क्या कोई प्रधानमंत्री इतना भी सरल हो सकता है? नेपाल के अंतरिम पीएम की तस्वीर देखने के बाद यह कहते सुना जा रहा है। मात्र 24 घंटे के अंदर बह जहां कई कठोर फैसला लिए वही हिंसा में क्षतिगस्त मलवों को
देखने पहुंच गई। घायलों से वह पहले ही मिलकर हाल चाल जाना है। यह कही और नहीं बल्कि भारत और नेपाल में देखा जा सकता है। क्योंकि भारत और नेपाल का सांस्कृतिक सम्बन्ध बहुत पुराना है।यह इतिहास इतना महत्वपूर्ण है कि इसे भुलाया नही जा सकता है।वैसे तो नेपाल भारत का ही भूभाग था।शपथ लेने के बाद सबसे पहले पड़ोसी देश भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अभिवादन किया। भारत और नेपाल के राजनयिक रिश्ते अब मजबूत होंगे।वैसे भी नेपाल की सीमा तीन राज्यो से मिलती है। मधेसी समुदाय का विस्तार दक्षिण नेपाल से है। नेपाल की राजनीति में पहाड़ी लोगो का वर्चस्व रहा है। 1750 की सीमाएं भारत नेपाल से मिलती है। भारत की हमेशा नेपाल की नजदीकियां रही है।जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने है और वह जिस राजनीतिक दल और विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहे है उससे वे नेपाल और भारत के बीच अच्छे सम्बन्धो की कामना करते है।वह कामना हम इसलिए भी करते है कि दोनों देशो के बीच रोटी बेटी का सम्बब्ध माना जाता है।
दोनो देशो के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत एक सी है। अगर राम भारत के है तो माना जाता है कि राजा जनक और सीता नेपाल के है। अगर महात्मा बुद्ध को निर्माण प्राप्ति भारत में हुई थी तो उनका जन्म लुम्बिन नेपाल में हुआ था। भारत मे लाखो नेपाली रोजी रोटी कमा रहे है। नेपाल में भी दस हजार के करीब भारतीय है। दोनो देशो में हिंदी बोली जाती है।भारत ने हमेशा नेपाल का हित चाहा है। लेकिन वामपंथी सरकारों ने भारत की आलोचना करना ही शुरू कर दिया।वे भारत और नेपाल की संस्कृति की एकरूपता से शायद अनभिज्ञ होंगे। भारत के प्रधानमंत्री गर्मजोशी के साथ नेपाल गए थे। नेपाल में भूकंप आने के बाद भारत के हवाई जहाज नेपाल पहुंच गए।
भारत तो खुद नेपाली का हितैषी मानता है। लेकिन भारत की आलोचना करने वाली सरकार का अब पतन हो चुका है।चीन से बढ़ते राजनैतिक रिश्ते से नेपाल यह समझने लगा कि चीन समृद्धि शाली होने के नाते नेपाल को मददगार बनेगा।लेकिन उसने नेपाल को गुमराह करने का ही काम किया। जबकि भारत नेपाल से मजबूत रिश्ते चाहता है। चीन के साथ सम्बन्धो को प्राथमिकता देने वाली ओली सरकार गिनती के समय दरमियान धराशायी हो गई। उसके बाद भी नेपाल में अब भी राजनैतिक समीकरण बने हुए है। जनता भारत से सम्बब्ध स्थापित करना चाहती है।नेपाल के पुनः निर्माण के लिए मोदी ने घोषणा भी की थी।दोनो देशो की सुरक्षा आपस मे जुड़ी है।प्रचंड ने पतंजलियोग पीठ को भी न्यौता दिया था। युवाओं के हितैषी प्रचन्ड के बाद ओली सरकार ने भारत के रिश्ते में कड़वाहट घोल दी।लेकिन अभी भी भारत और नेपाल जुड़े हुए है।
नेपाल की प्रधानमंत्री सुशीला कार्की का भारत के साथ गहरा रिश्ता है।सुशीला कार्की बनारस विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है।यही से जीवन साथी भी मिला है।भारत के साथ नेपाल के रिश्ते अब मजबूत होंगे।सुशीला कार्की बनारस विश्विद्यालय से राजनीति विज्ञान की पढाई की है।भारत से समर्थन की बात कहने वाली नेपाली प्रधानमंत्री सुशीला कार्की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी की उनके मन मे अच्छी छवि है।अब भारत और नेपाल के अच्छे रिस्ते बनेंगे। भारत और नेपाल की संस्कृति में कोई फर्क नही है।राम और सीता को मानने वाले नेपाल अभी संकटो से गुजरा है।नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड का भारत दौरा से दोनो देशो के राजनयिक रिश्ते मजबूत होते दिखाई दिए थे।लेकिन उनकी सरकार जाने के बाद नई सरकार का गठन होने के पश्चात भारत और नेपाल के बीच खाई बन गई।भारत का विरोध होने लगा और नेपाल ने चीन से अपने द्विपक्षीय रिश्ते मजबूत करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।दोनो देशो के बीच धार्मिक,सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर साझी विरासत है।दोनो देश के बीच सीमा नही है।नेपाल की राजनीति में पहाड़ी लोगो का वर्चस्व है।
दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि तीनों महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों के नेता भी पहाड़ी मूल के है। मधेसी समुदाय की बात पर तीनों दल एक हो जाते है। 2017 में नेपाल में मधेसी मोर्चा के स्थानीय निकाय चुनाव कराने के सरकार के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया। संविधान में संशोधन की मांग कई वर्षों से चल रही है।तत्कालीन प्रधानमंत्री प्रचंड का पुतला जलाकर विरोध प्रदर्शन किया था।नेपाल में प्रचंड के कार्यकाल के दौरान भी परिस्थिति गंभीर बनी हुई थी।संविधान सुधार की बात हुई थी। उसके बाद महत्वपूर्ण दलों ने लीपा पोती की गई। नेपाल शांत और धार्मिक देश है।भारत के रीति रिवाज भी नेपाल से मिलते है। भारत मे करीब 30 लाख नेपाली गोरखा रह रहे है। वैसे भारत के भी लोग नेपाल में है। नेपाल में भीषण भूकंप के बाद स्थिति काफी बिगड़ गई थी। राजनैतिक ,सामाजिक और प्राकृतिक मार झेल रहे नेपाल की स्थिति इतनी गम्भीर हुई कि युवाओ के आक्रोश ने सबकुछ स्वाहा कर दिवा।केपी शर्मा ओली के इस्तीफा देने के बाद अंतरिम सरकार के गठन के लिए कोशिशें तेज हो गई और सुशीला कार्की नेपाल की प्रधानमंत्री का नाम चयनित किया गया।प्रदर्शनकारियों की पहली पसंद सुशीला कार्की ही थी।सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के कारण युवाओ ने सरकारी इमारतों को आग के हवाले कर दिया। नेपाल में पिछले 14 साल में 17 बार सरकार बदली है। पूर्व न्यायाधीश सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री है। ( नेपाल बॉर्डर से अशोक झा की रिपोर्ट )
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