इन दिनों देश में दो ही बात की चर्चा है। एक भारत ने इंग्लैंड को टेस्ट मैच में करारा हार का सामना कराया और दूसरा महाराष्ट्र में भाषा विवाद। महाराष्ट्र की उत्कृष्ट सभ्यता संस्कृति है। इसे क्षुद्र स्तर पर न ले आने के लिए हम सजग सावधान रहें तो इसकी सभ्यता-संस्कृति पूरे विश्व में जगमगाती रहेगी। मराठी-गुजराती-हिंदी-अंग्रेज़ी की यहां सब नदियां एक ही महासागर से जुड़ी हैं। इसलिए यहां संकीर्णता नहीं, उदारता ही प्रवाहमान होती है। सभ्यता-संस्कृति का दीप-स्तम्भ बनती है। यह कहना है स्वामी चैतन्य कीर्ति का।
इस विषय में ओशो क्या कहते हैं। एक मित्र ने पूछा है कि क्या भारत में कोई राष्ट्रभाषा होनी चाहिए? यदि हां, तो कौन सी? राष्ट्रभाषा का सवाल ही भारत में बुनियादी रूप से गलत है। भारत में इतनी भाषाएं हैं कि राष्ट्रभाषा सिर्फ लादी जा सकती है और जिन भाषाओं पर लादी जाएगी उनके साथ अन्याय होगा। भारत में राष्ट्रभाषा की कोई भी जरूरत नहीं है। भारत में बहुत सी राष्ट्रभाषाएं ही होंगी और आज कोई कठिनाई भी नहीं है कि राष्ट्रभाषा जरूरी हो। रूस बिना राष्ट्रभाषा के काम चलाता है तो हम क्यों नहीं चला सकते? आज तो यांत्रिक व्यवस्था हो सकती है संसद में, बहुत थोड़े खर्च से, जिसके द्वारा एक भाषा सभी भाषाओं में अनुवादित हो जाए। अब हम एक बिहारी सबपर भारी की कहावत को चरितार्थ करने वाले आकाशदीप की बात करते है। बिहार का सासाराम शेरशाह सूरी मकबरा के लिए मशहूर है। अफगान सेनापति शेर शाह सूरी ने 1539 में चौसा के युद्ध में मुगल बादशाह हुमायूं को हराया था। उनके शासनकाल के दौरान ही प्रसिद्ध ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण हुआ था,जिसे शेरशाह सूरी रोड के नाम से भी जाना जाता है।वह कई वर्ष पहले तक भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग था। 2025 में सासाराम फिर से चर्चा में है और इसके कारण हैं आकाशदीप, जिन्होंने 7 समंदर पार इंग्लैंड पर कहर बरपाया है। 10 विकेट लेकर बर्मिंघम में पहली बार भारत को जीत का स्वाद चखने का मौका दिया है। घरेलू क्रिकेट में बंगाल का प्रतिनिधित्व करने वाले आकाशदीप का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधत्व करना किसी सपने से कम नहीं है। 28 साल के इस तेज गेंदबाज ने काफी जीवन में काफी कठिनाई का सामना किया है। वह ऐसी जगह से आते हैं जहां कभी क्रिकेट खेलना अपराध माना जाता था। वहां खेल की कोई सुविधा नहीं थी। आकाशदीप ने 2015 में पिता और बड़े भाई को 6 महीने के अंदर खो दिया था, लेकिन इसके बाद भी डटे रहे। आकाशदीप ने अपने सफर के बारे में बताते हुए इंडियन एक्सप्रेस से कहा था, “अपने गांव की सड़क जैसी यात्रा रही है बिल्कुल, उबड़ खाबड़।” पिता और भाई के बाद चाची और भाभी को खोया : सासाराम और बिहार की राजधानी पटना की दूरी 150 किलोमीटर की है। वहां के लोगों के इलाज के लिए पटना ही जाना पड़ता है। इस दूरी के कारण, सासाराम के देहरी गांव से ताल्लुक रखने वाले बंगाल के तेज गेंदबाज आकाशदीप ने सबसे पहले 2015 में अपने पिता को खोया और छह महीने बाद अपने बड़े भाई को। दोनों समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाए। कोविड की दूसरी लहर के दौरान आकाशदीप इंडियन प्रीमियर लीग के बबल में थे। तब उन्होंने अपनी चाची और भाभी को खो दिया। मां की जान जाते-जाते बची।
चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण दोनों को खो दिया
आकाशदीप ने इसे लेकर कहा था, “मेरे पिता को 2010 में लकवा मार दिया, वे पांच साल तक बिस्तर पर रहे और 2015 में उनका निधन हो गया; छह महीने बाद मेरे बड़े भाई का भी निधन हो गया। मेरे गांव में चिकित्सा सुविधाओं की कमी है, मैंने दोनों को इसी के कारण खो दिया।”
'क्रिकेट खेलना अपराध है': एक स्कूल टीचर के बेटे के तौर पर आकाशदीप के लिए क्रिकेट खेलना कभी कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने कहा था, "क्रिकेट खेलना तो अपराध है हमारे यहां। अगर आप चुपके से बाहर निकलकर खेलने में कामयाब भी हो जाते हैं, तो वहां कोई सुविधाएं नहीं हैं। 18 साल की उम्र तक मैंने सिर्फ टेनिस बॉल से खेला था।"
कुछ नहीं कर पाऊंगा: आकाशदीप ने कहा, “मेरे पिता शिक्षक थे और जब उन्हें पता चला कि मैं क्रिकेट खेलता हूं तो उन्होंने फैसला सुना दिया कि मैं अपने करियर में कुछ नहीं कर पाऊंगा। वास्तव में वे पूरी तरह से गलत नहीं थे। बिहार में क्रिकेट नहीं था और जिन लोगों ने क्रिकेट में हाथ आजमाया था वे बेरोजगार रह गए।”2012 में हुआ कोलकाता मैदान में क्रिकेट से पहला परिचय: आकाशदीप का कोलकाता मैदान में क्रिकेट से पहला परिचय 2012 में हुआ था। वह अपने पिता के इलाज के लिए शहर में थे और कुछ मैच खेलने में सफल रहे। उस समय वह एक बल्लेबाज थे, न कि एक तेज गेंदबाज और उनका खुद का मानना है कि यह अनुभव बहुत बुरा था। उन्होंने कहा, “बिहार में मैं एक बेहतरीन बल्लेबाज था। मैंने गेंदबाजी बहुत देर से सीखी। जब आप पहली बार लाल गेंद का सामना करते हैं और वह भी बिना किसी अभ्यास के, तो आपकी कलई खुल जाती है। इसलिए, मैंने गेंदबाजी शुरू की और 2015 तक मैं एक अच्छा गेंदबाज बन गया। मेरे पास स्वाभाविक गति थी और मेरी लंबाई के कारण मुझे अधिक उछाल मिलता था। मैं बंगाल में यूनाइटेड क्लब के लिए एक तेज गेंदबाज के रूप में चुना गया था।”
बंगाल कैसे पहुंचे आकाशदीप: आकाशदीप 2016 में दिल्ली चले गए जहां उनकी बड़ी बहन रहती थी। वे कुछ महीने वहां रहे फिर एक दोस्त ने उन्हें कोलकाता आकर क्लब क्रिकेट खेलने के लिए कहा। उन्होंने बताया, “मेरे पिता के निधन के बाद मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी। जब मैं कोलकाता आया तो मैंने स्थानीय क्रिकेट खेलना शुरू किया और इसके लिए मुझे पैसे भी मिलते थे, जो मेरे लिए बिल्कुल नया था। मैं जो भी पैसे कमाता था, उसमें से जितना हो सके उतना अपनी मां के लिए बचाने की कोशिश करता था, लेकिन यह बहुत मामूली रकम हुआ करती थी।” ( अशोक झा की कलम से )
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