अल्मोड़ा पंहुचा तो सिंगोड़ी खाई भी और बंधवाई भी
जुलाई 29, 2025
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ऐसा हो नहीं सकता कि अल्मोड़ा जाएं और सिंगोड़ी न खाएं! अल्मोड़ा जिस तरह कुमाऊ का सांस्कृतिक केंद्र है, वैसे ही सिंगोड़ी और बाल मिठाई में भी यहां की केंद्रीय पहचान है। बाल मिठाई मुझे कभी ज्यादा पसंद नहीं आई। अपनी अतरिक्त मिठास के कारण। साप्ताहिक हिन्दुस्तान के ज़माने में कई संपादकीय सहयोगी उत्तराखंड के थे। वापसी में बाल मिठाई वे जरूर लाते थे। बेमन कई बार खाई, लेकिन उसका रसिक नहीं बन पाया। पहली बार सिंगोड़ी देव प्रयाग में जहां भागीरथी और अलकनंदा के संगम के नजदीक स्थित छोटे से बाजार में एक साधारण सी हलवाई की दुकान में खाई थी। मालू के ताजे हरे पत्तों में लिपटी इस मिठाई ने आकर्षित किया था। खाया तो दो खा गया। काफी लंबे समय तक उसका स्वाद दिल और दिमाग में छाया रहा था। इस बार जब अल्मोड़ा पंहुचा तो सिंगोड़ी खाई भी और बंधवाई भी। शुगर का मरीज होने के बावजूद मैं मिठाइयों का लालची भी हूं। वैसे जिस दुकान का इस मिठाई को ले कर डंका बजता है, वहां की सिंगोड़ी मुझे पसंद कम आती है। उसकी हालत ऊंची दुकान, फीकी पकवान वाली हो गई है। एक साधारण दुकान से खरीदा। खोया और चीनी का संतुलन नपातुला था। परफेक्ट। सिंगोड़ी हाल फिलहाल खोजी या बनाई जाने वाली मिठाई नहीं है। सिंगोड़ी एक पारंपरिक मिठाई है। इसका संबंध अल्मोड़ा के चंद वंश के राजाओं (सोलहवीं से अठारवीं शताब्दी) से जोड़ा जाता है। कहते हैं कि उनको ये मिठाई बहुत पसंद थी और राजकीय मेहमानों को ये खासतौर पर पेश की जाती थी। मिठाई को लंबे समय तक ताजा और सुरक्षित रखने के लिए मालू के पत्तों में लपेटने की तकनीक विकसित की गई थी। ये पत्ते न केवल प्राकृतिक संरक्षक का काम करते हैं बल्कि मिठाई को एक विशेष सुगंध भी प्रदान करते हैं। इस पत्ते को पवित्र भी माना जाता है, इसीलिए सिंगोड़ी को प्रसाद के रूप में भी मंदिरों में चढ़ाया जाता है। सिंगोड़ी मिठाई का इतिहास अल्मोड़ा की सांस्कृतिक और पाक विरासत का एक अभिन्न अंग है। मालू के पत्तों में लिपटी यह मिठाई न केवल एक शानदार मिठाई है, बल्कि कुमाऊँ की सदियों पुरानी परंपराओं को जीवंत रखने का माध्यम भी है....(प्रदीप सौरभ की कलम से ) #singodi #pradeepsaurabhvlogs #kumauniculture #kumaunicucsine #fallow #fallowers #balmithai #almora #uttarakhand #kumauni
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