बांग्लादेश ने पीएम मोदी को मैंगो पॉलिटिक्स को बढ़ावा देते हुए 1000 किलोग्राम आम भेजा है। आम के साथ उसका नाम भी मीठा है - हरिभंगा आम, लेकिन ज़ायका कूटनीति का है। इस एक तोहफे ने भारत-बांग्लादेश संबंधों में चल रही खामोश खटास को फिर सुर्खियों में ला दिया है। शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने और फिर भारत में शरण लेने के बाद, दोनों देशों के रिश्तों में एक असहज दूरी आ गई थी. मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार जबसे सत्ता में आई है, उसने चीन, पाकिस्तान और तुर्की जैसे भारत-विरोधी खेमों के साथ तालमेल बढ़ाया है।।भारत की आंखों में सबसे बड़ी किरकिरी ये है कि यूनुस सरकार बार-बार शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग उठा चुकी है, जिसे भारत ने हर बार ठुकराया है। बांग्लादेश की सत्ता को अच्छी तरह मालूम है कि कूटनीति में 'हार्ड पॉलिटिक्स' को 'सॉफ्ट गिफ्ट्स' में लपेटकर परोसा जाता है. ऐसे में यूनुस का यह आम भिजवाना एक तरह से संकेत है - एक तरफ सौहार्द्र दिखाने का प्रयास, दूसरी ओर शायद पुराने ज़ख्मों पर पट्टी चढ़ाने की कोशिश। यूनुस सरकार जानती है कि भारत, शेख हसीना को लेकर कोई समझौता नहीं करेगा, लेकिन रिश्तों में नरमी लाकर एक ऐसा माहौल बनाना चाहता है जहां वह भारत पर नैतिक दबाव बना सके. और ये कोई नई स्क्रिप्ट नहीं है । शेख हसीना खुद भी अपने कार्यकाल में आम और कुर्तों से कूटनीति करती रही हैं। लेकिन फ़र्क ये है कि हसीना के तोहफे रिश्ते मजबूत करने के लिए थे, जबकि यूनुस की मिठास एक लंबा राजनीतिक बिल साथ लेकर आई है।: हिंदुओं पर हमले और चीन से नज़दीकी: शेख हसीना के बाहर जाने के बाद से बांग्लादेश में हालात बदले नहीं, बदतर हुए. हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों में बढ़ोतरी हुई, कट्टरपंथियों को खुली छूट मिली और भारत से बढ़ती दूरी का फायदा चीन ने उठा लिया. मोहम्मद यूनुस ने चीन से रक्षा और तकनीकी सहयोग के कई संकेत दिए हैं, और ताज़ा खबर ये भी है कि आम की एक खेप पहले ही चीन भेजी जा चुकी है।
यह इत्तेफाक नहीं है कि चीन को आम भेजने के तुरंत बाद भारत को भी भेजा गया. दोनों कदमों में एक 'सामरिक संतुलन' का संकेत है, या कहें कि बांग्लादेश भारत को ये याद दिला रहा है कि अगर दिल्ली ने पुराने मामलों पर अड़ियल रुख रखा, तो ढाका के पास दूसरा दरवाज़ा खुला है।भारत का जवाब क्या होगा? भारत सरकार इन तोहफों की मिठास से ज़्यादा उनकी मंशा को देखती है. भारतीय विदेश नीति की यह खासियत रही है कि वह 'उपहार कूटनीति' को प्रतीकों की तरह लेती है, लेकिन जब बात राष्ट्रहित की हो, तो वो भावनाओं पर फैसले नहीं करती। बांग्लादेश चाहे जितनी भी चालाकी से आम भेजे, भारत की प्राथमिकता साफ है, एक स्थिर बांग्लादेश जो लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन करे, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करे और भारत के खिलाफ साज़िश करने वाले गुटों को बढ़ावा ना दे। भारत और बांगलादेश के बीच न सिर्फ भौगोलिक नजदीकी है, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रिश्ते भी बेहद गहरे हैं। दोनों देश 4000 किलोमीटर से ज्यादा लंबी सीमा साझा करते हैं, जो भारत की किसी भी अन्य पड़ोसी देश के साथ सबसे लंबी सीमा है। बांगलादेश की सीमाएं भारत और म्यांमार से जुड़ती हैं, लेकिन कुल सीमा का 94% हिस्सा सिर्फ भारत से लगता है। इसी कारण बांग्लादेश को अक्सर 'इंडिया लॉक्ड' (India-locked) देश भी कहा जाता है, क्योंकि उसके ज्यादातर जमीनी संपर्क भारत के जरिए ही संभव हैं।
2021 में शुरू हुई बांग्लादेश की मैंगो डिप्लोमेसी
मैंगो डिप्लोमेसी का मतलब है- राजनीतिक या कूटनीतिक रिश्तों को मजबूत करने के लिए आम जैसे फलों का इस्तेमाल 'उपहार' के तौर पर करना। इसे 'सॉफ्ट पावर डिप्लोमैसी' का हिस्सा माना जाता है। बांग्लादेश ने PM मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पश्चिम बंगाल की CM ममता बनर्जी, और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों (असम, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा) के मुख्यमंत्रियों को 2600 किलोग्राम हरिभंगा आम उपहार में भेजे। यह पहल बांग्लादेश-भारत संबंधों में गर्मजोशी लाने के इरादे से की गई थी। इसके अलावा बांग्लादेश ने श्रीलंका, नेपाल, ब्रिटेन, सऊदी अरब, कतर, कुवैत, UAE, इटली, जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन, कनाडा, फिलीपींस, स्विट्जरलैंड को भी आम भेजे थे। बांग्लादेश ने 2021 दुनियाभर में 1,632 टन आम भेजे थे। प्रमुख किस्मों में हरिभंगा, लंगड़ा, हिमसागर, फजली और आम्रपाली शामिल थीं।भारत ने मैंगो डिप्लोमेसी की शुरुआत की: 1960 तक आम चीन में अज्ञात ( बांग्लादेश बॉर्डर से अशोक झा की कलम से )
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