जिसे हम वर्षों से पाल रहे थे...
और जो हमारे ही खिलाफ भौंक रहा था, उसे मोदी सरकार ने सिर्फ 30 मिनट में देश से बाहर फेंक दिया।
हम बात कर रहे हैं संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (UNMOGIP) की, जो 1948 से भारत में बैठा हुआ था।
इसका काम था भारत और पाकिस्तान......
इसका काम था भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद पर नजर रखना, लेकिन असल में ये संगठन भारत के खिलाफ एक विदेशी सेंसर बोर्ड जैसा बन चुका था।
और मज़े की बात—
इनका रहना-खाना-गाड़ी-घूमना-सबकुछ भारत सरकार यानी हमारे टैक्स के पैसे से होता था।
UNMOGIP ने न सिर्फ भारत को कई बार खुले मंचों पर दोषी ठहराया, बल्कि कश्मीर को द्विपक्षीय नहीं, त्रिपक्षीय मसला बताने की भी कोशिश की।
यहाँ तक कहा कि भारत हमें काम नहीं करने दे रहा, हमारे खर्च पूरे नहीं कर रहा, भत्ते बढ़ाओ—
और हमारे लिए और पैसा दो। यानि घर में घुसे मेहमान अब मेज़बान को ही धमका रहे थे।
इस पर मोदी सरकार ने एक सेकंड भी नहीं गंवाया।
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने पूरे प्रकरण की कमान संभाली और सिर्फ 30 मिनट की कार्यवाही में UNMOGIP का वीजा रद्द कर दिया गया।
साफ शब्दों में कहा गया—
“अब यहां तुम्हारी जरूरत नहीं है, 10 दिन में अपना बोरिया-बिस्तर समेटो और निकलो।”
इन 74 वर्षों में भारत ने इनके 40 से ज़्यादा अधिकारियों का खर्च उठाया। हमने उन्हें रहना दिया, गाड़ियां दीं, सुरक्षा दी—और बदले में क्या मिला?
हमारे ही खिलाफ बयान, रिपोर्ट और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि को नुकसान। अब वो दौर खत्म हुआ।
और सबसे बड़ा सवाल—
इन्हें भारत में लाया कौन था?
पंडित नेहरू, वही जिन्होंने 1948 में कश्मीर मुद्दा खुद यूएन में घसीट कर ले गए। कश्मीर जो हमारा आंतरिक मामला था, उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना दिया।
और आज तक उसकी सज़ा हम भुगतते रहे—हर बार जब UN की कोई रिपोर्ट आती थी, उसमें भारत को घेरने की कोशिश होती थी।
अब जबकि मोदी सरकार ने UNMOGIP को बाहर का रास्ता दिखाया है, ये वही क्षण है जैसे अंग्रेजों का आखिरी झंडा उतार दिया गया हो।
आज भी देश की 99% जनता को ये नहीं पता था कि अंग्रेजों की छाया UN के नाम पर आज तक हमारे देश में मौजूद थी।
मोदी सरकार ने इस बार चुपचाप, पर निर्णायक प्रहार किया है। ये सिर्फ कागज़ी कार्रवाई नहीं, ये सांस्कृतिक, कूटनीतिक और मानसिक स्वतंत्रता का प्रतीक है। जो काम कांग्रेस 74 साल में नहीं कर सकी, वो मोदी सरकार ने 30 मिनट में कर दिखाया।
अब कोई विदेशी संस्था भारत में बैठकर भारत को नहीं सिखाएगी कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। अब भारत खुद तय करेगा कि उसकी धरती पर कौन रहेगा और कौन नहीं।
ये अंग्रेजी छाया का आखिरी सिरा था—
और उसे भी हमने उखाड़ फेंका।
जय हिंद।
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