- जिस डॉलर को लेकर इतरा रहा अमेरिका उसका होगा बड़ा गर्क
- ट्रंप की टैरिफ नीति ने ब्रिक्स देशों भारत, चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका एकजुट
- ये 'पांच पांडव' अब अपनी मुद्राओं में व्यापार और डॉलर को चुनौती देकर अमेरिका को सिखाएंगे सबक
अमेरिका की टैरिफ नीति ने भारत, चीन और रूस को एक मंच पर ला दिया है। वैश्विक आर्थिक संतुलन में बड़ा बदलाव दिख रहा है, जहां ये तीनों देश मिलकर डॉलर पर निर्भरता घटाने और व्यापारिक सहयोग बढ़ाने की दिशा में बढ़ रहे हैं। हालांकि भारत में विरोधी इसे मोदी की हार बता रहे है वही इस नए गठजोड़ से पूरे विश्व में मोदी की कूटनीति का लोहा माना जा रहा है। भारत में एक पुरानी कहावत है सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटा। जी हां ट्रंप का टैरिफ वार अमेरिका पर ही भारी पड़ने वाला है। ट्रंप की टैरिफ नीति ने ब्रिक्स देशों भारत, चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका को एकजुट कर दिया है। ये 'पांच पांडव' अब अपनी मुद्राओं में व्यापार और डॉलर को चुनौती देकर अमेरिका को सबक सिखाएंगे। यह गठजोड़ आने वाले वर्षों में नई वैश्विक महाशक्ति का रूप ले सकता है। रूस-यूक्रेन जंग के बाद अमेरिका और यूरोप ने रूस पर कई सख्त पाबंदियां लगा दीं. लेकिन भारत और चीन ने रूस से सस्ता तेल खरीदना जारी रखा—वो भी अपनी लोकल करेंसी में, न कि डॉलर में. इससे इन देशों के पास ज्यादा डॉलर जमा हो गए और अब वे खुद को डॉलर पर कम निर्भर बनाना चाहते हैं। वित्त विशेषज्ञ संदीप पांडे बताते हैं कि अमेरिका चाहता है कि बाकी देश अब भी डॉलर में ही लेन-देन करें। लेकिन भारत, चीन और रूस अब खुद का रास्ता चुनना चाहते हैं. इससे दुनिया की मुद्रा व्यवस्था भी बदल सकती है। कलदुनिया के आर्थिक खेल में अब नया मोड़ आ गया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जो टैरिफ यानी टैक्स लगाए, उसने भारत, चीन और रूस को एक साथ ला दिया है। ये तीन बड़े देश अब मिलकर एक ऐसी आर्थिक ताकत बन सकते हैं, जो आने वाले समय में अमेरिका और यूरोप की नींद उड़ा देगी।
तीनों देश अब आपस में कारोबार, तेल, तकनीक और पैसे के लेन-देन को लेकर एकजुट हो रहे हैं। अगर आने वाले समय में ये तीनों देश सच्चे मित्र बन जाते हैं, तो डोनाल्ड ट्रंप में “त्राहिमाम” करते नजर आ सकते हैं।जानकारों के मुताबिक, भारत, चीन और रूस की कुल जीडीपी (PPP के हिसाब से) करीब 54 ट्रिलियन डॉलर है. यह पूरी दुनिया की एक-तिहाई कमाई के बराबर है. इतना ही नहीं, ये तीनों देश 3.1 अरब लोगों के घर हैं—यानि पूरी दुनिया की आबादी का करीब 38%. मतलब, इनकी घरेलू बाजार भी दुनिया की सबसे बड़ी बाजारों में से एक है।
वे भूल बैठे हैं कि वैश्वीकरण और उदारीकरण के नाम पर अमेरिका ने अपार कमाई की है लेकिन दूसरे देशों को इससे फायदा मिले उसे सहन नहीं कर पा रहे। वर्तमान में विश्व की अर्थव्यवस्था में फ्री ट्रेड के उफान के बीच कोई भी देश अपनी अर्थव्यवस्था के दरवाजे दूसरों के लिए बंद करके अमीर नहीं हो सकता। ट्रम्प यह भी भूल बैठे कि अमेरिका के आईटी क्षेत्र और सिलीकॉन वैली की समृद्धि में भारत का महत्वपूर्ण योगदान है। आज विश्व की बड़ी टेक कम्पनियों के सीईओ भारतीय मूल के ही हैं। अमेरिका का खजाना भरने में प्रवासी भारतीयों की भी बड़ी भूमिका है। ट्रम्प की कुंठा और हताशा इस बात से सामने आ चुकी है कि उन्होंने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ थोपने को रूसी तेल के राजस्व से जोड़ दिया है। भारत द्वारा रूस से तेल के साथ-साथ हथियारों की खरीदारी से भी ट्रम्प परेशान हैं।
ट्रम्प सोचते हैं कि रूस का तेल राजस्व तोड़कर वह उसे यूक्रेन युद्ध रोकने के िलए विवश कर सकते हैं तो यह भी उनकी भूल है। विश्व के सबसे शक्तिशाली राष्ट्रपति कभी ब्रिक्स से भयभीत हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं डॉलर का विकल्प ढूंढने की ब्रिक्स की पहल अगर सफल हो गई तो डॉलर का वर्चस्व ही खत्म हो जाएगा। ट्रम्प के टैरिफ की चुनौती का सामना करने के िलए भारत ने भी अपनी तैयारी पूरी कर ली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्रम्प के आगे झुकने से साफ इंकार करके राष्ट्र के स्वाभिमान को जिंदा रखा। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई उच्च स्तरीय बैठक में टैरिफ से निपटने के िलए पूरी रणनीति तैयार कर ली है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अमेरिकी टैरिफ से भारत का व्यापार प्रभावित होगा लेकिन नया भारत अब पूरी तरह से मोर्चाबंदी करने को संकल्पबद्ध है। आर्थिक विशेषज्ञ और निर्यातक विभिन्न विकल्पों पर मंथन कर रहे हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था फिलहाल 339 लाख करोड़ रुपये की है। भारत हर साल लगभग 38,35,000 करोड़ रुपये का सामान दुनिया को निर्यात करता है। इसमें अकेले अमेरिका को 7,65,000 करोड़ रुपये का निर्यात होता है, जो कुल एक्सपोर्ट का करीब 30 प्रतिशत है। अमेरिका की ओर से 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की चर्चा के बीच अनुमान लगाया जा रहा है कि इसका असर सभी उत्पादों पर नहीं, बल्कि केवल कुछ कैटेगरी के सामान पर होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इसका असर करीब 3,20,000 करोड़ रुपये के निर्यात पर पड़ सकता है।
यदि अमेरिका को प्रभावित श्रेणी का निर्यात पूरी तरह से रुक भी जाए तो भारत के कुल निर्यात का 8.5 प्रतिशत हिस्सा ही ठप्प होगा। भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था का यह मात्र एक प्रतिशत से भी कम है। ऐसे में भारत को बड़ा झटका नहीं कहा जा सकता। भारत ने अमेरिकी दबाव को किनारे रख अपने िहतों को प्राथमिकता दी है। क्योंिक भारत ने कृषि और डेयरी उद्योग को पूरी तरह से सुरिक्षत रखा है। भारत के लिए सभी विकल्प खुले हैं। जो उत्पाद अमेरिका को एक्सपोर्ट किए जाते हैं, वे प्रमुख रूप से हैं- लेदर, ज्वैलरी, टैक्सटाइल, कैमिकल्स, ऑटो पार्ट्स और मरीन प्रोडक्ट्स। हालांकि, इसमें फार्मास्युटिकल्स, सेमीकंडक्टर्स और एनर्जी रिसोर्सेज जैसे कुछ सैक्टर्स को इस टैरिफ से पूरी तरह छूट दी गई है। ऐसे में भारत को अब साउथ ईस्ट एशिया, यूरोप और अफ्रीकी देशों में निर्यात बढ़ाने की कोशिश करनी होगी और अमेरिकी निर्भरता कम करनी होगी। अमेरिकी हाई टैरिफ के बाद भारतीय निर्यातकों के लिए यूएस बाजार में प्रतिस्पर्धा कर टिके रहना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि अन्य देशों पर भारत के मुकाबले टैरिफ की दरें काफी कम होंगी। ऐसी स्थिति में भारत के पास यह विकल्प बनता है कि वह जहां दूसरे बाजारों की तरफ रुख करे, वहीं दूसरी तरफ घरेलू स्तर पर उद्योगों को सब्सिडी दे। घरेलू सामानों के उपभोग को बढ़ावा दे। इससे भारत की आर्थिक रफ्तार पर यूएस टैरिफ का असर बेहद कम होगा।
मोदी सरकार कुछ बड़े ऐलान कर सकती जो भारतीय निर्यातकों को राहत देने के साथ-साथ वैकल्पिक बाजारों की तलाश में सहायक होंगे। भारतीय निर्यातक सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि सरकार उनके िलए आर्थिक राहत और विशेष रूप से कामगारों की सुरक्षा के लिए स्पैशल पैकेज की घोषणा करे। अतिरिक्त टैरिफ से बचने के लिए अमेरिकी आयातकों आैर भारतीय निर्यातकों ने फ्रंट लोडिंग कर ली है, ताकि टैिरफ से बचा जा सके। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार अर्थव्यवस्था की निर्यात पर निर्भरता कम करने के िलए स्वदेशी मंत्र पर जोर दे रहे हैं। उन्होंने हर भारतीय को स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया है। हर सार्वजनिक सभा में यही कहा है कि देशवासी वही उत्पाद खरीदें जिसमें किसी भारतीय का पसीना बहा रहो। देशवासियों को भी स्वदेशी का संकल्प लेना होगा। जब दुनिया में अस्थिरता का माहौल और भारत के सामने खुद को सुरक्षित रखने की चुनौती हो तो हर देशवासी को भी अपना दायित्व समझना चाहिए कि स्वदेशी माल बेचना और स्वदेशी माल खरीदना ही देश की सच्ची सेवा होगी। अब जबकि त्यौहारी उत्सव शुुरू हो चुका है। दीवाली तक बाजार लोगों से गुलजार होंगे। लोगों को हर छोटा-बड़ा उत्पाद स्वदेशी ही खरीदना चाहिए। इससे उत्पादों की मांग बढ़ेगी। जब मांग बढ़ेगी तो उत्पादन बढ़ेगा। उत्पादन बढ़ाने के लिए उद्योगों को अधिक श्रम की जरूरत पड़ेगी। इससे ही अर्थव्यवस्था का चक्र चलेगा। समय आ गया है कि भारत आत्मनिर्भरता का सामर्थ्य दिखाए। अमेरिका को भी जल्दी ही समझ आ जाएगा कि भारतीयों के बिना उसकी भी चमक नहीं बचेगी। अमेरिका के लोगों के पास वह श्रम शक्ति नहीं है जितनी कि भारतीयों के पास। ( अशोक झा की रिपोर्ट )
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