- पूर्वोत्तर के बाद सीमांचल है इसके लिए उपयोग भूमि, गरीबी उन्मूलन, पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक संरक्षण में सहायक
विश्व बांस दिवस पर आज बात होगी बांस के जरूरतों और समय के साथ इसके बदलते स्वरुप की बात करते हैं। पूर्वोत्तर भारत और सीमांचल में लोगों की ईमानदारी और बांस की वफादारी का कोई जोड़ नहीं। लोगों की रोजी-रोटी इसी से चलती है। यहां बांस से बने घर, दुकान, रेस्तराँ तो आम बात है। लेकिन पोस्ट ऑफिस, लॉज, पर्यटकों के लिए हट, आर्ट ऑफ लिविंग कुटीर, कॉन्फ्रेंस हॉल और पार्किंग स्टैंड भी बांस से बने मिलेंगे और तो और आईआईटी-गुवाहाटी का ऑडिटोरियम भी बांस का ही बना है। इसी प्रकार सीमांचल में आज भी ज्यादातर घरों में बांस का प्रयोग होता है। मिथिला ब्राह्मण तो उपनयन से लेकर किसी भी पूजा में बांस के बने वर्तन का ही उपयोग करते है। बांस की उत्पत्ति की अनोखी कथा: आदिवासियों के बीच बांस की पैदाइश को लेकर एक लोककथा दिलचस्प होने के साथ बेहद खौफनाक भी है। लोककथा के मुताबिक एक परिवार में चार भाई और उनकी बहन थी। भाई खेती-मजदूरी करते, बहन घर में खाना पकाती। एक दिन खाना पकाने के दौरान बहन का हाथ कट गया और उसके खून की एक बूंद खाने में टपक गई।
जब बहन ने भाइयों के आगे खाना परोसा तो उन्हें खाना इतना टेस्टी लगा कि भाई ने बहन से खाने की तारीफ करते हुए कहा- ‘खाना बहुत स्वादिष्ट है तो बहन ने आपबीती सुनाई।’
भाइयों को लगा जब बहन का खून इतना स्वादिष्ट है तो इसका मांस कितना स्वादिष्ट होगा। इसके बाद भाइयों ने बहन की हत्या कर उसके मांस को चार हिस्सों में बांट दिया। तीन भाइयों ने अपना-अपना हिस्सा खा लिया। लेकिन एक भाई का हिस्सा रह गया। उसके हिस्से के मांस को मिट्टी में गाड़ दिया गया। लोक कथा के मुताबिक, जिस जगह भाइयों ने बहन के मांस को गाड़ा था, वहां कुछ दिनों बाद बांस का पेड़ उग आया। कहा जाता है कि तभी से बांस की उत्पत्ति हुई, जिसे आदिवासी ‘बंसा देवी’ के रूप में पूजने लगे। 2013 में बने भोपाल में जनजातीय संग्रहालय में इस कहानी को आधार बनाते हुए ‘बंसा देवी’ की कहानी को दर्शाया गया है। बासी कागज बनने की शुरुआत:
कागज का अविष्कार चीन में हुआ। भारत में, पहला कागज उद्योग कश्मीर में सुल्तान ज़ैनुल आबेदीन ने 1417-67 ईस्वी में किया और कई हिस्सों में कागज मिलों की स्थापना हुई। 1924 तक कागज मिलों ने कच्चे माल के रूप में बांस का उपयोग शुरू किया।झारखंड में मशहूर बांस करील: बांस की कोपलों को बांस करील कहते हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मेघालय, कर्नाटक समेत कई राज्यों में बरसात के समय में बांस करील खूब मिलती है। कहीं यह अचार, मुरब्बा तो कहीं सब्जी के रूप में खाई जाती है। झारखंड के हजारीबाग में बांस करील की सब्जी बनाई जाती है। इसे बारीक काटकार सरसों, करी पत्ता और हरी मिर्च के साथ पकाया जाता है।
पश्चिम बंगाल में इसे बांसेर कोरील कहते हैं: पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले में बांस की कोपलें आने के मौसम में बांसेर कोरील की करी खाने को मिलती है। यहां के रहने वाले लोकल लोग इसे देसी चिकन कहते हैं।शिलांग में बांस का अचार बनता: शिलांग में लुगसिएज अचार मिलता है जो बहुत तीखा होता है। मेघालय के खासी समुदाय ये अचार सदियों से बना रहा है। बांस की ताजा कोपलों को स्लाइस में काटकर सरसों, कलौंजी, मेथी, जीरा, सौंफ में मिलाकर सुखाया जाता है। फिर इसे दूसरे अचार की ही तरह सरसों के तेल में रखा जाता है।ओडिशा के बांस के मशहूर चिप्स: ओडिशा में इसे चिप्स की तरह खाया जाता है। बांस करील को गोल पतले टुकड़े करके इसे चावल के आटा में लपेटा जाता है। इसमें मसाले मिलाकर तेल में तलते हैं। यह इतना टेस्टी और क्रिस्पी होता है कि इसे ओडिशा में ‘कराडी’ कहते हैं।
कर्नाटक की बांस करील करी औषधीय गुणों भरपूर
कर्नाटक के मेंगलुरू में पश्चिम बंगाल की तरह ही बांस करील की करी खाने को मिलती है जिसे ‘बाम्बेले करी’ कहते हैं।
नारियल के पेस्ट में इमली, धनिया, जीरा मिलाकर बांस करील की करी बनाई जाती है। बांस करील की टेस्टी डिशेज औषधीय गुणों से भी भरपूर होते हैं। इनमें प्रोटीन, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, एमीनो एसिड्स और मिनरल्स ज्यादा मिलते हैं।
खास बात यह कि इसमें फाइटोन्यूट्रिएंट्स जैसे केमिकल कंपाउंड भी होते हैं जो दिल की बीमारियों को दूर रखते हैं।
कुलमिलाकर कहें तो बांस करील उबालकर खाएं या सुखाकर करी के रूप में कुक करें या आचार डालें, यह आपकी सेहत को दुरुस्त ही रखेगा। बांस के औषधीय गुण:
बांस का वैज्ञानिक नाम बैम्बू सोडिया है। बांस की कोपलों को फूड आइटम की तरह खाया जाता है। औषधीय गुणों से भरपूर इसे ‘बम्बू शूट्स’ भी कहते हैं। इसका आयुर्वेद में इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है।बम्बू शूट्स के औषधीय गुणों के बारे में आयुर्वेदाचार्य डॉ. अमरेश कहते हैं कि बंबू को एशियाई देशों में काफी इस्तेमाल किया जाता है। इसमें मौजूद फेनोलिक कंपाउंड एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी माइक्रोबियल है। बांस की कोंपलें एंटी एजिंग का काम करती हैं। डॉ. अमरेश कहते हैं बांस के औषधीय गुण अनगिनत हैं। बंबू शूट्स से डायरिया, त्वचा संबंधी समस्याओं, कान दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है।इसलिए भारत के लिए महत्वपूर्ण है यह दिन: विश्व बांस दिवस पर इसलिए इससे जुडी कुछ बातों को जानना बेहद जरूरी है। भारत के लिए विश्व बांस दिवस इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि 18 सिंतबर का दिन भारत के लिए और खास इसलिए है क्योंकि इसी दिन नोबर पुरस्कार विजेता और भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का जन्मदिन है। भारत के जिन राज्यों में बहुतायत में बांस के जंगल पाए जाते हैं वहां पर गरीबी उन्मूलन करने में बांस एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आज के आधिनक जमाने में बासं की लकडी का इस्तेमाल अलग-अलग व्यंजन बनाने के लिए किया जाता है। देश के लाखों लोगों को मिलता है रोजगार: बांस के व्यवासिक इस्तेमाल को बढावा देने के लिए भारत सरकार ने बांस का दर्जा दिया है. बांस पर्यावरण के अनुकूल एक बेहतर संसाधन है, यह काफी तेजी से बढ़ता है. इसकी खेती के लिए न्यूनतम या ना के बराबर कीटनाशकों की आवश्यकता होती है. इतना ही नहीं इसकी कटाई करना भी आसान होता है इसमें जड़ों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता है। बांस के इस्तेमाल की बात करें तो बदलते वक्त के साथ इस पर कई प्रकार के शोध हुए हैं और इसके इस्तेमाल का दायरा बढता गया। आज घर की सजावट से लेकर कुर्सी टेबल तक बनाने में इसका इस्तेमाल किया जाता है. इससे देख लाखों बांस के कारीगरों और खेती करने वाले लोगों को रोजगार मिल रहा है। ( अशोक झा की रिपोर्ट )
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