- 500 साल बाद बना चंद्रग्रहण का दुर्लभ योग! धरती पर जलप्रलय या अमंगल संकेत…?
- चंद्रग्रहण के बाद... क्या आएगा बड़ा भूकंप या फटेगा बड़ा ज्वालामुखी?
- दोपहर तक खत्म कर ले श्राद्ध कार्य और ब्राह्मणों का भोजन
हिंदू पंचांग के अनुसार 7 सितंबर का दिन धार्मिक दृष्टि से बेहद खास माना जा रहा है. इस बार एक साथ तीन बड़े योग बन रहे हैं चंद्र ग्रहण, पितृपक्ष की शुरुआत और पंचक का प्रवेश. ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि यह दुर्लभ त्रियोग है, जिसमें धार्मिक कर्मकांडों और नियमों का विशेष महत्व होता है.
चंद्र ग्रहण और सूतक का आरंभ: 7 सितंबर 2025 को चंद्र ग्रहण लग रहा है. यह भारत में दिखाई देगा और इसलिए इसका सूतक काल मान्य होगा. पंचांग के अनुसार सूतक काल ग्रहण शुरू होने से 9 घंटे पहले प्रारंभ हो जाता है. इस बार चंद्र ग्रहण का आरंभ रात 09 बजकर 57 मिनट पर होगा और समाप्ति 01 बजकर 26 मिनट पर होगी. ऐसे में सूतक काल दिन में 12 बजकर 57 मिनट से ही शुरू हो जाएगा. सूतक लगते ही धार्मिक कार्य, मंदिर के द्वार खोलना, भोजन बनाना या ग्रहण करना वर्जित हो जाता है।।
पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म और पितृपक्ष का आरंभ:
7 सितंबर को भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि भी है। इस दिन पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिसे पितृपक्ष का पहला श्राद्ध भी माना जाता है. चूंकि इस दिन ही पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है और साथ ही चंद्र ग्रहण का सूतक लग रहा है, इसलिए श्राद्ध कर्म को सूतक से पहले ही निपटा लेना आवश्यक है. शास्त्रों में सूतक काल में पितरों के लिए किया जाने वाला कोई भी कर्म वर्जित बताया गया है।
क्यों जरूरी है सूतक से पहले श्राद्ध: पितृपक्ष का महत्व हमारे पूर्वजों को तृप्त करने और उनका आशीर्वाद पाने से जुड़ा है. पूर्णिमा के श्राद्ध से पितृपक्ष की शुरुआत होती है। ऐसे में सूतक लगने से पहले ब्राह्मण भोजन, तर्पण और दान जैसे कर्म पूरे कर लेने चाहिए. सूतक शुरू हो जाने के बाद यह सब करना निषिद्ध हो जाता है। कुछ ज्योतिषाचार्य क्यों कह रहे हैं इस बार का चंद्र ग्रहण यम, यानी मौत के घर में लगेगा? चंद्रग्रहण पूरी तरह एक खगोलीय घटना है, ये पूरी तरह विज्ञान सम्मत है। सीधे शब्दों में कहें, तो सूर्य और चंद्रमा के बीच जब पृथ्वी आ जाती है, तो चंद्रमा पर सूर्य की रौशनी नहीं पहुंचती. इस वजह से चंद्रमा के साथ पृथ्वी का कुछ हिस्सा भी अंधेरे में डूब जाता है। ये बेहद खास स्थिति होती है, जिसकी ज्योतिष में गणना अलग है। दरअसल हमारा ज्योतिष शास्त्र चंद्रग्रहण की घटना को 12 राशियों और नक्षत्रों की स्थिति से समझता है। इसी आधार पर धरती पर प्रभावों का आकलन और अनुमान लगाता है। तो क्या कहता है, इस बार का अनुमान, यहां से आप जान लीजिए।
धरती पर चंद्रमा का 'शक्ति समीकरण': विज्ञान चंद्रमा को सूखा उपग्रह मानता है। लेकिन हमारे वैदिक ग्रंथ चंद्रमा को देव रूप में जल का कारक मानते हैं। इसीलिए इसे वेदों में सोम कहा गया है। चंद्रग्रहण के मूल विषय पर आने से पहले ये बात हम आपको पहले इसलिए बता रहे हैं, ताकि आप समझ सकें, करीब 3 लाख किलोमीटर दूर चंद्रमा धरती पर कितना प्रभावी होता है। इसकी गवाही देते हैं समुद्र, जिनमें ज्वार और भाटा की तीव्रता चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करती है।।ये सबकुछ होता है चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण से, जो कि धरती के गुरुत्वाकर्षण का छठे हिस्से के बराबर है। लेकिन इस शक्ति से वो धरती के जलतत्व को नियंत्रित करता है। धरती पर चांद का गुरुत्वाकर्षण बल. एक सीध में सूर्य-चांद, धरती पर वृहद ज्वार!
यही स्थिति चंद्रग्रहण के दिन होती है, जब सूर्य चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में आते हैं, धरती के पूरे जलजगत में बड़ी हलचल देखने को मिलती है. वो चाहे समुद्र हो, या हमार शरीर, जिसें 60 फीसदी हिस्सा जल का होता है। चंद्रमा के साथ 'जीव जगत' पर ग्रहण!: चंद्रग्रहण, मानव शरीर और धरती पर जल पर भी उथल पुथल डालता है। क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा. यानी मिट्टी, जल, अग्नि, आकाश और वायु जैसे पंचतत्वों से बना हमारा शरीर जल बहुल होता है. इसलिए चंद्रमा हमारे मन मस्तिष्क को नियंत्रित करता है. इसका ज्योतिष में पूरा आकलन है।
चंद्रमा जैसे जल का कारक वैसे मन-मस्तिष्क का धारक!
चंद्रग्रहण के पूरे रहस्य की शुरुआत यहीं से शुरू होती है। क्योंकि ये अलग अलग स्थितियों में धरती के जीव जगत पर अलग तरीके से असर डालता है। ग्रहण के समय पशु पक्षी कन्फ्यूज हो जाते हैं कि दिन है या रात है, अंधेरे में बाहर और उजाले में अंदर. अनयूजुअल फिनोमिना होता है, इस टाइम पर पृथ्वी बीच में आ जाती है सूर्य और चंद्रमा के, तब लाइट नहीं आती, तो वायुमंडल में बैक्टीरियल और फंगल इन्फेक्शन बढ़ जाता है।
इसलिए देवताओं के बंद होते हैं कपाट!:
पंडित अभय झा ने जो बताया, वो पूरी तरह विज्ञान सम्मत है। इसलिए ग्रहणकाल में स्नान, ध्यान या भोजन की मनाही है। यही बात ज्योतिष शास्त्र अलग आकलन के साथ कहता है। जैसे चंद्रग्रहण के दौरान मंदिरों और घर के पूजा घर के दरवाजे बंद रखना। कहा गया कि , 'हमारे कष्ट हमारी निगेटिविटी उर्जा का जो फल है, वो हमारे प्रभु को न जाए, उसके लिए कपाट बंद करते हैं, उसकी अशुद्धि न हो जाए. ये चंद्रग्रहण है यानी चंद्रमा दूषित हुआ है राहू से. राहु का मतलब होता है ग्रसित करना, आपके मन मस्तिष्क को प्रभावित करेगी।
चंद्रमा के 'दुश्मन' राहु-केतु की गाथा: बार बार जिस राहु केतु का नाम ले रहे हैं, पहले इन्हें समझ लीजिए। इसे हमारे पौराणिक मान्यता से समझिए। इसमें जो समुद्र मंथन की जो गाथा है, स्वरभानु नाम के दानव ने देवता का रूप धर कर अमृत पी लिया. अमृत कलश के रक्षक चंद्रदेव और सूर्यदेव ने जब ये बात भगवान विष्णु को बताई, तो उन्होंने सुदर्शन चक्र से उसके शरीर को दो हिस्सों में काट दिया।
क्यों होता है चंद्र ग्रहण?: लेकिन अमृत पीने की वजह से दो टुकड़ों में कटकर भी स्वरभानु अमर हो चुका था।।इसके उपरी हिस्से को ज्योतिष्ण में राहु नाम दिया गया, तो पैर वाले हिस्से को केतु।।दोनों छायाग्रह की तरह चंद्रमा की 16 कलाओं के साथ घूमते रहते हैं। ज्योतिष की मान्यता के मुताबिक आज भी राहु और केतु एक साल में कम से कम दो बार ये चंद्रमा को निगलने की कोशिश करते हैं। इसी वजह से होता है चंद्रग्रहण। चंद्रमा राहु शनि और प्लूटो के बीच बैठे हुए हैं।प्लूटो जो यम का कारक है, यम के पास ही पितरों का वास होता है। चंद्रग्रहण का काल, कब रहें सावधान?: पितृपक्ष से पहले की पूर्णिमा पर लगने वाला ग्रहण इस मायने में भी खास है, क्योंकि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में आरंभ से अंत तक दिखाई देगा. यानी पूरे साढ़े तीन घंटे तक के ग्रहण काल में चंद्रमा की पहली कला लुप्त होने से पूरे चांद के लाल स्वरूप में आने तक सबकुछ साफ साफ दिखाई देगा। हिंदू पंचांग के मुताबिक चंद्रग्रहण 7 सितंबर की रात 9.57 बजे से शुरू होगा. ग्रहण का मध्यकाल रात 11.41 बजे होगा और मोक्ष काल, यानी समाप्ति रात 1.26 मिनट पर होगा। पूरा ग्रहण काल 3 घंटे 29 मिनट का होगा. इसमें से 2 घंटे 26 मिनट तक चंद्रमा ब्लड मून रूप में दिखेगा। ग्रहण का सूतक 9 घंटे पहले से, यानी दोपहर 12.30 से लग जाएगा. जबकि सूतक काल रात 1.26 पर खत्म होगा, जो कि पितृपक्ष की शुरुआत है। चंद्रग्रहण और जल प्रलय?: पूर्ण चंद्रग्रहण को लेकर ज्योतिषाचार्यों का एक आकलन ऐसा है, जो धरती पर बड़ी तबाही के संकेत दे रहा है। लेकिन इस पूर्ण चंद्रग्रहण को लेकर ज्योतिषाचार्यों का एक आकलन ऐसा है, जो धरती पर बड़ी तबाही के संकेत दे रहा है। ज्योतिष गणनाओं के मुताबिक दरअसल चंद्रग्रहण से 15 दिन पहले और 15 दिन बाद धरती पर चंद्रमा का गुरुत्व बल घातक रूप से काम करता है। कुछ विशेषज्ञों की राय में अगस्त महीने में जो देश के कई हिस्सों में जल प्रलय जैसे हालात बने, उसका कारक चंद्रमा ही है. पितृ पक्ष से पहले जिस तरह ये धरती के पास आना शुरू होता है, उससे इसका असर जलतत्व पर ज्यादा होता है। जानकार बताते हैं, कि इसे शुभ और अशुभ से जोड़कर नहीं देखे। ये प्रकृति का हिस्सा है. एक तरफ रचना होती है, तो दूसरी तरफ विध्वंस का सिलसिला चलता है. तो क्या 7 सितंबर का पूर्ण चंद्रग्रहण धरती पर विध्वंशकारी शक्तियों को बढ़ाने वाला है? कुछ ज्योतिषियों का कहना है कि ये प्रलय काल का इंडिकेशन है पूरी पृथ्वी के लिए हिंद से अटलांटिक तक प्रभाव, न्याय के धर्म का पालन करना होगा. ये आठ अरब की जनसंख्या मात्र 64 करोड़ की होगी। ज्योतिषाचार्य की इस भविष्यवाणी से भले ही विज्ञान या तर्कशास्त्री इत्तेफाक न रखें, लेकिन जहां तक कलियुग के आखिरी चरण का साल है, तो इसे लेकर हमारे पौराणिक ग्रंथों में जिक्र है. जब कलियुग का अंत होगा, तो धरती पर दूषित मन, प्रदूषित वायु और इंसानों का अधर्मी स्वभाव इनके विनाश का कारक बनेगा।
ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि ग्रहण के समय में ये एक इंडिकेशन है मृत्यु की, रोग की. मन से दूषित, डिप्रेशन, चिंताओं से रोग उत्पन्न होगा। धरती पर जिस महाविनाश की बात ज्योतिषाचार्य कर रहे हैं, अब आपको उसका आधार समझाते हैं. इसके पीछे हैं ज्योतीषिय गणना, जो इस बार के चंद्रग्रहण को रक्तिम, यानी ब्लड मून बनाने वाली है. दरअसल
'विनाश योग' में चंद्रग्रहण?: पहला योग- सम-सप्तक. ये योग शनि और मंगल ग्रह से बनता है. इस योग में शनि और मंगल एक दूसरे को देखते हैं. ऊपर से शनि की चाल अभी वक्री है, जिससे ज्यादा आपदाएं आती हैं. दूसरा योग- 8वें घर में चंद्रमा. चंद्रमा की मूल राशि कर्क है. लेकिन अभी ये कुंभ राशि में विराजमान है। कुंभ राशि चंद्रमा के लिए 8वां घर है. 8वें घर को मृत्यु, संकट का कारक माना जाता है. इसलिए ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि ये जो ब्लड मून है, पूरब से पश्चिम तक बाढ़ें आ रही हैं, पानी से रिलेटेड बीमारियां बढ़ेंगी।
तो क्या पिछले दो महीने से धरती के अलग अलग हिस्सों में जो जल प्रलय जैसे हालात दिख रहे हैं, वो अभी सिर्फ ट्रेलर है? क्या आने वाले दिनों में इससे भी बड़ी आपदा धरती पर आ सकती है।
ज्योतिषाचार्यो में इसे लेकर बड़ी चर्चा है. साल का ये आखिरी पूर्ण चंद्रगहण बड़ी तबाही का कारक हो सकता है.
वर्ल्ड का 'पावर बैलेंस' बिगाड़ेगा ग्रहण?
चंद्रग्रहण का जो दूसरा बड़ा संकेत ज्योतिषाचार्य बता रहे हैं, दुनिया में सत्ता संघर्ष का. जिसके कई उदाहरण पहले से देखने को मिल रहे हैं. रूस ईरान जंग के साथ मिडिल ईस्ट में ईरान- इजरायल और फिलिस्तीन के बीच गहराता संकट।
क्या ये चंद्रग्रहण इस संघर्ष के किसी बड़ी जंग में तब्दील होने के संकेत दे रहा है? क्योंकि जैसा हमने पहले बताया, चंद्रमा धरती पर जल और मन मस्तिष्क का नियंत्रक है और एक कहावत भी है- विनाश काले विपरीत बुद्धि। तो क्या चंद्रमा के असर में दुनिया के नीति निर्धारकों की बुद्धि इतनी विपरीत होगी कि विनाश को दावत दे दे? अगर इस ग्रहण को चेतावनी की तरह लें, तो ये सबकुछ अब भी रुक सकता है. क्योंकि चंद्रग्रहण अपने आप में विनाशक नहीं, ये प्राकृतिक घटना है जो कुछ संकेत देती है। ( अशोक झा की रिपोर्ट )
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/