भाजपा की चुनावी वैतरणी को पार लगाने के लिए संघ और उनके स्वयंसेवक जरूरी होते है। यही कारण है कि RSS अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में विजयदशमी पर शताब्दी वर्ष की शुरुआत करेगा। 26 अगस्त से मोहन भागवत के व्याख्यानों की शृंखला दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और कोलकाता में होगी। विधानसभा चुनाव को लेकर बंगाल अहम माना जा रहा है। शताब्दी वर्ष में हर गांव-शहर तक पहुंचने की तैयारी: RSS अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने बताया कि संघ ने पूरे देश के 924 जिलों में प्रमुख नागरिकों के सेमिनार आयोजित करने की योजना बनाई है। इसके अलावा विभिन्न संस्थाओं, व्यवसायों और विषयों के अनुरूप सेमिनार आयोजित किए जाएंगे, जिनमें हिंदुत्व और राष्ट्र की संघ दृष्टि समेत कई मुद्दों पर चर्चा होगी।
कनाडा-अमेरिका में मंदिरों पर हमले और बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार पर चर्चा: बैठक में कनाडा और अमेरिका में हिंदू मंदिरों पर बढ़ते हमलों और बांग्लादेश में हिंदू व अन्य अल्पसंख्यकों पर अत्याचार पर गंभीर मंथन किया गया।
महाराष्ट्र-कर्नाटक में भाषा विवाद पर संघ का रुख
महाराष्ट्र और कर्नाटक में हिंदी-मराठी और हिंदी-कन्नड़ विवाद के बीच RSS ने दोहराया कि भारत की सभी भाषाएं राष्ट्रीय भाषाएं हैं। आंबेकर ने कहा, प्राथमिक शिक्षा स्थानीय भाषा में होनी चाहिए, यह संघ का पुराना मत है। हाल में महाराष्ट्र में हिंदी न बोलने पर दुकानदार की पिटाई और कर्नाटक में कमल हासन के बयान के बाद विवाद गहराया था।
मणिपुर में लौट रही सामान्य स्थिति: मणिपुर हिंसा पर RSS ने कहा कि पिछले साल की तुलना में हालात सुधर रहे हैं और बातचीत से रास्ता निकलने की उम्मीद है। हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने भी समाधान की कोशिशें जारी रहने की बात कही थी। ऑपरेशन सिंदूर और सामाजिक समरसता पर भी चर्चा : बैठक में ऑपरेशन सिंदूर को लेकर समाज के अलग-अलग वर्गों में आई प्रतिक्रियाओं पर भी चर्चा की गई। साथ ही राजनीतिक ध्रुवीकरण से पैदा हुई जातीय और भाषाई खाई को पाटने के लिए सामाजिक समरसता बढ़ाने पर जोर दिया गया।शाखाओं की संख्या बढ़ाने का लक्ष्य
शताब्दी वर्ष के मौके पर RSS ने हर प्रखंड तक पहुंचने और देशभर में शाखाओं की संख्या 1 लाख से अधिक करने का लक्ष्य तय किया है। मोहन भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले की अगुवाई में हुई इस बैठक में संघ के 11 क्षेत्रों और 46 प्रांतों के प्रचारकों ने भाग लिया।
संघ सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार साल के आखिर में बिहार और 2026 की शुरुआत में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन दोनों विधानसभा चुनावों के लिए सभी सियासी पार्टियों ने कमर कस ली है और अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। खासतौर पर भारतीय जनता पार्टी ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एक नई रणनीति बनाई है।वहीं, बीजेपी की मजबूती के लिए राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (RSS) भी अपने मिशन में जुट गई है। सूत्रों के मुताबिक, RSS ने बिहार और पश्चिम बंगाल के चुनाव को "इज्जत का सवाल" बना लिया है। यही वजह है कि संघ चाहता है कि बीजेपी आगामी दोनों सूबों के चुनाव में हर हाल में मजबूत हो और सरकार बनाए। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (RSS) इस साल अक्टूबर में अपनी एस्टेब्लिशमेंट के 100 साल पूरे होने का जश्न मनाएगा। इस खास मौके पर बीजेपी को बिहार विधानसभा चुनाव में जिताने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी को प्रचंड जीत दिलाने के बाद अब संगठन ने अपने स्वंयसेवकों को बिहार और पश्चिम बंगाल में काम पर लगा दिया है। उन्हें वहां पार्टी को मजबूत करने और चुनाव जिताने की जिम्मेदारी सौंप दी गई है।
RSS का बिहार में 'त्रिशूल' फॉर्मूला: सूत्रों के मुताबिक, आरएसएस बिहार में 'त्रिशूल' फॉर्मूले पर काम कर रहा है। इसका मतलब है नाराज़ और असंतुष्ट वोटरों को पहचानना, उनके मुद्दों को सामने लाना शामिल है। पश्चिम बंगाल में संघ मजहबी प्रोग्राम के जरिए लोगों को जोड़ने और अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश है। ममता बनर्जी का RSS पर कई आरोप: वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने RSS पर कई इल्जाम लगाई हैं। सीएम ममता बनर्जी ने RSS पर राज्य में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने का भी लगा रही हैं। इस दौरान ने उन्होंने कहा कि 2024 में सांप्रदायिक दंगों की घटनाओं में इजाफा हुआ है।ममता बनर्जी ने कहा, 'RSS और बीजेपी दंगे भड़काना चाहते है। हम सभी से प्यार करते हैं। हम साथ रहना चाहते हैं। हम दंगों की निंदा करते हैं। हम दंगों के खिलाफ हैं। वे संकीर्ण चुनावी राजनीति के लिए हमें बांटना चाहते हैं। हमें आपसी यकीन से बचना चाहिए। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक कम्युनिटी को मिलकर काम करना चाहिए और एक-दूसरे का ख्याल रखना चाहिए।
वहीं, दूसरी तरफ आरएसएस दलितों के साथ ओबीसी (OBC) और ईबीसी (EBC) वोटरों को साधने की कोशिश में है। इसके लिए आरएसएस (RSS) घर 'वापसी प्रोग्राम' चला रहा है और मजहबी इज्तमा कर रहा है। आरएसएस बंगाल में सिर्फ साल 2025 में 300 से ज्यादा 'हिंदू धार्मिक कार्यक्रम' आयोजित करने का प्लान बना रहा है। इसका मकसद वोटरों को पोलराइज्ड करना है। यही कारण है कि RSS राज्य में अपनी मौजूदगी को दोगुना करने का प्लान बना रहा है।
मोहन भागवत का बिहार और बंगाल दौरा: दिल्ली में चुनाव में बीजेपी की शानदार जीत के बाद से ही आरएसएस (RSS) ने बिहार और पश्चिम बंगाल पर ध्यान केंद्रित कर दिया था। इसी के मद्देनदर संगठन ने वहां अपनी यूनिट्स को मजबूत किया, जहां सत्ताधारी पार्टी पहले से मजबूत है, खासकर दक्षिण बंगाल में।जबकि सरसंघचालक मोहन भागवत ने मार्च में बंगाल का दौरा किया और वहां एक सप्ताह रुके। इसके बाद उन्होंने बिहार में भी एक हफ्ता बिताया. इस दौरान उन्होंने 'स्वयंसेवकों' और संघ से जुड़े मकामी लोगों से मुलाकात की थी।
पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि इसी दौरान RSS चीफ मोहन भागवत ने बिहार और पश्चिम बंगाल में होने वाले आगामी चुनावों के लिए अपनी रणनीति तैयार की थी। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर RSS का 'त्रिशूल' फॉर्मूला क्या है?
क्या है 'त्रिशूल' फॉर्मूला? आरएसएस का 'त्रिशूल' फॉर्मूला तीन बातों पर बनी है। इसमें पहल है गुप्त सर्वे करना:- मतलब जिन लोगों में सरकार या सिस्टम को लेकर नाराज़गी है, उनकी पहचान करना और ये जानना कि उन्हें किन मुद्दों से दिक्कत है। दूसरा है धार्मिक भावनाओं के तहत हिंदू वोट एकजुट करना, तीसरा है- सभी जातियों को जोड़ना, जिनमें दलितों को 'हिंदू' पहचान देना और ओबीसी (पिछड़ा वर्ग) और ईबीसी (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) पर खास ध्यान देना सबसे खास है।
राज्यों में कैसे लागू हो रहा करेगा ये फॉर्मूला?
दोनों राज्यों में RSS का' त्रिशूल' फॉर्मूला काफी मुख्तलिफ है. बिहार में आरएसएस ऊंची जातियों के प्रभावशाली लोगों जैसे सामंतों और जमींदारों को एकजुट करने में लगा है। वहीं, पश्चिम बंगाल में संघ मजहबी प्रोग्राम्स और त्योहारों का सहारा ले रहा है, ताकि लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ा जा सके. इस तरह RSS अपने शताब्दी वर्ष को चुनावी सफलता में बदलने की कोशिश कर रहा है।
बिहार और बंगाल में बढ़ती हिंसा: करीब एक महीने पहले कोलकाता के बेहद पास सोनारपुर में हिंसा हुई थी। इस घटना को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीजेपी और RSS पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था कि बीजेपी और उसके साथी झूठ फैला रहे हैं और दंगे भड़काना चाहते हैं. उन्होंने तब साफ तौर पर कहा था, 'मैं पहले RSS का नाम नहीं लेती थी, लेकिन इस बार कहना पड़ रहा है कि वे भी इन झूठों और अशांति की जड़ में हैं।वहीं, बिहार की बात करें तो नीतीश कुमार की सुशासन सरकार में वहां पिछले चार महीनों में कई हिंसक झड़पें हुई हैं, जिनमें ज़्यादातर घटनाए जातीय हिंसा के रूप में सामने आई हैं। CSSS यानी सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में देशभर में 59 सांप्रदायिक हिंसा के मामले सामने आए हैं।2023 में ये तादाद 32 थी, यानी इस साल करीब 50 फिसदी का इजाफा हुआ है. जबकि इनमें से कम से कम 8 घटनाएं बंगाल में हुई हैं।
आरएसएस की रणनीति क्या है?: RSS इस वक्त बिहार और बंगाल में धार्मिक आयोजनों पर ज्यादा जोर दे रहा है. वह अपनी नीति के तहत दलितों को हिंदू के रूप में जोड़ने की कोशिश में है. इसके साथ ही अब वह OBC और EBC जातियों पर भी खास ध्यान दे रहा है, क्योंकि यही वोट बैंक बिहार चुनावों में काफी असर डालता है।
RSS की 'घर वापसी कार्यक्रम' और दलित: आरएसएस (RSS) इन दिनों 'घर वापसी' प्रोग्राम चला रहा है, जिसमें खासतौर पर दलित समुदाय को फोकस किया जा रहा है. इसके साथ ही, वह कई धार्मिक सभाएं भी आयोजित कर रहा है. हाल ही में ऐसे कई आयोजन बिहार के चंपारण, सीवान, भोजपुर, गया और नवादा जिलों आयोजित भी किए जा चुके हैं. वहीं, आरएसएस ने 2025 में पश्चिम बंगाल में 300 या उससे ज्यादा हिंदू धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई है. संघ के मुताबिक, ये कार्यक्रम उसके शताब्दी समारोह का हिस्सा है, लेकिन लेकिन पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि इनका मुख्य मकसद वोटर्स को धार्मिक आधार पर पोलराज्ड करना है। ( बंगाल से अशोक झा की कलम से)
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