सोशल मीडिया पर चर्चित कहानी है। विदेश से एक आदमी भारत आया था। वह यहां से जलेबी ले गया। जलेबी उसे इस मामले में चौंका रही थी कि इसके अंदर रस कैसे भर गया? अपने देश में जाने के बाद उसने यह मिष्ठान्न लोगों के सामने रखा और अपनी जिज्ञासा भी। वहां मौजूद एक शख्स ने अपने बैग में रखे बॉक्स से समोसा निकाला और कहा कि कई साल पहले मैं इसे ले आया था यह जानने के लिए कि इसके अंदर आलू कैसे घुस गया? इसका समाधान तो निकला नहीं और तुम नया रायता फैला दिए। किस्सा कोताह यह कि समोसा और जलेबी दुनियाभर के लिए हैरतअंगेज प्रॉडक्ट रहे हैं। इनके जन्म स्थल को लेकर भी कई तरह के दावे हैं।
अब दुनिया के इन नौवें और दसवें आश्चर्य को किसी की नज़र लग गई। अच्छा, आप ही बताइए, आदमी कब मोटाता है? जाहिर है जब वह सुख-चैन से होगा और आर्थिक रूप से समृद्ध तभी यह गौरव हासिल कर सकेगा। कुछ दिलजले पता नहीं किस रिसर्च का नतीजा लेकर आ गए कि भारत मोटे लोगों का देश होता जा रहा है और इसकी जड़ में ये दोनों खाद्य पदार्थ हैं। अरे भाई, हम अकालग्रस्त क्षेत्र के लगते रहें, तभी आपकी आत्मा प्रसन्न रहेगी? आप तो समोसा और जलेबी के लिए सिगरेट की डिब्बी पर लिखी चेतावनी की तरह लिखवाना चाहते हैं कि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
वैसे समोसा खाने से लोग फैटी होते तो भारत के तमाम कॉमरेड मोटे हो गए होते। कारण यह है कि कम्युनिस्ट पार्टियों के दफ्तरों में चाय के साथ सिंघाड़ा (समोसे का एक नाम) खिलाने की दशकों पुरानी परंपरा रही है। समोसा जो कभी सर्वहारा का व्यंजन था, उसे *शर्तें लागू की हथकड़ी पहनाने की तैयारी क्यों की जा रही है, समझ से परे है। जलेबी जो 1947 से लेकर अब तक स्कूलों में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस समारोहों की जान रही है, उससे किसे खतरा है जो उसे सेहत के लिए हानिकारक माना जा रहा है?
कुछ साल पहले बिहार के एक नेता ने कहा था-जब तक रहेगा समोसे में आलू तब तक रहेगा बिहार में ...। नेताजी वहां की राजनीति में तो सक्रिय हैं, लेकिन चुनाव आदि नहीं लड़ सकते। यानी संसदीय राजनीति से नेपथ्य में जा चुके हैं और चेतावनी बोर्डों का असर हुआ तो एक दिन समोसा भी उसी गति को प्राप्त कर लेगा। पिछले साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए थे। नतीजे वाले दिन गोहाना का जलेबा छनवाया जा रहा था। नतीजे आने पर गोहाना के जलेबा में चीनी कम की टीस रह गई थी।
मार्टिन निलोमर की कविता है ’पहले वे आए’। कविता का सारांश यह है कि वे एक-एक को खत्म कर रहे थे और मैं चुप था, क्योंकि मैं उस समुदाय का नहीं था, जिसे खत्म किया जा रहा था। अंत में जब उनके टारगेट पर मैं आया तब कोई नहीं बचा था जो मेरे लिए बोलता। मसला यह है कि जलेबी और समोसे के बाद वडा पाव और पकौड़े के पीछे भी चेतावनी वाले बोर्ड दिखेंगे। जलेबी और समोसे तो सदियों से यहां के नाश्ते का हिस्सा रहे हैं, तब भारतीय क्यों मोटे नहीं होते थे। इसका जवाब चाहिए तो थोड़ी नजरें इनायत बर्गर-पिज्जा पर कर लें। थोड़ा यह भी देख लेते कि कोल्ड ड्रिंक की क्वालिटी अमेरिका- यूरोप और अपने देश में क्या है?
लेकिन सेहत मंत्रालय सबको सेहतमंद बनाने पर तुला है तो किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए। कहां रोड किनारे तलता अनहाइजनिक समोसा और कहां रैप किया हुआ बर्गर। कहां पुरानी चाशनी में पड़ी जलेबी और कहां बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पैकेट में बंद पिज्जा? कोई बराबरी नहीं।
(वैसे अब सुनने में आ रहा है कि केंद्रीय मंत्रालय ने ऐसा कुछ कहा ही नहीं है। इसी बात पर सिंघाड़ा पार्टी हो जाए)
@ देश के वरिष्ठ पत्रकार नवीन कृष्णा जी के फेसबुक वॉल से साभार
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