शरीर कमजोर हो गया है। 86 साल की उम्र में सेहत थोड़ी गिरी हुई है। 12 दिनों बाद अस्पताल से बाहर आए हैं। डॉक्टर ने कुछ दिनों के लिए पूरी तरह से बेडरेस्ट के लिए बोला है । कमजोरी की वजह से आवाज की बुलंदी थोड़ी कम हो गई है। कान को करीब ले जाना पड़ रहा है। तन भले ही कमजोर हो गया है, लेकिन हमारे जांगिड सर का हौसला कम नहीं हुआ है। जी हां बिस्तर पर जिन्हें आप लेटकर बातें करते हुए देख रहे हैं, वो हैं हमारे गुरुदेव, आईआईएमसी के पूर्व हिंदी कोर्स डायरेक्टर प्रोफेसर डॉ. रामजी लाल जांगिड।
1994-95 के बैच में हम लोग आईआईएमसी आए थे। डॉ. जांगिड हमारे हेड थे, कुछ ही दिन बाद अभिभावक भी बन गए। ठसक और हनक उनके व्यक्तित्व के आभूषण रहे। किसी को अपने आगे सेटते नहीं थे। क्लास में आते थे तो ऐसे पढ़ाते थे कि हम लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनते थे। भारतीय पत्रकारिता का इतिहास पढ़ाते थे तो नारद जी को पहला पत्रकार बताते थे। हनुमान जी को पहला स्पॉट रिपोर्टर। महाभारत में संजय जो धृतराष्ट्र को आंखों देखा हाल सुना रहे थे, उसे पहली लाइव रिपोर्टिंग करार देते थे। किसी भी छात्र को कोई भी समस्या हो, जांगिड सर उसका कोई न कोई हल निकाल लेते थे। कोई आर्थिक रूप से कमजोर हुआ तो उसकी फीस माफ करवाने में एड़ी चोटी का जोर लगा देते थे। किसी को कोई लेख लिखना हुआ तो जांगिड सर तो आधा बोलकर लिखवा देते थे। अपने छात्रों की नौकरी या इंटर्नशिप के लिए संपादकों से अनुरोध नहीं करते थे, बाकायदा आदेश देते थे।
जांगिड सर की सबसे बड़ी खासियत है उनका अपनापन और अधिकार भाव। जब हम लोग आईआईएमसी में पढ़ते थे तो जांगिड सर दोपहर में अक्सर कहते थे-जाकर कैंटीन से मेरे लिए दही लाओ। अभी कुछ वर्ष पहले आईआईएमसी के सालाना कार्यक्रम में मिले थे। लंच के दौरान उन्होंने बुलाया और बोले- विकास जरा एक कटोरी दही लेकर आना। मैं दौड़कर गया कि कहीं ये सुअवसर कोई दूसरा न छीन ले। जांगिड सर ने देश भर में 1000 से ज्यादा लोगों को पढ़ाकर पत्रकार बनाया है, जो देश विदेश में अच्छे पदों पर है। इस बात से उन्हें कोई मतलब नहीं कि कौन क्या है। वे तो हनक के साथ अपने शिष्यों को आदेश देते रहे हैं।
दो दिन पहले सर का फोन आया था, आवाज में थोड़ी लड़खड़ाहट थी। अपने घर का पता बताया और बोले कि याद कर लो या लिख लो। इसके बाद फोन काट दिया। उनका संदेश मिल गया था। कल शाम मैं अपने साथी एचओडी वैभव उपाध्याय के साथ गुरुदेव से मिलने गया। बिस्तर पर लेटे थे, बिल्कुल कृशकाय। इस रूप में कभी देखा नहीं था, कभी कल्पना भी नहीं की थी कि उन्हें इस रूप में देखूंगा।
मैं कुर्सी लेकर उनके बेड के पास बैठने लगा। तभी गुरुदेव मुस्कुराते हुए उसी पुराने अधिकार भाव के साथ बोले-विकास, वहां नहीं, मेरे चरणों के पास आकर बैठो। मैं चौंका, फिर हंसा और उनके पैर के पास आकर बैठ गया। बहुत खुश हुए जांगिड सर। तमाम कहानियां सुनाने लगे। धीरे बोल रहे थे तो मैं बिल्कुल उनके करीब हो गया और ध्यान से सुनने लगा। 86 साल की अवस्था में भी उनकी याद्दाश्त गजब की है। एक से बढ़कर एक संस्मरण हैं उनके पास।
अपनी बीमारी के बारे में बताया, अस्पताल में बीते दिनों के बारे में बातचीत की। वही उत्साह, वही उमंग, बस शरीर कमजोर पड़ा है और आवाज धीमी हो गई है। बोले कि चिंता की कोई बात नहीं हीमोग्लोबीन 10 था, अब 15 हो गया है। जल्दी ही रिकवर हो जाऊंगा। मैं भी चाहता हूं, उनके हजारों शिष्य चाहते हैं कि हमारे जांगिड सर जल्द ही पूर्ण स्वस्थ हों। एक बार फिर से उठकर उसी ठसक और हनक के साथ दहाड़ें। उसी अधिकार भाव से हमें बुलाएं, हड़काएं और आदेश दें। ईश्वर हमारे जांगिड सर को जल्द ही पूर्ण स्वस्थ करें।
(ताजा तस्वीरें देश के वरिष्ठ पत्रकार विकास मिश्र के साथी वैभव उपाध्याय ने खीचीं हैं। इसके अलावा इसमें एक तस्वीर गुरुदेव की अलग से है। दूसरी तस्वीर तब की है, जब हम लोग आईआईएमसी में पढ़ा करते थे, तब जांगिड सर के साथ हम लोगों की ये तस्वीर खिंची थी।)
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