- ब्रह्मपुत्र नदी का पानी हो जाता है लाल, बंद रहते है कृषि कार्य
- भक्तों में प्रसाद में मिलता है लाल कपड़ा, कामाख्या मंदिर का मुख्य द्वार रविवार को बंद हो गया और 26 जून को फिर से खोला
अगर आपको किसी प्रकार की सिद्धि चाहिए तो आइए चले असम के मां कामख्या मंदिर। यहां लगा हुआ है चार दिवसीय अंबुबाची मेला।
गुवाहाटी के नीलाचल पहाड़ पर स्थित प्रसिद्ध कामाख्या धाम में चल रहे अंबुबासी मेले के तीसरे दिन देश-विदेश से आए तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है। 22 जून से शुरू हुए इस मेले के दौरान रुक-रुक कर हो रही बारिश के बावजूद श्रद्धालुओं की आस्था में कोई कमी नहीं दिख रही। भारत के हर राज्य में आपको कोई ना कोई ऐसा मंदिर दिख ही जाएगा जो अपने आप में चत्मकारी माना जाता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे खास मंदिर और वहां लगने वाले मेले के बारे में बताने वाले हैं, जो हर साल जून के महीने में असम के गुवाहाटी शहर में लगाया जाता है। हम बात कर रहे हैं कामाख्या मंदिर की, जहां अंबुबाची मेला लगता है।
उत्सव के पीछे का पवित्र अर्थ: शब्द 'अंबुबाची' का अर्थ है 'पानी के साथ बोला गया', जो बारिश के मानसून के मौसम और उस समय को जोड़ता है जब देवी कामाख्या अपनी वार्षिक मासिक धर्म से गुजरती हैं। यह विशेष त्योहार प्राचीन तांत्रिक विश्वासों पर आधारित है और पृथ्वी की सृजन और जीवन देने की शक्ति का जश्न मनाता है। किंवदंती के अनुसार, देवी सती का गर्भ (योनि) कामाख्या मंदिर में भगवान शिव के विनाश के नृत्य के दौरान गिरा था। इस कारण, यह मंदिर प्रजनन और पुनर्जन्म का प्रतीक बन गया। कहते हैं कि जब माता रानी को रजस्वला होने वाला होता है, तो मंदिर में एक सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के पट खोले जाते हैं, तो यह कपड़ा लाल रंग का होता है। इस कपड़े को अंबुबाची वस्त्र कहते हैं। इसे प्रसाद के तौर पर भक्तों में भी बांटा जाता है।
अंबुबाची मेला के दौरान, लोग प्रकृति और देवी के प्रति सम्मान दिखाने के लिए कृषि गतिविधियों को रोक देते हैं। यहां कई ऐसी चीजें होती हैं, जिसे सुन वहां आने वाले हर इंसान के कान खड़े हो जाते हैं। इसमें सबसे ज्यादा हैरान कर देने वाली बात ये है, इस मेले के दौरान 3 दिन तक पुरुष मंदिर के अंदर नहीं जा सकते। चलिए आपको इसकी वजह बताते हैं और जानते हैं इस मेले की खासियत के बारे में। दिलचस्प बात यह है कि इस दिन मंदिर बंद रहता है। भारत के हर राज्य में आपको कोई ना कोई ऐसा मंदिर दिख ही जाएगा जो अपने आप में चत्मकारी माना जाता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे खास मंदिर और वहां लगने वाले मेले के बारे में बताने वाले हैं, जो हर साल जून के महीने में असम के गुवाहटी शहर में लगाया जाता है। हम बात कर रहे हैं कामाख्या मंदिर की, जहां अंबुबाची मेला लगता है। यहां कई ऐसी चीजें होती हैं, जिसे सुन वहां आने वाले हर इंसान के कान खड़े हो जाते हैं। चलिए आपको इसकी वजह बताते हैं और जानते हैं इस मेले की खासियत के बारे में।
भारत के हर राज्य में आपको कोई ना कोई ऐसा मंदिर दिख ही जाएगा जो अपने आप में चमत्कारी माना जाता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे खास मंदिर और वहां लगने वाले मेले के बारे में बताने वाले हैं, जो हर साल जून के महीने में असम के गुवाहटी शहर में लगाया जाता है। तीन दिनों तक किसी पुरुष के प्रवेश की नहीं होती अनुमति : अंबुबाची प्रभृति अनुष्ठान करने के बाद, कामाख्या मंदिर का मुख्य द्वार रविवार को बंद हो गया और 26 जून को फिर से खोला जाएगा। माना जाता है कि जब देवी अपने मासिक धर्म से गुजरती हैं तब पूजा को रोक दिया जाता है। साल में एक बार इस दौरान मंदिर के कपाट चार दिन के लिए बंद कर दिए जाते हैं। इस अवधि के दौरान मंदिर परिसर में आयोजित होने वाले वार्षिक मेले में देश और विदेश के विभिन्न हिस्सों से भक्त यहां पहुंचते हैं। यहां स्थित ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। माना जाता है कि पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। दूसरे शक्तिपीठों की अपेक्षा कामाख्या देवी मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। इस मंदिर में नहीं है माता की मूर्ति: पौराणिक कथाओं में है कि इस मंदिर को कामदेव ने भगवान विश्वकर्मा की मदद से बनवाया था और तब इसका नाम आनंदख्या रखा गया। कामाख्या मंदिर का जिक्र कालिका पुराण, योगिनी तंत्र, शिव पुराण, बृहद्वधर्म पुराण में भी मिलता है। इतिहास में दर्ज है, सोलहवीं शताब्दी में इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था, लेकिन कालांतर में कूच बिहार के राजा नर नारायण देव ने सत्रहवीं शताब्दी में इस पवित्र मंदिर का फिर से निर्माण करवाया। इस मंदिर में देवी दुर्गा या मां अम्बे की कोई मूर्ति या चित्र दिखाई नहीं देता है जबकि मंदिर में एक कुंड बना है जो कि हमेशा फूलों से ढ़का रहता है। इस कुंड से हमेशा ही पानी निकलता रहता है। यहां दूर- दूर से आते हैं भक्त: असम सरकार की वेबसाइट के अनुसार, गुवाहाटी से 7 किमी दूर कामाख्या मंदिर देश के सबसे बड़े शक्ति मंदिरों में से एक है। नीलाचल पहाड़ियों पर स्थित यह तांत्रिक उपासकों और हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। इस मंदिर में कई अन्य पूजाओं का आयोजन किया जाता है, जिनमें दुर्गा पूजा, दुर्गादेउल और मदनदेउल शामिल हैं। इस मंदिर में की जाने वाली कुछ अन्य पूजाओं में मनसा पूजा, पोहन बिया और वसंती पूजा शामिल हैं। ( असम से अशोक झा )
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