन भागवत ने कुछ अवसरों पर कहा था कि 75 वर्ष की उम्र के बाद सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लेना चाहिए। इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरू हो गई थी कि यह संकेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए था जो इस वर्ष 17 सितंबर को 75 वर्ष के हो जाएंगे। हालांकि मोहन भागवत ने इन अटकलों को खारिज करते हुए कहा कि मैं दिवंगत आरएसएस नेता मोरोपंत पिंगले के एक हास्यपूर्ण बयान का संदर्भ दे रहा था। इसका कोई गहरा अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए। संघ की रीति-नीति से अलग है नेतृत्व का निर्णय:
संघ में नियमित चुनाव या उम्र सीमा जैसी कोई बाध्यता नहीं है। सरसंघचालक का चयन अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा द्वारा किया जाता है और यह निर्णय पूरी तरह संगठन की आवश्यकता और समय की मांग पर आधारित होता है। ऐसे में मोहन भागवत का आगे का कार्यकाल पूरी तरह संघ के निर्णय पर निर्भर करता है। मोहन भागवत की छवि एक कर्मठ, विचारशील और समर्पित स्वयंसेवक की रही है। उन्होंने संघ को आधुनिक संदर्भों में दिशा देने का प्रयास किया है। उनकी नेतृत्व शैली में संतुलन और संवाद प्रमुख रहा है। जिससे संघ को कई नए आयाम मिले हैं। वे पिछले 16 वर्षों से संघ के मार्गदर्शक और दार्शनिक के रूप में संघ की बागडोर संभाल रहे हैं। वे संघ के तीसरे सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले प्रमुख हैं। उनसे पहले माधुकर दत्तात्रेय देवरस (बालासाहेब) और एम. एस. गोलवलकर (गुरुजी) ने संघ का नेतृत्व किया था। बालासाहेब ने करीब 20 साल तक संघ का संचालन किया, जबकि गोलवलकर ने 32 साल से ज्यादा समय तक संघ की कमान संभाली। मोहन भागवत का संघ के प्रति योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने करीब 50 साल पहले संघ के प्रचारक के रूप में काम करना शुरू किया था। मार्च 2009 में वे संघ के सरसंघचालक बने और तब से लेकर अब तक संघ की कार्यशैली, विचारधारा और राष्ट्र निर्माण की दिशा में मजबूत नेतृत्व प्रदान किया। 11 सितंबर का दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन 1993 में मोहन भागवत ने सरकार्यवाह के रूप में अपनी भूमिका शुरू की थी, जिससे संघ को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने की दिशा में कार्य आरंभ हुआ था। संगठन विस्तार और सशक्तिकरण: मोहन भागवत ने सरसंघचालक पद संभालने के बाद संघ के विस्तार पर विशेष ध्यान दिया। 2009 तक संघ की करीब 40,000 शाखाएं थीं, जो अब बढ़कर 60,000 से अधिक हो चुकी हैं। यह संघ के कार्यकर्ताओं की मेहनत और संगठनात्मक क्षमता का परिणाम है। भागवत जी के नेतृत्व में संघ ने केवल शाखाओं का विस्तार ही नहीं किया, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों में अपनी स्वीकार्यता भी बढ़ाई। वे हमेशा इस बात पर जोर देते हैं कि समाज को जाति-भेद, ऊँच-नीच और भौतिक असमानताओं से ऊपर उठना होगा। उनके अनुसार, "एक भारत श्रेष्ठ भारत" तभी संभव है जब हर वर्ग को समान सम्मान और अवसर मिले। समरसता और सामाजिक एकजुटता पर बल
मोहन भागवत ने समरसता को संघ की मूल धारा बताया है। उन्होंने हमेशा समाज में समानता की आवश्यकता को स्पष्ट किया। उनका मानना है कि भारतीय समाज तभी प्रगति कर सकता है जब हर वर्ग को समान अवसर मिले और समाज में एकजुटता हो। उनका आदर्श वाक्य "एक भारत श्रेष्ठ भारत" इस दिशा में समाज को प्रेरित करता है। विचारधारा और आधुनिकता का संतुलन: मोहन भागवत ने परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया है। उनका कहना है कि विज्ञान, तकनीक और नवाचार अपनाते हुए भी भारत अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा रह सकता है। उनके अनुसार, "विकास वही स्थायी है जो परंपरा से जुड़ा रहे और समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चले।" राष्ट्र निर्माण में योगदान: भागवत जी के नेतृत्व में संघ ने केवल वैचारिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक स्तर पर भी राष्ट्र निर्माण के लिए कई कार्य किए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्राम विकास, पर्यावरण और आत्मनिर्भर भारत जैसे क्षेत्रों में संघ और उसके सहयोगी संगठनों ने उल्लेखनीय योगदान दिया है। कोरोना महामारी के दौरान भी संघ के स्वयंसेवकों ने समाज सेवा का व्यापक कार्य किया। चुनौतियाँ और समाधान: भागवत जी ने स्वीकार किया कि बदलते समय के साथ नई चुनौतियाँ सामने आ रही हैं, जैसे, वैश्वीकरण का दबाव, सांस्कृतिक पहचान का क्षरण और सामाजिक असमानताएँ। उनका मानना है कि इन चुनौतियों का समाधान भारतीय जीवन मूल्य, परिवार आधारित समाज व्यवस्था और आत्मनिर्भरता में निहित है। ( अशोक झा की कलम से )
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