यह अगर दुर्घटना है तो हत्या भी , आत्महत्या भी
किश्तवाड के मचैल गांव में एक मचैल माता मंदिर के आसपास फिर से बादल फटा और 17 श्रद्धालु हमेशा के लिए माता की गोद में समा गए ..वे समा गए जो अपने दुखों से मुक्ति के लिए दुर्गा देवी के पास आए थे। आए इसलिए थे कि यहां की मान्यता काफी थी और दुख हरने की बात काफी फैलाई जाती रही है। गरीब आदमी को आसरा चाहिए। चला गया। यहां यह सिलसिला काफी पहले से चल रहा है। मंदिर के भीतर गर्भग्रह में मां चंडी एक पिंडी के रूप में विराजमान हैं।
यहां हर साल 25 जुलाई से भव्य आयोजन शुरू होते हैं और अगस्त अंत तक चलते हैं।बुधवार को यहां पहली बार बादल नहीं फटा था। दुर्घटनाएँ भी पहले होती रही हैं । लेकिन न तो शासन चेता और न ही स्थानीय आयोजक। उनको तो श्रद्धालुओं की गाढ़ी कमाई का हिस्सा चाहिए और सुविधाएं न देने का अधिकार। वो मिला ही हुआ है। इस बार भी यही हुआ । दुनिया को पता है कि पहाड़ में इस समय बादल फट रहे हैं खास तौर से नदियों के आसपास के इलाके में यह घातक हो रहे हैं लेकिन न ही आयोजक सुध ले रहे हैं और न ही श्रद्धालु। टेंट पर लोग रहे हैं। उन्हें विश्वास है कि मातारानी भला करेंगी, सरकारें भला करेंगी। लेकिन अब जब बादल फटने से इतने लोग मर गए हैं तो दर्जनों लोगों के परिवार घायल हो गए हैं तो चेतने का नाटक किया जा रहा है। शासन और स्थानीय आयोजक घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं और इन पर लापरवाही के साथ गैर इरादतन हत्या के भी आरोप लग रहे हैं । लेकिन क्या यह भी सच नहीं है कि यह आत्महत्या का भी मामला है। जब पूरे पहाड़ में अलग तरीके का माहौल है , दुर्घटनाएँ लगातार हो रही हैं तो आप वहां जा ही क्यों रहे हो। कुछ नहीं था तो हाल ही में हुई घराली की घटना को याद कर नहीं जाना चाहिए था।
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