कांग्रेस का चुनाव चिन्ह कभी गाय और बछड़ा था और गोवध पर पाबंदी उसका नारा था। वहां से कांग्रेस दूर निकल आई है। अब वह बांग्लादेश के हिंदुओं की नहीं, सिर्फ गाजा की चिंता करती है।
कांग्रेस जब तक हिंदू पार्टी थी तब तक हिंदू महासभा, रामराज्य परिषद, जनसंघ (अब की बीजेपी) किसी को आगे बढ़ने का मौक़ा नहीं मिला। 1980 के दशक तक ये चला।
कांग्रेस तब वंदे मातरम के मंत्रोच्चार से अपने अधिवेशन शुरू कर करती थी। आज़ादी से पहले तक गोवध का निषेध कांग्रेस का मुख्य कार्यक्रम था।
मुस्लिम लीग ने गाय और कांग्रेस को विभाजन का सबसे प्रमुख आधार बनाकर साबित कर दिया कि कांग्रेस हिंदू पार्टी है।
कांग्रेस ने जैसे ही हिंदू होना छोड़ा, जनसंघ और फिर बीजेपी का उभार शुरू हुआ।
कहीं शून्यता नहीं होती। ख़ाली जगह को कोई न कोई भर ही देता है।
कांग्रेस के मुस्लिम पार्टी बनने के शुरुआती दौर में वाजपेयी जी की सरकार आ गई।
उसके बाद सुधार करने की जगह कांग्रेस और ज़्यादा मुस्लिम हो गई। वक़्फ़, रंगनाथ और सच्चर में डूब गई। जामिया में एससी-एसटी ओबीसी कोटा ख़त्म कर दिया और वहां 50% मुस्लिम कोटा दे दिया। कई राज्य मुस्लिम आरक्षण देने लगे। माइनॉरिटी का मंत्रालय बना दिया।
फिर जो होना था, वह हुआ बीजेपी को केंद्र में पूर्ण बहुमत मिल गया।
सांप्रदायिकता बीजेपी ने नहीं, कांग्रेस ने फैलाई और अपने ही कीचड़ में धँस गई। ( दिलीप मंडल की कलम से )
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