भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के बाद अब देश का पूर्वोत्तर हिस्सा भी सुरक्षा के लिहाज से अलर्ट मोड पर है। पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर भारतीय मिसाइल हमलों के बाद पूर्वोत्तर की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर सेना और सुरक्षाबलों की मौजूदगी बढ़ा दी गई है।चीन, म्यांमार और बांग्लादेश से सटे इन इलाकों की रणनीतिक स्थिति को देखते हुए सेना पूरी तरह से सतर्क हो गई है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद देश के पूर्वी हिस्से में हलचल तेज हुई है। पिछले करीब 10 दिनों से सीमा से लगे रास्तों पर सेना के भारी-भरकम बख्तरबंद वाहनों और टैंक की टुकड़ियां देखी जा रही हैं। सेना के जवान अब दुर्गम इलाकों में तेजी से तैनात किए जा रहे हैं, ताकि किसी भी अप्रत्याशित स्थिति से निपटा जा सके। भारत-पाकिस्तान के बीच फिलहाल युद्ध पर विराम लग गया है। इस बीच, भारत की पश्चिमी सीमा पर असहज शांति के माहौल के बीच एक नया सिद्धांत जोर पकड़ रहा है। एंजल निवेशक उदित गोयनका ने एक दावे के साथ एक्स को निशाने पर लिया, "मुझे लगता है कि चीन इस सब के पीछे है और वे पाकिस्तान को इस युद्ध के लिए सभी इक्विपमेंट मुहैया करा रहे हैं।" उन्होंने आगे कहा कि हाल ही में हुई इस झड़प को वैश्विक आर्थिक बदलावों से जोड़ा जा रहा है। लेकिन, कूटनीतिक भाषा में लिपटी चीन की रणनीति कुछ और ही इशारा कर रही है. हाल ही में ग्वांचा वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख में चीन के दो विद्वानों - सिन्हुआ यूनिवर्सिटी के माओ केजी और साउथ एशियन रिसर्च ग्रुप के चेन झाऊ - ने दावा किया है कि चीन की अक्साई चिन क्षेत्र में सैनिक तैनाती का मकसद भारत-पाक युद्ध को रोकना है। चीन का 'डिप्लोमैटिक बैलेंस': सूत्रों के मुताबिक, चीन पहले पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा होकर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करता है ताकि वह सैन्य कार्रवाई से पीछे हटे. लेकिन, जैसे ही भारत सीमित स्तर की कार्रवाई करता है, चीन अपनी भाषा बदलकर शांति और संवाद की वकालत करने लगता है। यह चीन की वही रणनीति है, जिसे वह दशकों से सीमा विवादों और भू-राजनीतिक टकरावों में अपनाता आया है 'डिप्लोमैटिक बैलेंस' के नाम पर हित साधना। सबसे चौंकाने वाला दावा यह है कि 2020 से चीनी सैनिक पीओके के करीब तैनात हैं और लेखक इसे 'क्षेत्रीय स्थिरता की गारंटी' बताते हैं। लेकिन यह उपस्थिति चीन की सिर्फ एक सैन्य रणनीति नहीं, बल्कि भारत को अप्रत्यक्ष रूप से धमकी देने जैसा है। स्पष्ट है कि बीजिंग भारत को यह संकेत देना चाहता है कि यदि उसने पीओके को लेकर कोई सैन्य कदम उठाया, तो उसे चीन के हस्तक्षेप के लिए तैयार रहना होगा।
इस पूरे घटनाक्रम में चीन को जो सबसे बड़ा फायदा मिल रहा है, वो असली युद्ध के हालात में उसके हथियारों की टेस्टिंग है। पाकिस्तान के जरिए चीन अपने बनाए हथियारों को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करवा रहा है और फिर उसकी क्षमता का पूरा डेटा खुद इकट्ठा कर रहा है। इससे चीनी सेना को भारत की ताकत, उसकी मिसाइल डिफेंस और जवाबी हमलों की रणनीति की गहराई से जानकारी मिल रही है। सिर्फ जमीनी जंग ही नहीं, चीन समंदर और आसमान में भी सक्रिय है। हिंद महासागर में उसके दर्जनों मछली पकड़ने वाले जहाज भारतीय नौसैनिक अभ्यास के पास मंडरा रहे हैं, जिनमें से कई जहाज खुफिया जासूसी का काम करते हैं। ओपन-सोर्स रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1 मई को भारत की नेवी की ड्रिल के पास 224 चीनी जहाज एक साथ देखे गए, जो संयोग नहीं, सोची-समझी रणनीति का हिस्सा थे। खुफिया चाल चल रहा ड्रैगन: चीन के पास इस वक्त 267 सैटेलाइट्स हैं, जिनमें से 115 खास तौर पर खुफिया और जासूसी के लिए हैं। ये आंकड़ा भारत समेत पूरे एशिया में किसी भी देश से कहीं अधिक है। जाहिर है, ड्रैगन सिर्फ जमीन पर नहीं, अंतरिक्ष से भी भारत की हर गतिविधि पर नजर रख रहा है। चीन की खामोश चालों के पीछे उसकी मंशा साफ है, भारत को भीतर तक पढ़ना और उसके जवाब देने के तरीके को समझना। और पाकिस्तान इसमें उसका प्यादा बनकर खुलकर मदद कर रहा है।
भारत को सतर्क और स्पष्ट होना पड़ेगा: चीन की इस नीति से यह सवाल उठता है - क्या किसी कमजोर देश को आतंकवाद का समर्थन करने की छूट सिर्फ इसलिए दी जा सकती है कि वह रणनीतिक दृष्टि से 'कमजोर' है? क्या आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक संघर्ष में चीन की भूमिका सिर्फ एक दर्शक की होनी चाहिए या फिर यह उसकी जवाबदेही भी बनती है? चीन की यह दोहरी नीति न केवल भारत की रणनीतिक स्वायत्तता के लिए खतरा है, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में अस्थिरता का कारण बन सकती है. ऐसे में भारत को अपनी सुरक्षा नीति को लेकर और भी सतर्क और स्पष्ट होना पड़ेगा। भारत-पाक तनाव के बीच चीन एक बार फिर अपनी दोहरी चालों को लेकर चर्चा में है। जब दक्षिण एशिया एक बार फिर संघर्ष के मुहाने पर खड़ा था, तब दुनिया उम्मीद कर रही थी कि एक वैश्विक शक्ति के रूप में चीन शांति का पक्ष लेगा. लेकिन, कूटनीतिक भाषा में लिपटी चीन की रणनीति कुछ और ही इशारा कर रही है. हाल ही में ग्वांचा वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख में चीन के दो विद्वानों - सिन्हुआ यूनिवर्सिटी के माओ केजी और साउथ एशियन रिसर्च ग्रुप के चेन झाऊ - ने दावा किया है कि चीन की अक्साई चिन क्षेत्र में सैनिक तैनाती का मकसद भारत-पाक युद्ध को रोकना है।चीन का 'डिप्लोमैटिक बैलेंस' से भारत को सतर्क और स्पष्ट होना पड़ेगा। ( हिंदुस्तान की सरहद से अशोक झा )
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/