माननीय सांसदगणों को उनके खाली वक्त में सैर सपाटा और तफरीह करवाने के वास्ते विभिन्न विषयों पर संसदीय समितियों का गठन किया जाता है। जब सदन न चल रहा हो तब ये समितियां भारत भर में दौरे करती रहती हैं। इन दौरों के दरम्यान संबंधित अधिकारियों की जान सांसत में रहती है। सार्वजनिक क्षेत्र की अपनी चाकरी में मुझे कई ऐसी समितियों से दो चार होना पड़ा और बहुत दिलचस्प अनुभव हुए जिन्हे साझा करता रहूंगा।फिलवक्त किस्सा सांसद जी के कच्छे का।
वह संसदीय समिति के अध्यक्ष थे। यों भले आदमी थे, बिना अकड़ फूं वाले लेकिन थे तो आखिर सांसद। लखनऊ के बाद उनका अगला पड़ाव इलाहाबाद था। हम लोगों ने खिला पिला कर दोपहर में उन्हें इलाहाबाद के लिए रवाना कर दिया और राहत की सांस ली। अगले दिन सुबह सुबह ही इलाहाबाद वाली पीएसयू का एक अधिकारी मुझे ढूंढ़ता हुआ मेरी कम्पनी पहुंचा। बोला अध्यक्ष महोदय का कच्छा होटल मे छूट गया था। वह दिलवा दीजिए।
मैंने कहा यार जितना खर्चा आपकी कम्पनी ने आपको यहां तक भेजने में किया उतने में दर्जन भर कच्छे खरीद कर उन्हें दे देते।
वह ठहाका लगाकर बोला कि यह पेशकश हमने की थी मगर सर ने कहा कि नही वही कच्छा मंगवाओ। हम होटल भागे। गनीमत रही कि कच्छा बरामद हो गया। वह बंदा उलटे पांव इलाहाबाद लौटा। जाते जाते कहा कि इनको झेलने के लिए कुछ टिप्स दीजिए।
मैंने कहा सीधी सी बात है। अपनी कामनसेंस और बुद्धि का इस्तेमाल उनके रहने तक सस्पेंड रखो और यस सर बोलते रहो बस। ( कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार सुशील शुक्ला के जेहन की गठरी से )
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/