- छात्र राजनीति से शुरू हुआ था नड्डा का सफर शुरू, भारतीय जनता युवा मोर्चा और फिर भारतीय जनता पार्टी में काम करना शुरू किया
विश्व की सबसे बड़े राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मोदी सरकार 3.0 में स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा का आज जन्मदिन है। उनका जन्म 2 दिसंबर 1960 को पटना में हुआ था। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि 2 दिसंबर 1960 को पटना में जन्मा एक बच्चा आगे चलकर विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा का शीर्ष नेतृत्व संभालेगा। शांत मुस्कान, सौम्य व्यवहार और संगठन की गहरी समझ ने उन्हें राजनीति के उस मुकाम तक पहुंचाया, जिसकी कल्पना उनके साथ बढ़ने-सीखने वाले भी शायद ही कर पाए होंगे। मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर से ताल्लुक रखने वाले जगत प्रकाश नड्डा ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत छात्र राजनीति से की। वर्ष 1983-84 में वे छात्र राजनीति में सक्रिय हुए और आज केंद्रीय मंत्री के पद तक पहुंचे हैं। नड्डा का राजनीतिक जीवन कई उतार-चढ़ावों से गुज़रा है।
जेपी नड्डा के जन्मदिन के अवसर पर जहां तक मुझे पता है वर्ष 1983 का एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं। उस समय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ताकत हिमाचल में उतनी मजबूत नहीं थी। ऐसे में परिषद द्वारा चलाए जा रहे आंदोलनों को अखबारों में खास जगह नहीं मिल रही थी। इसी दौरान नड्डा ने अपने साथियों के साथ ऐसी रणनीति तैयार की, जिससे आंदोलन न केवल सुर्खियों में आए बल्कि जनता के बीच भी चर्चा का विषय बने। यह रणनीति हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के न्यू बॉयज हॉस्टल के कमरे नंबर 26-D में बनी।
जब HPU के VC बन गए थे जेपी नड्डा
यहां नड्डा के साथ कृपाल परमार और कई अन्य छात्र साथी योजना बनाने बैठे। परमार ने एक प्रस्ताव रखा और अगले दिन जब विश्वविद्यालय के कुलपति ललन प्रताप सिंह लंच के लिए गए, उसी दौरान उनके कमरे पर कब्जा कर लिया गया। कमरे को अंदर से बंद कर दिया गया। इसके बाद छात्र नेता नड्डा "विश्वविद्यालय के कुलपति" बन गए और इसकी एक नोटिफिकेशन भी जारी की गई।
नड्डा ने अशोक शर्मा को रजिस्ट्रार, कृपाल परमार को परीक्षा नियंत्रक, मनोज शर्मा को डीएसडब्ल्यू और अशोक शारदा को डीन ऑफ स्टडीज घोषित कर दिया। यह नोटिफिकेशन मीडिया तक पहुंच गई। काफी प्रयासों के बाद पुलिस ने कमरा खुलवाया और कब्जा हटाया, मगर तब तक नड्डा और उनके साथियों के इस अनोखे विरोध की चर्चा हर तरफ फैल चुकी थी। यह आंदोलन प्रतीकात्मक विरोध के रूप में किया गया था।
जेपी नड्डा की चुनावी राजनीति में एंट्री
छात्र राजनीति के बाद नड्डा ने भारतीय जनता युवा मोर्चा और फिर भारतीय जनता पार्टी में काम करना शुरू किया। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. संजीव शर्मा बताते हैं कि 1993 में जब हिमाचल में बीजेपी की हालत कमजोर थी, तब केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए वापस भेजा। 1993 में बीजेपी के केवल आठ विधायक ही विधानसभा पहुंचे और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। बीजेपी के वरिष्ठ नेता जगदेव चंद के साथ युवा नड्डा भी मैदान में उतरे थे।
नियति ने लिखा 'नड्डा का नेतृत्व'
लेकिन किस्मत ने मोड़ लिया, शपथ से पहले ही जगदेव चंद का निधन हो गया। इसके बाद बीजेपी विधायक दल ने जगत प्रकाश नड्डा को नेता चुना। इस तरह नड्डा एक बार फिर चर्चा में आए। 1993 से 1998 तक उन्होंने बीजेपी विधायक दल का नेतृत्व किया। हालांकि 1998 में जब बीजेपी, हिमाचल विकास कांग्रेस के साथ मिलकर सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल बने और नड्डा उनकी कैबिनेट में मंत्री।
2003 में नड्डा के राजनीतिक जीवन में फिर एक मोड़ आया और वे मंत्री रहते हुए कांग्रेस के तिलक राज से चुनाव हार गए। हालांकि 2007 में उन्होंने वापसी की और दोबारा जीत हासिल की। मगर हिमाचल की राजनीति में आंतरिक मतभेदों के कारण वे केंद्र की राजनीति में चले गए और राज्यसभा सांसद भी बने।
छोटे से पहाड़ी राज्य से निकलकर बनाई राष्ट्रीय पहचान
2019 में उन्हें मंत्री पद नहीं मिला, लेकिन 19 जून 2021 को वे भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए। जनवरी 2020 में नड्डा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। आज भी वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और साथ ही मोदी सरकार 3.0 में स्वास्थ्य मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
( बिहार से अशोक झा की रिपोर्ट )
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