- क्यों बने गणेश को विघ्नहर्ता और प्रथम पूज्य का वरदान
गणेश उत्सव की अंतिम तैयारी हो रही है। सिलीगुड़ी में कई पूजा पंडाल का विधिवत उद्घाटन हो गया है। इस बार भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 26 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 54 मिनट पर होगा। इसका समापन 27 अगस्त की दोपहर 3 बजकर 44 मिनट पर हो रहा है। उदया तिथि के मुताबिक गणेश चतुर्थी का पर्व 27 अगस्त को मनाया जाएगा। भगवान गणेश की उत्पत्ति कब और कैसे हुई। आज आपको इसके पीछे क्या पौराणिक कथा है और यह त्योहार इतना खास क्यों बन गया? आइए जानते हैं गणेश चतुर्थी की उत्पत्ति और इससे जुड़ी पौराणिक कथा: गणेश चतुर्थी की शुरुआत: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गणेश चतुर्थी का महत्व भगवान गणेश के जन्म से जुड़ा है, जो भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। गणेश चतुर्थी का पर्व आज भारत में विशेष रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और गोवा में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। लोग अपने घरों में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते हैं और 10 दिनों तक उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। गणपति स्थापना से लेकर विसर्जन तक, यह उत्सव भक्ति, उत्साह और सामुदायिक एकता का प्रतीक बन जाता है। विसर्जन के दिन, भक्त गणेश जी की मूर्ति को नदियों, समुद्र या जलाशयों में विसर्जित करते हैं, यह विश्वास करते हुए कि गणपति अपने साथ सभी विघ्नों को ले जाते हैं। इस दौरान "गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया" के नारे गूंजते हैं, जो भक्तों के उत्साह को और बढ़ाते हैं। पौराणिक कथा : पौराणिक ग्रंथों- विशेष रूप से शिव पुराण और गणेश पुराण में भगवान गणेश के जन्म की कथा वर्णित है। पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती एक बार स्नान करने जा रही थीं। उस समय भगवान शिव कैलाश पर नहीं थे और माता पार्वती ने अपने द्वार पर किसी को पहरेदार के रूप में नियुक्त करने का विचार किया। उन्होंने अपने शरीर की मैल से एक सुंदर बालक का निर्माण किया और उसे जीवित कर दिया। इस बालक को उन्होंने अपना पुत्र माना और उसे नाम दिया गणेश। माता पार्वती ने गणेश को आदेश दिया कि वह किसी को भी उनके कक्ष में प्रवेश न करने दे। कुछ समय बाद जब भगवान शिव कैलाश लौटे तो उन्होंने गणेश को द्वार पर देखा। गणेश ने शिव को भी अंदर जाने से रोक दिया, क्योंकि वह उन्हें नहीं पहचानते थे। शिव को यह अपमानजनक लगा और क्रोध में आकर उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर काट दिया। जब माता पार्वती ने यह देखा तो वह अत्यंत दुखी हुईं और शिव को बताया कि गणेश उनका पुत्र है। अपनी भूल का एहसास होने पर शिव ने गणेश को पुनर्जनन देने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने गणों को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा में जाएं और जो पहला प्राणी मिले, उसका सिर ले आएं। गणों को एक हाथी का बच्चा मिला, जिसका सिर वे ले आए। शिव ने उस हाथी के सिर को गणेश के धड़ से जोड़कर उन्हें जीवित कर दिया। इस तरह गणेश गजानन यानी हाथी के सिर वाले देवता बन गए।
गणेश को विघ्नहर्ता और प्रथम पूज्य का वरदान: इस घटना के बाद, भगवान शिव ने गणेश को आशीर्वाद दिया कि वह सभी देवताओं में प्रथम पूज्य होंगे। कोई भी शुभ कार्य शुरू करने से पहले गणेश की पूजा की जाएगी और वह सभी विघ्नों को दूर करने वाले विघ्नहर्ता कहलाएंगे। इसके अलावा, माता पार्वती ने गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सिद्धि का वरदान दिया। यही कारण है कि गणेश जी को बुद्धि, ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक माना जाता । ( अशोक झा की कलम से )
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