- बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री की राजनीति में बहुत ज्यादा हनक
- 1972 की भारत-बांग्लादेश मैत्री संधि को 'गुलामी की संधि' तो 1996 की गंगा जल साझा संधि को 'गुलामी का सौदा' दिया था करार
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के निधन के साथ ही बांग्लादेश की राजनीति के एक लंबे, प्रभावशाली और विवादों से भरे अध्याय का अंत हो गया।
बीएनपी मीडिया सेल के आधिकारिक फेसबुक पेज पर उनके निधन की जानकारी दी गई। खास बात है कि वह बांग्लादेश की पहली महिला पीएम थीं।
बीएनपी की तरफ से बयान जारी किया गया है कि जिया ने मंगलवार सुबह 6 बजे अंतिम सांस ली। लिवर में परेशानी, डायबिटीज, सीने और हृदय में तकलीफ समेत कई स्वास्थ्य जटिलताओं से जूझ रहीं जिया का 23 नवंबर से ढाका के एवरकेयर अस्पताल में इलाज चल रहा था। उन्हें 11 दिसंबर को वेंटिलेटर पर रखा गया था।
शनिवार को ही एवरकेयर अस्पताल के बाहर बिना पूर्व सूचना के एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई थी। तब डॉक्टर ए जेड एम जाहिद ने कहा था, नहीं कहा जा सकता कि उनकी हालत में सुधार हुआ है। फिलहाल उनकी हालत बेहद नाजुक बनी हुई है। खास बात है कि बीएनपी ने जिया को विदेश ले जाने की इच्छा जताई थी, लेकिन शारीरिक स्थिति के चलते ऐसा संभव नहीं था।1 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिया के स्वास्थ्य को लेकर चिंता जाहिर की थी। साथ ही उनके जल्दी स्वस्थ होने की कामना की थी। उन्होंने कहा था कि भारत हर संभव सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है।पीएम मोदी ने लिखा था, बेगम खालिदा जिया के स्वास्थ्य के बारे में जानकर बहुत चिंतित हूं। उन्होंने कई वर्षों तक बांग्लादेश के सार्वजनिक जीवन में योगदान दिया है। हम उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं। भारत हर संभव सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है।खालिदा जिया न केवल देश की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं, बल्कि उन्होंने तीन बार सरकार का नेतृत्व कर दशकों तक राष्ट्रीय राजनीति को दिशा दी।
साल 1977 में जब उनके पति जियाउल रहमान राष्ट्रपति बने थे।
उस समय ख़ालिदा ज़िया को 'शर्मीली गृहिणी' बताया जाता था जो अपने दो बेटों के प्रति समर्पित थीं। लेकिन, 1981 में अपने पति की हत्या के बाद, उन्होंने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) का नेतृत्व किया और दो बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं।वह पहली बार 1990 के दशक प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठी थीं। बाद में ख़ालिदा ज़िया पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए और उन्होंने कई साल जेल में बिताए।लेकिन देश में 2024 के विद्रोह के बाद ये सारे आरोप हटा दिए गए। इस विद्रोह ने उनकी प्रतिद्वंद्वी शेख़ हसीना को सत्ता से बाहर कर दिया गया था।
भारत में जन्म, पाकिस्तान में बचपन फिर बांग्लादेश में की राजनीति: खालिदा जिया का जन्म 15 अगस्त 1945 को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी (उत्तर बंगाल) में हुआ था।उनका जीवन दक्षिण एशिया के सबसे बड़े राजनीतिक बदलावों का साक्षी रहा। जन्म से ठीक दो साल बाद 1947 में भारत विभाजन के बाद जलपाईगुड़ी जिले के कुछ हिस्से (जैसे दक्षिण दिनाजपुर के कुछ क्षेत्र) अस्थायी रूप से पूर्वी पाकिस्तान में शामिल हो गए थे, लेकिन बाद में उन्हें वापस भारत में मिला लिया गया।भाषाई और सांस्कृतिक भेदभाव के चलते पूर्वी पाकिस्तान में असंतोष बढ़ा. 16 दिसंबर 1971 को भारतीय हस्तक्षेप के बाद पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के साथ बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया।
बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री:
खालिदा जिया की राजनीति में एंट्री 1980 के दशक में हुई, जब उनके पति और तत्कालीन राष्ट्रपति जियाउर रहमान की हत्या कर दी गई। उस समय राजनीति उनके लिए बिल्कुल नई थी, लेकिन पति की मृत्यु के बाद उन्होंने बीएनपी की कमान संभाली. धीरे-धीरे वह देश की सबसे ताकतवर नेताओं में शामिल हो गईं। 1991 में उन्होंने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं.
इसके बाद फिर 2001 से 2006 तक उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व किया. उनके शासनकाल में मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था, निजीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर दिया गया, हालांकि उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार, राजनीतिक हिंसा, प्रशासनिक कमजोरियों और कट्टरपंथी तत्वों को बढ़ावा देने जैसे गंभीर आरोप भी लगे।
भारत के साथ कैसे रहे रिश्ते: भारत के साथ खालिदा जिया के संबंध हमेशा जटिल और तनावपूर्ण रहे। खालिदा जिया की राजनीति का आधार भारत विरोधी माना जाता रहा है।उन्होंने 1972 की भारत-बांग्लादेश मैत्री संधि को 'गुलामी की संधि' कहा और 1996 की गंगा जल साझा संधि को 'गुलामी का सौदा' करार दिया. चटगांव हिल ट्रैक्ट्स शांति समझौते का भी उन्होंने विरोध किया और आशंका जताई कि इससे ये क्षेत्र भारत के प्रभाव में चला जाएगा। खालिदा जिया के पहले कार्यकाल के दौरान भारत-बांग्लादेश सीमा पर तनाव भी देखने को मिला. अप्रैल 2001 में मेघालय और असम सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प हुई, जिसमें भारत के 16 जवान शहीद हो गए. इसके बाद रिश्तों में और कड़वाहट आ गई. तीस्ता जल बंटवारे, सीमा प्रबंधन और अवैध घुसपैठ जैसे मुद्दों पर भी उनकी सरकार का रुख टकराव भरा रहा।
पाक-चीन से रही नजदीकी: अपने कार्यकाल के दौरान खालिदा जिया ने भारत के बजाय पाकिस्तान और चीन के साथ रिश्तों को प्राथमिकता दी. उनके शासन में भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा मिलने के आरोप लगे. कहा गया कि पाकिस्तान की आईएसआई ने ढाका में अपनी मौजूदगी मजबूत की और हूजी जैसे कट्टरपंथी संगठनों को समर्थन मिला. भारत के पूर्वोत्तर उग्रवादी समूहों को भी बांग्लादेश में ठिकाने मिलने की बातें सामने आईं।
भारतीय राष्ट्रपति से मिलने से किया इनकार: भारत के प्रति खालिदा जिया के रुख का एक उदाहरण मार्च 2013 में देखने को मिला, जब तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ढाका दौरे पर थे और खालिदा जिया ने उनसे मुलाकात करने से इनकार कर दिया. उस समय भारत में यूपीए सरकार थी और खालिदा का आरोप था कि भारत शेख हसीना सरकार को ज्यादा वरीयता दे रहा है।हालांकि, उन्होंने भारत की कुछ यात्राएं भी कीं. 2006 में प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी। इसके अलावा, अक्टूबर 2012 में जब वह विपक्ष की नेता थीं, तब उनकी भारत यात्रा काफी चर्चा में रही. यह दौरा बीएनपी की पारंपरिक भारत विरोधी छवि के बीच अहम माना गया।
शेख हसीना से ताउम्र रही अदावत: बांग्लादेश में खालिदा जिया और शेख हसीना की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बांग्लादेश की राजनीति की सबसे कड़वी प्रतिद्वंद्विताओं में गिनी जाती है. दोनों नेताओं के बीच मतभेद आखिरी समय तक बने रहे. खालिदा जिया की सरकार गिरने के बाद उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले दर्ज किए गए और 2018 में उन्हें जेल भेज दिया गया. जेल के दौरान उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता चला गया। कल ही किया चुनाव में नामांकन: उनकी पार्टी और परिवार ने कई बार शेख हसीना सरकार से बेहतर इलाज के लिए उन्हें विदेश भेजने की मांग की, लेकिन यह मांग हर बार खारिज कर दी गई. अब, जब शेख हसीना की सरकार का पतन हो चुका है और फरवरी में बांग्लादेश में चुनाव होने वाले हैं, ऐसे समय में खालिदा जिया का निधन देश की राजनीति पर क्या असर डालेगा, यह देखने वाली बात होगी. फरवरी में होने वाले आम चुनाव के लिए खालिदा जिया की ओर से सोमवार को बोगुरा-7 निर्वाचन क्षेत्र से नामांकन किया गया था। ( बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा की रिपोर्ट )
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