राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत पश्चिम बंगाल में हैं। उन्होंने राज्य के सिलीगुड़ी में युवा सम्मेलन को संबोधित किया है। उन्होंने यहां कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बड़ी बात कही है।मोहन भागवत ने कहा है कि आज जो लोग स्वयं को 'हिन्दू' नहीं मानते, वे भी हिन्दू पूर्वजों के ही वंशज हैं। पूजा-पद्धति और खान-पान अलग हो सकते हैं, किंतु हम एक राष्ट्र और एक संस्कृति के अंग हैं। जिसके हृदय में भारत-भक्ति नहीं है, वह हिन्दू नहीं हो सकता। सभी प्रकार की विविधताओं का सम्मान करने वाली विशिष्ट परंपरा ही हमारी 'हिन्दू संस्कृति' है। भविष्य की जिम्मेदारी युवाओं के कंधों पर- मोहन भागवत: युवा सम्मेलन में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा- "भविष्य की जिम्मेदारी स्वेच्छा से लें या न लें, वह युवाओं के कंधों पर आएगी ही। यदि हम केवल अपने लिए ही काम करें, तो क्या मैं और मेरा परिवार सुरक्षित रह पाएंगे? देश पर जब भी संकट आया है, समाज जाग्रत हुआ है। शक-हूण-मुगल-पठान और अंततः अंग्रेजों के काल तक इसका इतिहास बार-बार दोहराया गया है।"
डॉक्टर जी ने वंदे मातरम् आंदोलन का नेतृत्व किया- मोहन भागवत: सिलीगुड़ी मे युवा सम्मेलन में RSS के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा- "समाज में व्याप्त भेदभाव और संकीर्ण स्वार्थों को दूर करने के उद्देश्य से समाज-सुधार की धाराएं प्रारंभ हुईं। हम कौन हैं? हमारे अपने कौन हैं? आत्मबोध को पुनः जाग्रत करने के लिए दयानंद सरस्वती तथा रामकृष्ण-विवेकानंद की प्रेरणा से कार्य आरंभ हुआ। किशोर अवस्था में ही 'डॉक्टर जी' ने नागपुर के विद्यालय में 'वंदे मातरम्' आंदोलन का नेतृत्व किया।"
'डॉ. हेडगेवार ने पश्चिम भारत में आंदोलन का विस्तार किया': मोहन भागवत ने कहा- "वीर सावरकर, सुभाषचंद्र बोस, लोकमान्य तिलक जैसे महान पुरुषों की भांति डॉक्टर जी ने भी यह अनुभव किया था कि समाज का निर्माण किए बिना राष्ट्रोद्धार के सभी प्रयास निष्फल रहेंगे। डॉक्टरी की पढ़ाई के बहाने डॉ. हेडगेवार ने अनुशीलन समिति से संपर्क स्थापित कर पश्चिम भारत में भी क्रांतिकारी आंदोलन का विस्तार किया। राजद्रोह के आरोपों के संदर्भ में अपने पक्ष को रखते हुए डॉक्टर जी ने प्रश्न किया था कि अंग्रेजों को किस कानून के आधार पर भारत पर शासन करने का अधिकार मिला? देश की सर्वांगीण उन्नति के लिए व्यक्ति-निर्माण के कार्य की शुरुआत डॉक्टर जी ने की।" हम एक राष्ट्र और एक संस्कृति के अंग- मोहन भागवत: मोहन भागवत ने कहा- "रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने निबंध 'स्वदेशी समाज' में उदाहरण प्रस्तुत कर नेतृत्व देने तथा भीतर से नेतृत्व करने की क्षमता रखने वाले व्यक्तियों को 'नायक' कहा है। आज जो लोग स्वयं को 'हिन्दू' नहीं मानते, वे भी हिन्दू पूर्वजों के ही वंशज हैं। पूजा-पद्धति और खान-पान अलग हो सकते हैं, किंतु हम एक राष्ट्र और एक संस्कृति के अंग हैं।"
'जिसके हृदय में भारत-भक्ति नहीं, वह...'
मोहन भागवत ने कहा- "जिसके हृदय में भारत-भक्ति नहीं है, वह हिन्दू नहीं हो सकता। सभी प्रकार की विविधताओं का सम्मान करने वाली विशिष्ट परंपरा ही हमारी 'हिन्दू संस्कृति' है। संघ के स्वयंसेवक समाज के प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करते हुए निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। भारत का प्रत्येक व्यक्ति भारत के लिए जिए, भारत को जाने और भारत को माने। संघ भारतीय महापुरुषों के विचारों और अनुभूतियों के सार को व्यवहार में उतारने की प्रक्रिया है। हम कहते हैं- 'विविधता ही एकता की खोज है'।"
संविधान की संक्षिप्त प्रति घर में रखें- मोहन भागवत
मोहन भागवत ने कहा- "संविधान की संक्षिप्त प्रति घर में रखें और उसका अध्ययन करें। संघ में आइए, संघ को परखिए, और यदि सब उचित लगे तो संघ के कार्यों से जुड़िए। आइए, हम सभी राष्ट्रोत्थान के इस महान अभियान में सहभागी बनें।" बता दें कि सिलीगुड़ी में इस सम्मेलन की सफलता सुनिश्चित करने के लिए सैकड़ों स्वयंसेवक तैयारियों में जुटे थे। सुबह से ही 15 से 35 वर्ष आयु वर्ग के हजारों युवक-युवतियां आरएसएस प्रमुख का वक्तव्य सुनने के लिए सम्मेलन स्थल पर पहुंचने लगे। यह युवा सम्मेलन राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित कार्यक्रमों की श्रृंखला का एक हिस्सा है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित किया जा रहा है। शताब्दी वर्ष में प्रवेश के साथ ही संघ संस्थापक द्वारा प्रतिपादित आदर्शों और मूल्यों के मार्गदर्शन में राष्ट्र निर्माण और सामाजिक विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पुनः दृढ़ता से व्यक्त कर रहा है। ( सिलीगुड़ी से अशोक झा की रिपोर्ट )
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